Red Light Area - Jayanthi Ranganathan (Editing) books and stories free download online pdf in Hindi

रेड लाइट एरिया- जयंती रंगनाथन (संपादन)

"बेवफ़ा होना महज़ शग़ल नहीं उसके लिए मजबूरी था
पति अपाहिज बच्चे भूखे पेट सबका भरना ज़रूरी था"

दोस्तों..कुछ वक्त पहले जब मैंने ये टू लाइनर लिखा था तो उस वक्त ज़ेहन में एक ऐसी स्त्री की दुःख भरी व्यथा थी जिसका अच्छा खासा पति किसी हादसे या एक्सीडेंट की वजह से काम करने में असमर्थ हो चुका है। जिसकी वजह से परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी उसकी पत्नी पर आ चुकी है। जिसके पास उसकी देह के अतिरिक्त और कोई हुनर नहीं।

कहा जाता है कि दुनिया का सबसे पहला व्यापार देह व्यापार ही था। देह व्यापार के लिए जाने जाने वाले इलाके को आमतौर पर 'रेड लाइट एरिया' कहा जाता है। इसे 'रेड लाइट एरिया' का नाम क्यों दिया गया? इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। पहले जब सेक्स वर्कर समाज के भीतर शहरों, गांवों और कस्बों में रहा करती थीं, तो वे निशानी के तौर पर अपने घरों के बाहर सड़क पर एक लाल लालटेन टाँग दिया करती थीं। जिसकी वजह से बाद में इन इलाकों या घरों के संगठित स्वरूप को 'रेड लाइट एरिया' कहा जाने लगा।

आज देह व्यापार से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं जयंती रंगनाथन के संपादन में इसी विषय पर आए विभिन्न रचनाकारों के एक कहानी संकलन 'रेड लाइट एरिया' की बात करने जा रहा हूँ।

इसी संकलन की एक कहानी लन्दन में अकेले रह रहे एक ऐसे शख्स की कहानी कहती नज़र आती है जो अपने अकेलेपन से निजात पाने को किसी ना किसी महिला मित्र का साथ चाहता है। अपने कन्धों और पीठ में हो रहे दर्द से परेशान हो कर वो मसाज करवाने के लिए इंटरनेट के ज़रिए कविता नाम की एक मैच्योर महिला के संपर्क में आता है। जो सौ पाउंड की अपनी एडवांस में प्राप्त की गयी फीस के बदले मसाज के अतिरिक्त उसके साथ दैहिक संबंध बनाने को भी राज़ी है।

तो वहीं एक अन्य कहानी में अपनी दुबई यात्रा की आखिरी रात को नाइट क्लब में सेलिब्रेट करते वक्त, राशियन बैण्ड के तेज़ संगीत पर थिरकते युवाओं के बीच, लेखिका की मुलाकात एक ऐसी कॉल गर्ल से होती है जिससे वह अपनी
क्रूज़ यात्रा के दौरान मेहंदी लगाने के बहाने एक खास धर्म का प्रचार कर रही फातिमा उर्फ़ इलाबेन नाम की युवती के रूप में पहले कर चुकी है।

इसी संकलन की आत्मालाप के रूप में लिखी गयी कहानी एक अन्य कहानी जहाँ एक ऐसी महिला सैक्स वर्कर की कहानी बयां करती है जिसे सब उसके असली नाम के बजाय टैक्सी के नाम से जानते हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी में रेडियो चैनल की आर जे मीता और एक देह व्यापार करने वाली लड़की खुशबू के बीच हो रहे साक्षात्कार के ज़रिए उसके जीवन पर प्रकाश डाला जाता दिखाई देता है कि किन विषम परिस्थितियों में उसे इस रास्ते पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ बचपन में अमीनाबाद से अपह्रत कर मीरगंज के एक कोठे पर पहुँचा दी गयी अमीर घर की गुलनाज़ बानो उर्फ़ सजीली की दुख भरी दास्तान कहती नज़र आती है। जिसमें पुलिस का छापा पड़ने के बाद एक अबोध बच्ची, जैनब के साथ वहाँ से भागी सजीली को अपना व बच्ची का पेट भरने के लिए ईंटों के एक भट्ठे पर ईंटे पाथने का काम करना पड़ता है मगर क्या इतने सब से ही उसके दुःखों का अंत हो जाएगा? तो वहीं दूसरी तरफ़
एक अन्य कहानी बड़े सपने ले कर छोटे कस्बे से दिल्ली नौकरी करने आयी उस मुक्ता की बात करती नज़र आती है। जिसे बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए समझौते करने से इनकार नहीं है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी अपने जीवन में फिल्मी चकाचौंध से रूबरू रही एक प्रसिद्ध नायिका की आत्मकथा के ज़रिए उसके उतार चढ़ाव भरे जीवन की नज़र डालती नज़र आती है। तो वहीं एक अन्य कहानी में अपनी खूबसूरती की वजह से अपने बॉस की प्रिय बन, कल्पना हाई सोसायटी में ज़रूरी समझी जाने वाली सभी सहूलियतें पा तो लेती है मगर..
ग़रीब घर की कल्पना के उत्थान से ले कर उसके पतन की कहानी कहती ये रोचक कहानी इस बात की भी तादीक करती दिखाई देती है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में शशांक से बतौर सरप्राइज़ मिलने आयी जैसमीन उस वक्त चौंक उठती है जब घर में एक अनजान युवती, पुष्पा से उसकी मुलाक़ात होती है। जिसे शशांक बतौर एस्कॉर्ट एक हफ़्ते के लिए घर लाया है।जैस्मीन और पुष्पा बेशक समाज के अलग अलग तबके से आती हैं मगर उन दोनों की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है कि एक अपनी बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और दूसरी अपने सर पर एक अदद छत और पेट भरने के इरादे से इस काम में आयी है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में बतौर साइक्लोजिस्ट काम कर रही माया के साथ सारा की अलग अलग शहरों में संयोगवश होने वाली मुलाकातें एक तरफ़ उनमें दोस्ती होने के संकेत दे रही थी तो दूसरी तरफ़ माया के साथ हर बार किसी नए पुरुष का होना सारा को दुविधा में भी डाल रहा था। क्या माया के खुद के एक एस्कॉर्ट होने की स्वीकारोक्ति के बाद भी उनका रिश्ता वैसा बन पाएगा जैसा कि पाठकों द्वारा पहले से कयास लगाया जा रहा था?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जोधपुर में रह कर कॉलेज की पढ़ाई कर रहे लेखक की मुलाक़ात, उसका अमीर दोस्त देह व्यापार के लिए जाने जाने वाले करमावास नाम के गाँव की बेहद खूबसूरत युवती चिरमी से करवाता है। लेखक के लिए उलझन और हैरानी की बात ये कि हर रविवार को होने वाली मुलाक़ात के बाद चिरमी की आँखों में आँसू होते हैं और हर बार वो उससे पैसे लेने से क्यों इनकार कर देती है?

इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे अपने कथ्य..भाषा और ट्रीटमेंट की वजह से बेहद प्रभावी लगीं तो कुछ कहानियाँ ऐसी भी लगी जैसे उन्हें तुरत फुरत में ऑन डिमांड लिख दिया गया हो। जो कहानियाँ मुझे बेहद पसंद आयीं..उनके नाम इस प्रकार हैं..

*सुनो..तुम सच कह रही हो...? - तेजेन्द्र शर्मा
*कहाँ तक भागोगी- गीताश्री
*मेरा नाम क्या है- प्रीतपाल कौर
*वो लड़की- नीलिमा शर्मा
*अज़ाब- विजयश्री तनवीर
*गंध- राजीव कुमार
*मैं कौन हूँ- प्रत्यूषा सिंह
*कल्पना- मधु चतुर्वेदी
*रात्रि पुष्प- निधि अग्रवाल
*चॉइस है! - शिल्पा शर्मा
*कोका क्वीन- रजनी मोरवाल
*उलझन- डॉ. फतेह अली खान
*ये क्या जगह है दोस्तों- सुघांशु द्विवेदी
*वैदेही, तुम ऐसी क्यों हो? - जयंती रंगनाथन

इस संकलन की सभी कहानियों के देह व्यापार से जुड़े होने बावजूद भी मुझे महज़ दो कहानियाँ "अज़ाब- विजयश्री तनवीर" और "उलझन- डॉ. फतेह अली खान" इस संकलन के शीर्षक 'रेड लाइट एरिया' को सार्थक करती हुई लगीं।

इस कहानी संकलन में जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला। साथ ही तथ्यात्मक ग़लती के रूप में रजनी मोरवाल की कहानी ' कोका क्वीन' के पेज नंबर 187 में लिखा दिखाई दिया कि..

'सुबह के साथ जागृति के जुगनू एक नई आशा का उजियारा ले कर सूरज की पहली किरण के साथ जगमगाने लगे थे'

यहाँ ये बात ध्यान देने वाली है कि जुगनू हमेशा रात में चमका करते हैं जबकि यहाँ लिखा है कि सुबह के साथ जागृति के जुगनू.....सूरज की पहली किरण के साथ जगमगाने लगे थे।

प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी छोटी छोटी कमियाँ दिखाई दीं। जिनमें विजयश्री तनवीर की कहानी "अज़ाब' के पेज नंबर 58 में एक जगह लिखा दिखाई दिया कि..

'शदीद गर्म शाम में उसे पाँच फुल लंबी पाँच फुट चौड़ी बोसीदा कोठरी में धकेल कर दरवाज़ा मूंद दिया गया था'

यहाँ 'पाँच फुल लंबी पाँच फुट चौड़ी बोसीदा कोठरी' की जगह पाँच फुट लंबी पाँच फुट चौड़ी बोसीदा कोठरी' आएगा।

इसके बाद प्रत्यूषा सिंह की कहानी 'मैं कौन हूँ' में पेज नंबर 85 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'शायद सिर्फ़ पजामा पहने किसी मोटे आदमी की बाद को गंभीरता से ले लेना थोड़ा मुश्किल होता है'

यहाँ 'किसी मोटे आदमी की बाद को गंभीरता से ले लेना थोड़ा मुश्किल होता है' की जगह 'किसी मोटे आदमी की बात को गंभीरता से ले लेना थोड़ा मुश्किल होता है' आएगा।

इसी कहानी में आगे पेज नम्बर 86 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'आप बैठिए मैं लता हूँ'

यहाँ 'मैं लता हूँ' की जगह 'मैं लाता हूँ' आएगा।

इसके बाद इसी कहानी में पेज नंबर 96 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'इन्होंने मुझे दिवाकर भैया और पापा को छीन लिया'

यहाँ 'इन्होंने मुझे दिवाकर भैया और पापा को छीन लिया' की जगह 'इन्होंने मुझसे दिवाकर भैया और पापा को छीन लिया' आएगा।

इसी कहानी के अंत से पहले पेज नंबर 98 में लिखा दिखाई दिया कि..

'अपनी खामियों को भी सीना ठोक के बायाँ करने वाली वो लड़की आज होती तो यूँ ही मुस्कुरा रही होती'

यहाँ 'सीना ठोक के बायाँ करने वाली वो लड़की' की जगह 'सीना ठोक के बयाँ करने वाली वो लड़की' आएगा।

आगे बढ़ने पर मधु चतुर्वेदी की कहानी 'कल्पना' में पेज नंबर 103 में लिखा दिखाई दिया कि..

'लेकिन जब कांड की पुरावृति हो तो मामूली घटना बन जाती है'

यहाँ 'कांड की पुरावृति हो' की जगह 'कांड की पुनरावृति हो' आएगा।

इसके बाद इसी कहानी में पेज नंबर 106 की प्रथम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

' वेल फर्निश्ड फ्लैट और कार में घूमना उसके बुते का ना था'

यहाँ 'उसके बुते का ना था' की जगह 'उसके बूते का ना था' आएगा।

• इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'कल्पना जितना लॉयल्टी से फ्रेंडशिप निभाना वाली मिलना मुश्किल है'

यहाँ 'निभाना वाली मिलना मुश्किल है' की जगह 'निभाने वाली मिलना मुश्किल है' आएगा।

इसी कहानी में और आगे पेज नम्बर 108 में लिखा दिखाई दिया कि..

'कई बार तो लगते औरतें कल्पना की आवभगत चापलूसी की हद तक करती हैं'

यहाँ 'कई बार तो लगते' की जगह 'कई बार तो लगता' आएगा।

इसके बाद इसी कहानी में आगे पेज नंबर 110 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'ठगे जाने की पीड़ा से बिखरी गई'

यहाँ 'बिखरी गई' की जगह 'बिखर गई' आएगा।

इसके बाद ज्योति द्विवेदी की कहानी 'द बॉय विद रेड हैंडकरचीफ़' में पेज नंबर 123 में लिखा दिखाई दिया कि..

'वो ये चाहती थी कि कोई उसकी रात भर उसका हाथ थाम कर उसकी बातें सुनता रहे'

यहाँ 'वो ये चाहती थी कि कोई उसकी रात भर उसका हाथ थाम कर' की जगह 'वो ये चाहती थी कि कोई रात भर उसका हाथ थाम कर' आएगा।

इसके बाद शिल्पा शर्मा की कहानी 'चॉइस है' में पेज नंबर 149 में लिखा दिखाई दिया कि..

'लेकिन यह लहरें इस बार उसे अतीत में उतारती तरंगों सी महसूस होने लगीं'

यहाँ 'अतीत में उतारती तरंगों सी महसूस होने लगीं' की जगह 'अतीत में उतरती तरंगों सी महसूस होने लगीं' आना चाहिए।

इसके बाद इसी कहानी में पेज नंबर 153 में लिखा दिखाई दिया कि..

'तब कैसे प्रीति के माता-पिता ने सबके सामने सारा से कह था'

यहाँ 'सारा से कह था' की जगह 'सारा से कहा था' आएगा।

इसी पेज पर और आगे बढ़ने पर लिखा दिखाई दिया कि..

'और माँ-पापा गुजर जाने के बाद से तो साहिल उसका और भी ज्यादा ख्याल रखने लगा है'

यहाँ 'और माँ-पापा गुज़र जाने के बाद' की जगह 'और माँ-पापा के गुज़र जाने के बाद' आएगा।

इसके बाद इसी कहानी में पेज नंबर 158 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'मैं पढ़ना चाहती थी। कुछ बनना चाहती थी। पर कौन पढ़ता मुझे'

यहाँ 'पर कौन पड़ता मुझे' की जगह पर 'कौन पढ़ाता मुझे' आएगा।

इसके बाद ज्ञानेश बाबू की कहानी 'ए रेप्ड कॉलगर्ल' में पेज नंबर 168 के पहले पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'उन्हें चरित्र पर उंगली उठाई'

कहानी के हिसाब से यहाँ 'उन्हें चरित्र पर उंगली उठाई' की जगह 'उनके चरित्र पर उंगली उठाई' आएगा।

इसके आगे पेज नंबर 172 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'तुझे जितने पैसे बोलेगी दूँगा मैं'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..

'तू जितने पैसे बोलेगी, दूँगा मैं'

या फ़िर..

'तुझे जितने पैसे चाहिए, मैं दूँगा'/ 'तुझे जितने पैसे बोलेगी, मैं दूँगा'

इसी कहानी में आगे बढ़ने पर पेज नंबर 174 में लिखा दिखाई दिया कि..

'तुम मेरी जिंदगी में भगवन बन कर आए हो'

यहाँ 'भगवन बन कर आए हो' की जगह ' भगवान बन कर आए हो' आएगा।

इसी कहानी के अंत में पेज नंबर 175 में लिखा दिखाई दिया कि..

'कितनी ही लड़कियाँ इस प्रोफेशन में किन परिस्थिति में लाई जाती हैं आपका अंदाजा भी नहीं है'

यहाँ 'किन परिस्थिति में लाई जाती हैं' की जगह ' किन परिस्थितियों में लाई जाती हैं" आएगा तथा 'आपका अंदाज़ा भी नहीं है' की जगह आपको अंदाज़ा भी नहीं है' आएगा।

इसी पेज पर इससे अगली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'यहाँ एक बहुत बड़ा रैकेट रहा था' की जगह 'यहाँ एक बहुत बड़ा रैकेट चल रहा था' आएगा।

आगे बढ़ने पर रजनी मोरवाल की कहानी 'कोका क्वीन' में पेज नंबर 185 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'अब अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी ऐसी ही रिहायसी कालोनियों से अटी पड़ी है'

यहाँ 'रिहायसी' की जगह 'रिहायशी' आएगा।

अंत में जयंती रंगनाथन की कहानी 'वैदेही, तुम ऐसी क्यों हो?' के पेज नंबर 225 में लिखा दिखाई दिया कि..

'वो दो दिन में कोई ना कोई नुख्स निकाल कर उसे रफा-दफा कर देती'

यहाँ 'नुख्स' के बजाय 'नुक्स' आएगा।

227 पृष्ठीय इस प्रभावी कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है प्रलेक प्रकाशन, मुंबई ने और इसका मूल्य रखा गया है 299/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए सभी रचनाकारों, संपादक एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।