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स्वतंत्रता से गणतंत्रता तक का सफर

"स्वतंत्रता से गणतंत्रता तक का सफर"

भारत जो एक लंबे समय तक पराधीनता के भाव और स्वभाव में जो जकङीत रह चूका था उसके लिए यह सफर तय कर पाना आसान नहीं था या यूँ कहे एक गुलामी के दर्द को भूलकर बंटवारे का दंश सहकर आगे बढ़ना आसान नहीं था।

जो भी हो समय की नियति किसी व्यक्ति समाज देश विश्व के लिए ठहरता हीं नहीं अपितु वह अपने प्रकृति पर चलते हुए सभी विषय वस्तु को अपने में समेटेने का साहस रखती है।
भारत को अंग्रेजों के शासन से वर्ष 1947 में स्वतंत्रता मिली। लेकिन अंग्रेजों ने जाने से पहले भारत को दो स्वतंत्र राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया। और इस बंटवारे ने लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी। स्वतंत्रता के ठीक बाद स्वतंत्रता सेनानी, नागरिक और राजनीतिक नेता राष्ट्र को आकार देने का अथक एंव सार्थक प्रयास किया।

"आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान के साथ संघर्ष का सफर"
1947 में अपनी स्वतंत्रता के ठीक बाद, भारत को कुछ अशांत घटनाओं से गुजरना पङा, उनमें से भारत और पाकिस्तान का विभाजन था। अक्टूबर 1947 में शुरू हुआ। पाकिस्तान की सेना के समर्थन के साथ हज़ारों की संख्या में जनजातीय लड़ाकुओं ने कश्मीर में प्रवेश कर राज्य के कुछ हिस्सों पर हमला कर उन पर कब्जा कर लिया, जिसके फलस्वरूप भारत से सैन्य सहायता प्राप्त करने के लिए कश्मीर के महाराजा को इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ अक्सेशन पर हस्ताक्षर करने पड़े। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 22 अप्रैल 1948 को रेसोलुशन 47 पारित किया। इसके बाद तत्कालीन मोर्चों को ही धीरे धीरे ठोस बना दिया गया, जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है। 1 जनवरी 1949 की रात को 23:59 बजे एक औपचारिक संघर्ष-विराम घोषित किया गया था। इस युद्ध में भारत को कश्मीर के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग दो तिहाई हिस्से (कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख) पर नियंत्रण प्राप्त कर सूझबूझ दिखाने का काम किया।

"रियासतों का विलय और सरदार पटेल का अद्भुत नेतृत्व की यात्रा"
स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा किंतु अंततोगत्वा साम दाम दण्ड भेद के नीति से इन सब का भी विलय हुआ और भारत राष्ट्र के रुप में उभर कर आया।

भारतीय संविधान के निर्माण का सफर

भारतीय संविधान का निर्माण एक बड़ी लंबी प्रक्रिया थी। भारत का संविधान 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा में बनाया गया था। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य शामिल थे, जिनमें से कुछ स्वतंत्रता सेनानी थे, 292 लोगों ने अपने प्रांतों का प्रतिनिधित्व किया, 93 लोगों ने अपने राज्यों का प्रतिनिधित्व किया, और लोगों ने समाज के सभी वर्गों को संविधान निर्माण में आमंत्रित किया गया था। संक्षेप में, संविधान सभा उस समय एक मिनी-इंडिया की तरह दिख रही थी। संविधान सभा ने संविधान निर्माण के लिए 13 समितियों का गठन किया था। गहन चर्चा और बहस के बाद संविधान स्वरुप में आया। संविधान के निर्माण में बाबा भीम राव अंबेडकर की अहम भूमिका रही और भारत गणराज्य का सर्वोच्च लिखित विधान है। भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है और 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया गया।

बलिदान से शौर्य तक के इस यात्रा का कहानी हम सभी भारतवासियों के रगो में लहू की तरह प्रवाह हो रही है और नीतदिन पुरातन और संकल्पित हो रही है यशस्वी भारत तेजस्वी भारत के रुप भी उभर रही है।

हमारे पूर्वजों ने जो सहा है उससे डटकर लङकर हमें जो भेंट किया है उसे संवर्धित करने हेतु हमें सदैव तत्पर और तैयार रहना चाहिए।

जय हिंद जय भारत