Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 14

फिर भी मैं जीती रही,बिरह की आग में तड़पती रही अपने बच्चों को छाती से चिपकाए। जब उसे अपने बच्चे याद नहीं तो मैं क्यों सोचूँ उसके बारे में ।
मैंने उस खत के बारे में सोचना बंद कर दिया और लग गई अपने बच्चों और अपनी बहनों की ठीक से परवरिश के लिए कमाने के लिए।
एक दिन मैं किसी सवारी को छोड़ने रेलवे स्टेशन गई थी। वहाँ मेरी जेठानी और बानो कहीं जा रही थी। उन्होंने मुझे नहीं देखा क्योंकि मैं सवारी को उतारकर जूती गठाने के लिए रुक गई थी। वहीं वो दोनों आपस में किसी बात में बहस करती हुई आगे जा रही थी । वो जब बिल्कुल मेरे पास से गुज़री तो मुझे सुना कि
बानो कह रही थी ‘‘आपा आपने मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी। आपके बच्चा नहीं हुआ तो आपने इतनी जिंदगियां दांव पर लगा दी।
अरे! उस ‘तांगे वाली’ के बच्चे भी तो आप ही के थे। क्या वो आपको मना करती अपने बच्चों को प्यार करने के लिए। जब राशिद उस
तांगेवाली से इतना प्यार करता था तो क्यों करवाया उससे मेरा निकाह। क्यों धमकी देती थी उनकी बहनों को फूफी के घर से निकलवाने की। मैं तो कर लेती किसी और से निकाह पर आपको औलाद चाहिए थी ना। आपके कारण मेरी जिंदगी नरक बन गई कितनी नशे की बूटी दी क्या असर हुआ राशिद पर। बस एक बच्चा देकर छोड़ गया हमेशा के लिए ।’’
उसकी बात पर मेरी जेठानी गुस्से में बोल उठी- यही सोचकर कि मेरी छोटी बहन हो राशिद को चाहती हो, घर बस जाएगा और अब बात करती है। बानो तू क्या कम है तब तो रोज कहती थी आपा राशिद से निकाह करवा दो बस बाकी सब मैं ठीक कर लूँगी ।बच्चा होने के बाद राशिद भूल जाएगा जुबैदा को। पर वो उसे नहीं भूला इसमें कमी तो तेरी ही ना बनो.. .... कहते- कहते दोनों आगे निकल गई।
मैं तो उन दोनों की बातें सुनकर हक्की-बक्की रह गई कि ये दोनों औरतें राशिद को नशे बूटी देती थी। बानो और मेरी जिठानी की बात सुनकर मेरे मन में राशिद के लिए जमी हुई नफरत की काई .... आँखों के रास्ते आँसुओं के ज्वारभाटे संग बनकर बह निकली।
मैं घर आकर खूब रोई, खूब ढपली बजाई , खूब नाची.... खूब कोसा खुद को,पगला गई थी मैं। आपा... आपा राशिद ने मुझे धोखा नहीं दिया वो दोनों औरतें बातें कर रही थी। मैं पागलों की तरह बड़बड़ाए जा रही थी।
छोटी आपा ने बच्चों को अंदर भेजा और बोली- ‘‘क्यों दिवानी हुए जा रही है, जुबैदा ! चल निकाल तेरी घोड़ागाड़ी मैं चलूँगी तेरे ससुराल राशिद से मिलने.... मैं पूछती हूँ उससे। आज उसे सारे सवालों के जवाब देने पडेंगे।
बड़ी आपा ने कहा-मैं भी चलूंगी तुम लोगों के साथ और बच्चों को छोटी बहनों को संभला कर हम तीनों बहनें राशिद के घर गए।
वहाँ पहुँचकर दरवाजे पर ताला लगा देखकर हम लोग परेशान हो गए और हैरान भी कि उन दोनों बहनों को तो हमने खुद बाहर जाते देखा है पर घर के बाकी सभी लोग कहाँ गए।
क्रमशः...

सुनीता बिश्नोलिया