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अखण्ड असौभाग्यवती भवः

जल्दी जल्दी दफनाओं इस पनौती को, हमारे जीवन को नरक बना दिया है, आज इसका खेल खत्म !

एक अधेड़ आदमी उसकी पत्नी और उसका बेटा एक महिला जो शायद उनकी बहु थी उसे श्मशान घाट में दफना रहे थे, उसे दफना कर वे खुशी खुशी वापस आ गए।

और एक न‌ए घर में शिफ्ट हो गए आज उसके मां बाप उसके लिए लड़की देखने जाने वाले है

मां वो कहीं वापस तो नहीं आयेगी ना ?- सौरव डरते हुए पूछा

नहीं रे उस असौभाग्यवती को दफना दिया है अब तुम्हारे लिए एक गुणी और सौभाग्यवती बहु लायेंगे, जो हम सबकी जिंदगी खुशियों से भर देगी‌।

वो तीनों एक अच्छे घर में जाते है उन्हें वो लड़की बहुत पसंद आती है और लड़की वाले भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो जाते हैं

जल्द ही शादी का मुहूर्त देख कर शादी की तैयारी में लग गए और फ़िर शादी के दिन बड़ी धूमधाम से वर वधू के फेरे होते हैं फिर शादी संपन्न हो जाता है रात को सौरव की नई पत्नी जिसका नाम गीता था वह साड़ी से अपने चेहरे को ढकें हुए थी।

सौरव उसके पास जाकर उसका घुंघट उड़ाता है, पर ये क्या सौरव डर के मारे कांप जाता है वहां गीता की जगह उसकी पहली पत्नी सुरभि बैठी थी जो एक डायन बन चुकी थी वह सौरव के पास जाती है- सौरव आइये ना क्या हुआ ?

दूर रहो तुम.. तुम यहां कैसे- सौरव कांपते हुए बोला !

कैसी बातें करते हैं आपने ही तो मुझे अभी शादी करके लाए हैं- सुरभि बोली

सौरव- मैंने तो गीता से शादी किया है तुम....

सुरभि की आंखों की ज्वाला भड़क उठी - वो गीता नहीं मैं थी कमीने तुम लोगों से बदला लेने आई हु , क्या गलती थी मेरी... मैं तो जीना चाहती थी लेकिन तुम लोगों ने मुझे असौभाग्यवती का कलंक लगा कर मार डाला - सुरभि रो पड़ी

मुझे माफ़ कर दो सुरभि मैं मम्मी पापा के बातों में आ गया था- सौरव डरते हुए बोला !

माफी नहीं अब सजा मिलेगी तुम तीनों को...

सुरभि बेहद खौफनाक आवाज में बोली और सौरव को मार डाला, सौरव की चीख सुनकर उसके मम्मी पापा दौड़ते हुए आए.. लेकिन जब सुरभि को देखा तो वहां से डर के मारे भागने लगे

लेकिन......

सुबह उन तीनों की लाश उनके घर के बाहर मिलती है जिसे बहुत बुरी तरीके से नोच नोच कर मारा गया था।

कुछ महीने पहले...........


सुरभि सुरभि बेटा कहां हो तुम- सुरभि के दादा जी मूलचंद बोले

क्या हुआ दादा जी- सुरभि दादा जी के पास आकर बोली

मूलचंद - अरे बेटा जरा जल्दी से तैयार हो जाओ आज तुम्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं

सुरभि- क्या दादा जी मैंने आपको कितनी बार कहा है मुझे अभी शादी नहीं करनी अभी मैं नौकरी करना चाहती हूं अपने दादा की सेवा करना चाहती हूं

मूलचंद- अरे बेटा, देखो मेरी उम्र अब ज्यादा नहीं बची है, जब तक जींदा हूं तब तक तुम्हारी शादी और तुम्हारे बच्चों को देखना चाहता हूं आखिर तुम्हारे शिवा मेरा है ही कौन

सुरभि- दादा जी आप ऐसा क्यो सोचते हैं अभी तो आपको मेरे बच्चों के बच्चों की भी शादी करवाना है

मूलचंद- नहीं बेटा, बस तुम्हारी शादी करवा दूं फिर तुम्हारे मम्मी-पापा के वचन से मुक्त हो जाउंगा और चैन से मर पाऊंगा

सुरभि- ओके आप यही चाहते हैं तो ठीक है मैं शादी करने के लिए तैयार हूं लेकिन आप दुबारा अपने मरने की बात मत करना !

सुरभि के माता पिता नहीं थे बचपन से वह अपने दादा के साथ ही रहती थी वे ही उसका परिवार था

तभी गाड़ी का हार्न बजा उसमें से सौरभ और उनके माता-पिता निकले

मूलचंद उन्हें आदर से अंदर बिठाते हैं और सुरभि को आवाज लगाते हैं - सुरभि बेटा सब के लिए चाय लाना तो

सुरभि चाय लेकर आती है वह आज बहुत सुंदर लग रही थी, चाय पीने के बाद

भ‌ई हमें तो लड़की पसंद है अब यही हमारे घर की बहू बनेंगी- सौरभ की मम्मी बोली

तभी सौरभ के पापा कुछ फुसफुसाए लेकिन सौरभ की मम्मी उन्हें चुप करा देती है

मूलचंद- ये तो बहुत खुशी की बात है बेटा सुरभि तुम्हें तो कोई ऐतराज नहीं है ना ये सुनकर सुरभि शरमा कर चली गई

चलो तो ठीक है जल्दी से शादी के मुहुर्त देखकर शादी की तैयारी शुरू कर देते है , इसके बाद सौरभ और उनके मां बाप गाड़ी में बैठ कर जाने लगते हैं

बीच रास्ते में सौरभ के पापा बोल पड़े- यह क्या किया तुमने पता है ऐसा करने से कितनी बड़ी मुसीबत हो सकता है हमारे बेटे के कुण्डली देखकर हमारे गुरु ने कहा था कि इस घर में वही लड़की बहु बनकर आ सकती है जिसने अपने जीवन में किसी का खून किया हो उसे ही हमारे कुल देवता स्वीकार करेंगे

अरे चुप रहीए, उनका जायदाद देखा अकेले वारिस है वो और वो पुराने जमाने की बात है आप चिंता मत करिए कुछ नहीं होगा- सौरभ की मम्मी बोली

लेकिन उन्हें क्या पता था वे मौत को बुला रहे है। आखिरकार शादी का दिन आ गया शादी होने के बाद दुल्हन का गृह प्रवेश हुआ जब सुरभि लोटे के चावल को गिराया तो उसमें से काले रंग के चावल निकलें वो भी बदबू से भरे हुए

खैर धीरे धीरे लोग उसे भुल गए लेकिन कुछ ही दिनों में फिर से वह घटना शुरू हो गया सौरभ का बार बार एक्सीडेंट होना, सौरभ के पापा को पागल पन और बहुत कुछ सभी सुरभि को दोषी ठहराने लगे सभी उसे डायन मानने लगे

एक दिन जब सुरभि घर में नहीं थी तभी सौरभ और उनके मां बाप के सामने उनके कुल देवता प्रगट हुए...वे खौफनाक और डरावने लग रहे थे वे गुस्से से बोले- इस घर के रिवाज़ को तुम लोगों ने तोड़ दिया अब तुम्हें सजा मिलेगी

नहीं हमे माफ कर दिजीए हमें मत मारीए कोई उपाय बताएं हमें

थोड़ी देर बाद सुरभि घर आती है घर में अंधेरा था वह स्वीच को दबाने के लिए आगे बढ़ी तभी किसी ने पीछे से उसपर वार किया वह गिर पड़ी

तभी एक आवाज आई- आज से इस असौभाग्यवती का किस्सा खत्म वे सौरभ की मम्मी थी फिर वे उन्हें घसीटते हुए दफनाने ले गए और जमीन में दफन कर दिया लेकिन वो अभी जींदा थी जब होश में आई तो बाहर निकलने की कोशिश करने लगी लेकिन थोड़ी ही देर में वह मर गई।

वे लोग वहां से खुशी खुशी चले गए तभी वहां एक साया उत्पन्न हुआं जीसके बाल बिखरे हुए आंख बिल्कुल लाल जैसे गुस्से से आग बरस रहा हो वह आगे बढी।

इसके आगे का पहले ही भाग में बता दिया गया है

®®®Ꭰɪɴᴇꜱʜ Ꭰɪᴠᴀᴋᴀʀ"Ᏼᴜɴɴʏ"