Ek Ruh ki Aatmkatha - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

एक रूह की आत्मकथा - 26

कामिनी की माँ नन्दा देवी अपने बेटे स्वतंत्र को लेकर बहुत चिंतित थीं ।स्वतंत्र के पास कोई नौकरी.... कोई काम नहीं था।उसकी शादी हो चुकी थी और उसकी दो बेटियाँ भी हो चुकी थीं।परिवार की आर्थिक स्थिति डाँवाडोल थीं ।वे चाहती थीं कि कामिनी स्वतंत्र को कोई काम दिला दे या फिर अपना ही प्राइवेट सेक्रेटरी बना ले।पर कामिनी को अपने काम और समर से इतनी फुर्सत ही नहीं मिलती थी कि वह अपने मायके की तरफ से भी कुछ सोचे।
नंदा देवी सोचतीं कि इसी घर में पली -बढ़ी कामिनी को इस घर के प्रति किसी जिम्मेदारी का अहसास नहीं है।रौनक की मृत्यु के बाद उन्हीं ने तो उसे सम्भाला था।समर ने जब सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली ,तब उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया था।उन्हें समर बिल्कुल पसंद नहीं था।उन्होंने हॉस्पिटल में ही समर की आंखों में अपनी बेटी के प्रति आसक्ति देख ली थी और गाहे -बगाहे उसे चेताती भी रहती थी,पर कामिनी समर के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी।
नंदा देवी ने अपने जीवन में बड़े उतार -चढ़ाव देखे थे। उन्हें पता था कि मर्द की चाहत कभी -भी बदल सकती है।वह प्रेम में जितने आवेग से आगे बढ़ता है, उतने वेग से ही पीछे भी हट जाता है।ज्यों ही उसका स्वार्थ प्रभावित होता है,उसका प्रेम कपूर की तरह उड़ जाता है।उन्हें समर पर विश्वास तो बहुत पहले से नहीं था ,लेकिन जबसे वह खुलेआम कामिनी के साथ रहने लगा है ,तब से उन्हें कामिनी की बहुत चिंता होने लगी है। कहीं वह कामिनी को धोखा न दे दे।कहीं वह उसकी सारी सम्पत्ति न हड़प ले।कहीं वह उसकी हत्या ही न करा दे।कभी -कभी पैसा रिश्तों में दरार की सबसे बड़ी वज़ह भी बन जाता है।
समर ने कामिनी के लिए पहले अपना काम छोड़ा फिर अपनी पत्नी को छोड़ दिया।पर वह अपने बच्चों को बहुत प्यार करता है।एक पिता के दायित्व को समझता है।वह यह जरूर चाहेगा कि कामिनी की सम्पत्ति उसकी बेटी के अलावा उसके बच्चों को भी मिले।क्या कामिनी ऐसा करना चाहेगी?ऐसा भी तो हो सकता है कि समर उसे बताए ही नहीं और कामिनी को जब पता चले तब तक कुछ भी शेष न रहे।
नन्दा देवी इसी सोच में डूबी थीं कि अचानक स्वतंत्र उनके कमरे में दाखिल हुआ वह काफी गुस्से में था।
"माँ ,मैं यह बर्दास्त नहीं कर सकता।"
"क्या हुआ बेटा?"नन्दा देवी ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा।
"मैं गया था आपकी लाडली बेटी के पास पर उसने तो मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं की।"
स्वतंत्र का गुस्सा कम ही नहीं हो रहा था।
"क्या कहा उसने?"
"कहने लगी कि उसका पर्सनल सेक्रेट्री समर ही रहेगा।हाँ,वह मेरे लायक कोई काम देखेगी।"
"उसकी मर्जी है क्या कर सकते हैं?"
"उसकी मर्ज़ी की ऐसी की तैसी....।खुलेआम आवारागर्दी कर रही है।अपने आशिक के साथ रहती है।मैं अपने दोस्तों में मुँह दिखाने लायक नहीं बचा हूँ।ऊपर से इतना एटिट्यूट!"
गुस्से की वजह से स्वतंत्र के मुंह से झाग निकल रहा था।
"बेटा!....।" नन्दा देवी ने कुछ कहना चाहा।
"अब मैं उसे बताता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ?"
स्वतंत्र के चेहरे पर हिंसक भाव था।
"नहीं बेटा,कोई अनर्थ मत कर बैठना,फिर तुम भी नहीं बचोगे।तुम्हारा अपना परिवार है।सब बर्बाद हो जाएगा।"
नन्दा देवी डर से काँपने लगी।उन्हें पता था कि स्वतंत्र उज्जड और जिद्दी युवक है।वह कभी- भी और कुछ भी कर सकता है।
स्वतंत्र गुस्से में ही घर से निकल गया।नन्दा देवी को उसपर गुस्सा नहीं आया।उन्हें इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि कामिनी ने अपने सगे भाई से क्यों इस तरह की बात की?
अरे,इतनी दौलत है उसके पास,थोड़ा भाई को दे देती तो,वह कम तो नहीं पड़ जाता।
स्वतंत्र की पत्नी उमा रसोईघर से ही माँ -बेटे के बीच की बात सुन रही थी।उसे अपने पति पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों वे बहन की दौलत पर आँख गड़ाए हुए हैं और माता जी उन्हें और शह दे रही हैं ?शादी के बाद तो बेटी वैसे ही लड़ाई हो जाती है फिर उसके धन पर क्या अधिकार?
पति की मृत्यु के बाद कामिनी जी ने समर जी का साथ कर लिया तो क्या बुरा किया?वे विधवा बनकर अपना पूरा जीवन बितातीं तो क्या ये अच्छा होता!क्या स्त्री की अपनी कोई इच्छा नहीं होती?क्या उसकी जरूरत जरूरत नहीं ?क्या प्रेम पाने का अधिकार एक विधवा का नहीं होता?फिर धर्म और समाज के ठेकेदार क्यों ऐसी स्त्री के पीछे पड़ जाते हैं?
कामिनी जी की अपनी जिंदगी है ।वे युवा हैं.. सुंदर हैं... कामयाब हैं ...आत्मनिर्भर हैं ...फिर क्यों उन्हें नया और मनचाहा जीवन चुनने का अधिकार नहीं ?अगर वे पति के जिंदा रहते ऐसा कदम उठातीं तो इसे अनैतिक या पाप या नाजायज़ जैसा नाम दिया जा सकता था।पर वे तो विधवा हैं।पति के गुजरे भी कई वर्ष बीत चुके हैं फिर क्यों उन पर अंगुलियाँ उठ रही हैं?
हाँ,समर जी पर यह सवाल उठाया जा सकता है क्योंकि उनकी पत्नी जिंदा हैं और वे उनके बच्चों की माँ भी हैं।
पर अगर समर और लीला जी के प्यार की डोर मजबूत होती तो कोई तीसरा उसे कैसे तोड़ सकता था?समर जी पहले से ही उनसे आज़ाद थे कामिनी जी तो बाद में उनके जीवन में आईं।आईं क्या नियति उन्हें साथ लाई।
उसे समझ में नहीं आता कि क्यों प्रेम के लिए किसी बहाने की जरूरत होती है?पति दुराचारी है ।पत्नी को टार्चर करता है,उसे प्यार नहीं करता,तो ही वह दूसरे पुरूष के प्रेम में पड़ गई। पुरुष को भी जबरन बांध दी गई नापसंद पत्नी की वज़ह से दूसरी स्त्री पर आसक्त हो गया।कवि और कथाकार भी ऐसे प्रेम का समर्थन करते हैं ।पर इन दोनों स्थितियों के न रहने पर भी प्यार हो सकता है।प्यार कब किससे और कहाँ हो जाए-इसे नापा तौला नहीं जा सकता।
उमा के इन स्वतंत्र विचारों से स्वतंत्र चिढ़ता है।उसे डर लग रहता है कि कहीं उमा किसी दूसरे पुरुष से इस कारण न इन्वाल्व हो जाए कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है।उसे सारी सुख -सुविधाएं नहीं दे सकता।वह जल्द से जल्द अमीर हो जाना चाहता है।अपनी बहन से वह अपेक्षा रखता है कि वह इस काम में उसकी मदद करे पर वह समर के इशारे पर नाचती है। किसी तरह वह कामिनी से कोरे कागज़ पर हस्ताक्षर ले पाता तो वह अपने मकसद में कामयाब हो जाता।वह निरन्तर इसी उधेड़बुन में लगा रहता है।