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हेरिटेज वीक

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

मानना पड़ जायेगा जागृति के इस दौर को, दूरदर्शन के विज्ञापन में भी एक नन्हा बच्चा ऐतहासिक इमारत पर नाम खोदते उस टूरिस्ट को डांट पिला देता है कि ये हमारी विरासत हैं इन्हें ख़राब करने का किसी को हक़ नहीं है -नुक्कड़ की चाय की दुकान पर बैठा वह इंटर पास साधु चाय सुडकते हुए सोचता है, फिर अख़बार उठाकर पड़ता है है कि 'हेरिटेज वीक '. आने वाला है. वह व उसके तीनों साथी एक गाँव के पुराने मंदिर में रह रहे थे पता नहीं उन गाँव वालों को कैसे खबर लग गई कि वे भगवान के चमत्कार नहीं दिखाते बल्कि हाथ की बाजीगरी करतें हैं, बस तुरंत ही वे सब गाँव से बाहर खदेड़ दिए गए, अब सब इस शहर के पेड़ के नीचे पड़े हैं. गनीमत है कि इतने पैसे गाँठ में हैं कि कुछ दिन तो गुज़र बसर हो जाएगी.

वह युवा साधु पेड़ के नीचे लौटता है. वह गुरु के उसी प्रश्न का सामना करने के लिए तैयार है,''ये पैसे ख़त्म हो जायेंगे तो हम क्या करेंगे ?'''

''सच ही क्या करेंगे ?''दूसरा अधेड़ साधु कहता है.

''आप लोग चिंता मत करिए क्योंकि 'हेरिटेज वीक 'आने वाला है. ''

''उसके आने से क्या होगा लेकिन पहले बता वो होता क्या है ?''गुरु ने अपने आधे पोपले मुंह से चिंता प्रगट की.

''मतलब सारी दुनियां इस सप्ताह पुरानी इमारतों की, प्राचीन संगीत की, कला की, पुरानी पुस्तकों की चर्चा करेगी उन्हें बचाए रखने की बात करेगी. ''

तीसरे साधु ने मुंह बनाया, ''स -----ब पेट भरे की बातें हैं. ''

गुरु बोले, ''उन चर्चाओं से क्या हमारा पेट भर जायेगा. ?''

वो नौजवान शरारत से मुस्कराया, ''उस सप्ताह में चमत्कार हो जायेगा. चलिए जब तक धर्मशाला में रहने चलतें हैं. ''

हेरिटेज वीक के प्रथम दिन ही वह उन्हें एक सीढ़ियोंदार कुंए 'स्टेप वेल '

की तरफ़ ले चला. वे सब अचरज में पड़ गए क्योंकि बाहर एक सभा जुटी हुई थी. लोग कुर्सियों पर बैठे थे. सामने वाली बड़ी मेज़ के सामने रक्खी कुर्सियों पर तीनों साधुओं को बहुत आदर से बिठा दिया गया. स्टेप वेल की दीवार पर एक एन.. जी. ओ. का बैनर लगा हुआ था. नौजवान चेले ने भाषण शुरू किया,''मैं सखा वत्सल्दास आपको प्रणाम करता हूँ.. हम सब आभारी हैं इस संस्था के इसने इस स्टेप वेल के जीर्णोंद्धार का बीड़ा उठाया है. इसका निर्माण यहाँ के राजा वीरसिंह की पत्न्मी रुदवती ने संवत १५५५ में बसंत पंचमी पर १६ जनवरी 1४९१ को करवाया था. शास्त्रों के अनुसार रुदवती ने कुंवरबाई के रूप में जन्म लिया जिन्होंने हमारे धर्म की दीक्षा ली और कुंवरबाई को कौन नहीं जानता,वे द्वारका में साधना कर रहीं हैं.  ''

किसी ने कुंवरबाई का नाम नहीं सुना था तो क्या हुआ लोगों ने ज़ोर की ताली बजायी.

''अब क्योंकि कुंवरबाई यानि रुदवती हम लोगों की आश्रित बनीं इसलिए इस स्टेप वेल पर हमारा अधिकार है.. आइये इस स्टेप वेल के पुनुर्त्थान का संकल्प करें जिसे उन्होंने पिछले जन्म में बनवाया था. ''

तालियाँ और जोर से बजने लगीं. एन. जी. ओ. के कार्यकर्त्ता ख़ुशी से ताली बजा रहे थे कि इस नौजवान साधू ने एक शोध करके उन्हें एक मकसद दे दिया है..

''अब हमारे गुरु आपको हमारे धर्म के बारे में बताएँगे. ''

गुरु जी अपने शिष्य गुरु घंटाल की बातों से भौंचक थे हड़बड़ा कर माइक के सामने आगये व अपने धर्म परायण भाषण में ये बात जोड़ना नहीं भूले की स्टेप वेल के पास एक मंदिर व दो कमरे भी होने चाहिए जिससे भगत गणों को रोज़ भगवान के दर्शन हो सकें. मंदिर बनने के नाम पर आँख बंद किये हाथ जोड़े उन भक्तों को देखकर उन्हें तसल्ली हुयी. बस वे डर रहे थे की कहीं वे ये ना पूछ लें कि कौन से शास्त्र में ये लिखा है की रुदवती ने ही कुंवरबाई के रूप में पुनर्जन्म लिया है ?

 

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नीलम कुलश्रेष्ठ

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