Maut ka Chhalava - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मौत का छलावा - भाग 4



" अरे महाबली तुम कैसे विचलित हो उठे ? तुम तो मेरे वह शिष्य हो जो मौत से भी भयभीत नही होता। भय की झील को मन से उलेच दो। तुम प्रयास का दामन मत छोड़ो वत्स जहां से अंधेरे की शुरूआत होती है वही पर उसका अंत भी रहता है। इसलिए तुम अपने समस्त आत्मबल को एकत्र करो। मुझे विश्वास है कि तुम निश्चित ही इस जाल से निकल जाओगे, " गुरू बाबा ने सूर्यवंशी को कहा।

'एक दुखद खबर है तुम्हारे लिए सूर्यवंशी, मै चाहकर अपनी शक्तियों से भी तुम्हारी सहायता नही कर सकता। यह जो चक्र तुम्हारे इर्द-गिर्द बुना हुआ है यह कोई मायावी चक्र नही है बल्कि यौगिक शक्तियों से रचा गया है, जिस किसी ने यह रचा है वह कोई महायोगी था। यह चक्र केवल वही ही तोड़ सकता है और कोई इसे छू भी नही सकता। वह नरकंकाल, इस योगी की ताकत के कारण बहुत प्रबल हो गया है। अब मेरा तुम्हे यही मशवरा है कि तुम सबकुछ भूल कर एक ही चीज को याद रख्खो कि इस संसार मे कोई भी चीज असम्भव नही है हर असम्भव के दरम्यान ही सम्भव की नींव रख्खी रहती है। आज मुझे बहुत दुख हो रहा है पुत्र जो मै चाहकर भी तुम्हारी सहायता नही कर सकता। अब तुम प्रयास में लग जाओ और विश्वास करो की कुछ भी मुश्किल नही होता बस यह मान लो की यह थोड़ा समय औरो से ज्यादा लेगा, " गुरू बाबा ने सूर्यवंशी को समझाया। और फिर वो अंतर्ध्यान हो गये।

उनके जाने के बाद सूर्यवंशी ने मन को योग के व्दारा साधा और फिर उसके मध्य फंसी अनिश्चिता को बंधन मुक्त करवाया। गुरू बाबा से बात करने के बाद सूर्यवंशी अपने असली रूप में लौट आया था। उसने मन को अब शान्त कर लिया था फिर वह आराम से लेट गया और योगनिद्रा में सो गया। वह जानता था कि इसके अतिरिक्त और कोई तरीका नहीं है जो शरीर को इन कीडो से मुक्त करा सके 1 आज रात उसे गहरी नींद आई थी, सुबह होते ही गुफा मे प्रकाश होने लगता था। मैने अपने शरीर को ध्यान से देखा उस पर किसी भी प्रकार की कोई क्षति नही हुई थी।

गुरूदेव से मिलने का यह फायदा हुआ की मेरी शक्ति जो धीरे-2 क्षीण हो रही थी फिर जाग उठी थी। गहरी नींद लेने के बाद मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। अब मैं किसी भी स्थिति में उस नर कंकाल को खुद पर हावी नही होने दूंगा। सुबह होने के साथ वह नरकंकाल आ गया। आते ही उसने उस गुफा की बुझी मशालें फिर से जला दी थी। वह रोज जाते वक्त मशालें बुझा देता था और फिर आने के बाद जला देता था ।

उसके आने के बाद एक चीज तो काफी अच्छी हो जाती थी वह थी उन कीड़ो की आवक कीडे ऐसे गायब हो जाते थे जैसे वो इससे पहले कभी इस गुफा में थे ही नही। गुफा की हवा भी साफ लगने लगती थी। आज वह जैसे ही आया तो मुझे देखकर चौंक उठा और बोला।

" अरे सूर्यवंशी! मेरे जाने के बाद तुमने ऐसा कौनसा मंत्र पढ़ दिया की आज इस गुफा का नजारा बदला हुआ है। मै जब रोज आता था तब तुम मुझे हमेशा विचलित दिखाई पड़ते थे पर आज तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे तुम रात भर गहरी नींद मे सोये हो। मेरे पहरेदार गुलामों ने तुम्हे लगता बिल्कुल ही हैरान नहीं किया, यह कैसे हो सकता है ? एक गुलाम अपने मालिक के हुक्म को टाल दे | मै कल जाते समय यह बोलकर गया था की वो तुम्हारी जम कर खातिर करे पर यहाँ आकर देखता हूँ की वो तुझसे दोस्ती करने लगे, यह बात मुझे बिल्कुल ही पसंद नही है, " उस नर कंकाल ने मुझसे कहा और फिर जोर से अट्टहास लगाकर हंसा ।

सबसे अजीब बात यह दी की वह मुझे यह भी नही बता रहा था की वह कौन था ? जिसे मैने इतनी बड़ी सजा दी जिसके फलस्वरूप वह मेरा जानी दुश्मन बन गया। लेकिन अब मुझे सावधान रहना होगा क्यों की वह मन को पढ़ने में माहिर था। शायद वह मेरा मन पढने का प्रयास तो कर रहा था पर मैने अपने दिमाग को विचार शून्य कर दिया था। यह योग की ही एक कड़ी थी। गुरू का इशारा मेरे समझ मे आ गया था कि मुझे क्या करना ? मैने पहली शुरूआत कर दी थी। वह कंकाल थोड़ी देर चुप्पी साधे रहा फिर बोला ।

'सूर्यवंशी! यह तू क्या कर रहा है, जब से मैं आया हूँ तू मुझे हैरान H पर हैरान कर रहा है। या तो तू कुछ सोच ही नही रहा या फिर तू कुछ ऐसा कर रहा जो मेरी शक्ति की सीमा से परे है। अगर तू सोचेगा नही तो फिर मुझे कैसे पता चलेगा की तेरी मानसिक स्थिति कैसी है ? " वह नर कंकाल अब मुझे परेशान लग रहा था। पर गुरू कृपा का मुझे फायदा होने लगा था।

" पहले तो मेरे इन गुलाम कीडो को तूने सम्मोहित कर लिया और अब तू अपने दिमाग की तख्ती पर कुछ लिख नही रहा। यदि ऐसा ही चलता रहा तो मै तुझे परेशान कैसे करूंगा? तू यदि परेशान न हुआ तो यह सोच ले मेरी क्या स्थिति हो सकती? मैं पागल हो जाऊंगा। मैने यह शरीर तुझे यातना देने के लिए चिपका रखा है। वरना इस बिना हाड मांस के शरीर का मुझे क्या फायदा। मै तो आइने में अपना चेहरा ही नही देख सकता। पता तुझे गलती से एक बार मैने अपना चेहरा देख लिया था, पता है में कितना भयभीत हो गया था? वह दर्द आज भी मेरे दिल मे नेजे की तरह चुभता है। यह असहनीय दर्द का कारण कोई और नही तू है सूर्यवंशी तेरा दर्द तो कुछ भी नही है मेरा दर्द सहन करना मेरे लिये असहा हो गया है। बदले के लिए मैने यह शरीर तो धारण कर लिया पर घृणा के कारण मेरा मन पागल हो गया है। कोई भी आदमी मुझे बर्दाश्त नही कर सकता ।...