Ek Ruh ki Aatmkatha - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

एक रूह की आत्मकथा - 36

मीता की माँ अपने घर लौट गई।वह चिंतित थी।उसे किसी अनहोनी की शंका हो रही थी।दिन गुजरते जा रहे थे।आखिरकार उसने हीरो के खिलाफ़ पुलिस कम्प्लेन लिखा दी।उसने पुलिस को बताया कि हीरो उसकी बेटी को उसके ननिहाल से फुसलाकर भगा ले गया था।वह अमुक शहर के एक कॉलोनी में उसके साथ रह रहा था।वह उसे घर में कैद करके रखता था और किसी से मिलने -जुलने नहीं देता था।काफी समय से कॉलोनी वालों ने उसकी बेटी मीता को देखा नहीं है।
उसे शक है कि उसकी बेटी के साथ कुछ अनहोनी हुई है। कम्प्लेन लिखाते ही पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने हीरो को धर दबोचा।उससे कड़ी पूछताछ शुरू हुई ।उसने मीता के बारे में बस इतना बताया कि वह उसके साथ लिव इन में रहती थी पर कुछ दिन पूर्व नाराज होकर कहीं चली गई।वह उसे हिन्दू बनने के लिए दबाव डाल रही थी,जबकि उसने कभी उसे मुसलमान बन जाने के लिए नहीं कहा था।
धर्म की बात बीच में आ जाने से मामला संजीदा होता जा रहा था।पुलिस के अधिकारियों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ रही थी।
सबसे पहले हीरो के घर की तलाशी हुई।वहाँ कुछ भी संदेहास्पद नहीं मिला।
इस अनजान शहर में मीता का न तो कोई रिश्तेदार था न दोस्त।अपने घर मीता गई नहीं फिर वह गई तो कहाँ गई!
मीता के बारे में जानने के लिए हीरो ही एकमात्र माध्यम बच रहा था,इसलिए उससे और कड़ाई से पूछताछ का कार्य दबंग पुलिस अधिकारी कालीराम को सौंपा गया।
कालीराम खूब लंबे -चौड़े,घनी मूछों वाले शख्स थे।उनका तवे जैसा काला रंग अलग से ही चमकता था।काले रंग पर बड़ी -बड़ी लाल आंखें और दहशत पैदा करती थी।उनका तकिया कलाम था-'सौ सौ जूते खाय तमाशा धुस के देखे।'
वे अपनी निर्ममता के लिए प्रसिद्ध थे।
जब हीरो को पूछताछ के विशेष कमरे में ले जाया गया तो वह डर रहा था।वहाँ कालीराम को देखते ही उसकी रूह काँप गई।उसे लगा कि वह किसी जल्लाद के सामने खड़ा है।कालीराम ने उसे अपने सामने की कुर्सी पर बैठने को कहा
कालीराम ने पहले तो उसे अपनी लाल -लाल आंखों से घूरा और फिर अपनी गरजती आवाज़ में सवाल दागने शुरू कर दिए।
"तो मिस्टर हीरो,मीता का क्या किया?"
"जी... जी ...जी.....मैंने कुछ नहीं किया। वो तो खुद कहीं चली गई।" बहुत हिम्मत बांधकर हीरो बोल पाया।
"ह..ह ...ह.. सौ -सौ जूता खाय तमाशा घुसके देखे.....।झूठ मत बोल।" यमराज की तरह हँसते हुए कालीराम बोले।
"म म म मैं झूठ न... न ..नहीं बोल रहा सर।"
हीरो हकलाकर बोला।
"मेरे माथे पर कुछ लिखा है।" कालीराम ने अपना माथा झुकाया
"नहीं साहब, कुछ नहीं लिखा है।"
हीरो उनके इस सवाल से परेशान था।
वे फिर बोले--"नहीं कुछ लिखा है पढ़कर बता"
वह घबराकर बोला-"नहीं सर,लगता है लिखा हुआ मिट गया है।"
"हो हो हो चुगद कहीं के...!मैं पूछ रहा था कि क्या मैं तुम्हें गधा लगता हूँ?"
"नहीं सर, मेरी क्या मजाल!"हीरो ने सफाई दी।
"तो बताता क्यों नहीं?"कालीराम झटके से अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए।हीरो भी अपनी कुर्सी से उठ गया।
कालीराम ने ज्यों ही डंडा उठाया वह उनके पैरों में गिर पड़ा।
"मुझे मत मारो सर,मैं सब बताता हूँ।"
"तो बताओ" कालीराम वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गए और उसे भी कुर्सी पर बैठने को कहा।
हीरो ने कालीराम को बताया कि वह मीता से परेशान हो चुका था।वह उससे विवाह करना चाहती थी,वो भी कोर्ट मैरिज।वह ऐसा कैसे कर देता?उसका अपनी बीबी से तलाक नहीं हुआ था।वह उसे तलाक देना भी नहीं चाहता था।वह उसके खानदान की पसंद थी और खानदान को आगे बढ़ाने के लिए भी उसकी जरूरत थी।मीता को उसके और मेरे दोनों के घर वाले स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।ऐसी परिस्थिति में भी वह माँ बनना चाहती थी।हम दोनों में रोज लड़ाई हो रही थी इसलिए....मैंने उससे छुटकारा पाने का एक उपाय खोज लिया।
"क्या किया ,जल्दी बताओ..."कालीराम ने उतावलेपन से पूछा।
"मैंने उसे ठिकाने लगा दिया।उसे घुमाने के बहाने पहाड़ी की तरफ़ ले गया और फिर उसे पहाड़ी से नीचे गिरा दिया।फिर घर चला आया।"
हीरो के चेहरे पर अपने किए का अफसोस झलक आया।
"हूँ.... हमें उस पहाड़ी तक ले चलो।"कालीराम ने गुस्से से दांत पीसते हुए कहा।
हीरो पुलिस दल के साथ उस पहाड़ी के पास पहुंचा।पहाड़ी बहुत ज्यादा ऊंची नहीं थी पर डरावनी थी।उसके तीन ओर गहरी खाइयां थी और एक तरफ जंगल। किसी भी तरफ गिरने के बाद बचने की कोई उम्मीद न थी।
हीरो ने कालीराम को वह जगह बताई,जहां से उसने मीता को घक्का दिया था उस ओर घना जंगल था।पारो जंगल की तरफ गिरी थी ।कालीराम ने अपनी खोजी टीम बुलाई और जंगल में चारों तरफ फैल जाने को कहा।वे खुद भी हीरो और अपने सहयोगी रमन के साथ पहाड़ी से उतरकर जंगल की तरफ बढ़े। एक जगह पर मीता की ओढ़नी मिली।हीरो ने उसे पहचाना और फूट -फूटकर रोने लगा।
"चुप बे साले, पहले नहीं सोचा।अब जीवन भर जेल में सड़ेगा तू...।"
कालीराम ने उसे कसकर चपेटा मारा।
"मीता पहाड़ी से गिरकर घायल हो गई होगी।फिर उसे कोई जंगली जानवर खींच ले गया होगा।"
रमन ने कालीराम से कहा।
शाम ढल चुकी थी।कालीराम ने खोजी टीम को वापस आने का आदेश दिया।मीता का शव नहीं मिला था।हथकड़ी में जकड़ा हीरो पुलिस जीप में खामोशी से बैठा था।
अपना अंत उसे साफ दिखाई दे रहा था।
मीता के अंत ने उमा को झकझोर दिया था।उसने फैसला कर लिया था कि वह जिंदगी में किसी पुरुष से प्यार नहीं करेगी।घर वाले जिससे भी उसकी शादी करेंगे,उसी के साथ निभाएगी सिर्फ उसी से प्यार करेगी।
पर वह नहीं जानती थी कि उसके भीतर उमा नाम की एक बागी औरत भी रहती है। वह औरत पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनना चाहती थी ।उसे एक व्यक्ति बनना था।शारीरिक ,मानसिक,आर्थिक,सामाजिक हर दृष्टि से एक स्वावलम्बी व्यक्ति स्त्री।
वह औरत उमा के संस्कारी स्त्री रूप पर हॉवी हो गई। उसने सोच लिया कि आत्मनिर्भरता हासिल करने से पहले न प्रेम ,न विवाह ,न सहजीवन, न अंतरंग मित्रता।
उसके बाद भी वही पुरुष उसके जीवन में आएगा जो उसे औरत नहीं अपनी तरह एक व्यक्ति मानेगा।अपने समान स्तर का व्यक्ति।
उमा ने खूब मेहनत से पढ़ाई की ।उसके बाद वह एक कॉलेज में पढ़ाने लगी।वह खुश थी। इधर उसकी माँ चिंतित थी कि उमा विवाह योग्य हो चुकी है पर कोई भी लड़का उसे भाता ही नहीं है।बहुत दबाव डालने पर वह लड़कों से बात करती है फिर उन्हें रिजेक्ट कर देती है।
उसी समय कामिनी अपने भाई स्वतंत्र का रिश्ता लेकर उसके पास आई थी।कामिनी का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उमा उसे इनकार न कर सकी।उसे लगा कि कामिनी जैसी स्वतंत्र प्रकृति की स्त्री का भाई भी उसी की तरह होगा,पर यहीं उससे भूल हो गई।