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पंजाबी भाषा

पंजाबी भाषा का इतिहास
पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा के रूप में शौरसेनी से उतरा है। शौरसेनी की पहचान मध्यकालीन उत्तर भारत की प्रमुख भाषा के रूप में की जाती है। 15 वीं शताब्दी में, सिख धर्म की उत्पत्ति पंजाब और पंजाबी नामक क्षेत्र में हुई और यह सिखों की प्रमुख भाषा बन गई।
गुरु नानक (1469-1539) पंजाबी भाषा, साहित्य और संस्कृति के जनक हैं।
पंजाबी लैंग्वेज कितनी पुरानी है?

कम से कम पिछले ३०० वर्षों से लिखित पंजाबी भाषा का मानक रूप, माझी बोली पर आधारित है, जो ऐतिहासिक माझा क्षेत्र की भाषा है।
पंजाब के बजुर्ग बताते है के पंजाब का पुराना नाम पंजअभ था , पंज का मतलब 5 नदियों और अभ का मतलब पानी | तो Punjab का नाम 5 नदियों के नाम पर रखा गया है . पंज अभ नाम से जानने के बाद पन्दर्वी सदी में सब इसे पंजाब के नाम से जानने लगे.
पंजाबी भाषा का इतिहास

15 वीं शताब्दी में, सिख धर्म की उत्पत्ति पंजाब और पंजाबी नामक क्षेत्र में हुई और यह सिखों की प्रमुख भाषा बन गई। पंजाबी उन भाषाओं में से एक है, जिसका इस्तेमाल अतीत में सिख धर्मग्रंथों को लिखने के लिए किया जाता था। गुरुमुखी लिपि में पंजाबी भाषा गुरु ग्रंथ साहिब में स्पष्ट है।

पंजाबी प्राकृत भाषाओं से विकसित हुई और बाद में अपभ्रंश (संस्कृत: अपभ्रंश, 'विचलित' या 'गैर-व्याकरणिक भाषण') 600 ईसा पूर्व से, संस्कृत मानक साहित्यिक और प्रशासनिक भाषा के रूप में विकसित हुई और प्राकृत भाषाएं भारत के विभिन्न हिस्सों में कई क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित हुईं।

पंजाबी" नाम बहुत पुराना नहीं है। "पंजाब" असल में दो फ़ारसी शब्द "पंज" और "आब" का मेल है। "पंज" का मतलब "पांच" है और "आब" का मतलब "पानी" है। इस प्रदेश का प्राचीन नाम 'सप्तसिंधु' है। भाषा के लिए "पंजाबी" शब्द 1670 ई. में हाफिज़ बरखुदार (कवि) ने पहली बार प्रयुक्त किया; किंतु इसका साधारण नाम बाद में भी "हिंदी" या "हिंदवी" रहा है, यहाँ तक कि रणजीतसिंह का दरबारी कवि हाशिम महाराज के सामने अपनी भाषा (पंजाबी) को हिंदी कहता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] वस्तुत: 19वीं सदी के अंत तक हिंदू और सिक्खों की भाषा का झुकाव ब्रजभाषा की ओर रहा है। यह अवश्य है कि मुसलमान जो इस देश की किसी भी भाषा से परिचित नहीं थे, लोकभाषा और विशेषत: लहँदी का प्रयोग करते रहे हैं। मुसलमान कवियों की भाषा सदा अरबी-फारसी लहँदी-मिश्रित पंजाबी रही है।

पिछले वर्षों में साहित्यिक पंजाबी ने नए मोड़ लिए हैं। 20वीं सदी के पूर्वार्ध में पंजाबी ने फारसी और अँगरेजी शब्दावली और प्रयोगों का ग्रहण किया, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिंदी के राजभाषा हो जाने के कारण अब इसमें अधिकाधिक संस्कृत हिंदी के शब्द आ रहे हैं।

पंजाबी और हिंदी खड़ी बोली में बहुत अंतर है। पुल्लिंग एकवचन शब्दों की आकारांत रचना और इनसे विशेषण और क्रिया का सामंजस्य, संज्ञाओं और सर्वनामों के प्रत्यक्ष और तिर्यक रूप, क्रियाओं कालादि भेद से जुड़नेवाले प्रत्यय दोनों भाषाओं में प्राय: एक से हैं। पंजाबी के कारकचिह्र इस प्रकार हैं - ने; नूँ (हिं. को); थों या ओं (हिं से); दा, दे, दी (हिं. का, के, की); विच (हिं. में)। पुंलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन तिर्यक रूप - आँ होता है, बाताँ, कुड़ियाँ, मुड्याँ, पथराँ, साधुआँ। यह स्वरसामंजस्य संज्ञा, विशेषण और क्रिया में बराबर बना रहता है, जैसे छोट्याँ मूंड्याँ, दियाँ माप्याँ नूं (हिं. छोटे लड़कों के माँ बाप को), छोटियाँ कुड़ियाँ जाँदियाँ हन्न (हिं. छोटी लड़कियाँ जाती हैं)।

ध्वनिविकास की दृष्टि से पंजाबी अभी तक अपनी प्राकृत अवस्था से बहुत आगे नहीं बढ़ी है। तुलना कीजिए पंजाबी हत्थ, कन्न, सत्त, कत्तणा, छडणा और हिंदी हाथ, कान, सात, कातना, छोड़ना आदि। पूर्वी पंजाबी में सघोष महाप्राण ध्वनियाँ (घ, झ, ढ, ध, भ) अघोष आरोही सुर के साथ बोली जाती हैं। यह पंजाबी की अपनी विशेषता है। पंजाबी बोलनेवालों की कुल संख्या करोड़ों में है।