Shivaji Maharaj the Greatest - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

शिवाजी महाराज द ग्रेटेस्ट - 7

शिवाजी महाराज और संसार के कत्लेआम

सूरत शहर ताप्ती (तापी) नदी के किनारे बसा हुआ है। समुद्री किनारा कुछ ही किलोमीटर के फासले पर है। सूरत में एक किला था। शहर में सुरक्षा की व्यवस्था नहीं थी। शिवाजी महाराज की सेना पास आते देखकर सूरत का सूबेदार किले के अंदर भाग गया। शहर पर मराठों का कब्जा हो गया। ब्रिटिश एवं डच लोगों ने अपने भंडारों की रक्षा स्वयं की।
उस समय सूरत का उत्पादन 12 लाख रुपए वार्षिक था। यह शहर व्यावसायिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। कारोबार की डेढ़ हजार वर्षों की परंपरा थी। अत्यंत विकसित शहर था। व्यापारी संपन्न थे। पश्चिमी किनारे पर नाके थे। कारोबार की उथल-पुथल थी। मक्का जाने वाले यात्रियों को इसी बंदरगाह से लाया और भेजा जाता था। यहाँ के हाजी सय्यद बेग और बहर्जी बोहरा नामक व्यापारी अत्यंत धनी थे। उन्हें समग्र संसार के धनी साहूकारों में गिना जाता था। सूरत का एक बनिया आठ कोटि रुपयों का मालिक कहा जाता था। इसके अलावा तापी नदी के किनारे अंग्रेज व डच व्यापारियों ने अपने बेशकीमती माल के भंडार बना रखे थे।
यूँ यह शहर ‘संपत्ति के मायकेेेे’ के रूप में प्रसिद्ध था। शिवाजी महाराज इस धनी शहर में आ पहुँचे। उस समय सूरत का शासन मुगल सूबेदार इनायत खान के हाथ में था।
6 जनवरी, 1664 के दिन शिवाजी महाराज सूरत के पास आकर सरहद से बाहर, बरहाणपुर के बाग में उतरे। उन्होंने दो गुप्तचरों को अपने खत के साथ शहर में भेजा। खत में लिखा था कि सूबेदार इनायत खान शहर के इन तीन धनी व्यक्तियों, हाजी सय्यद बेग, बहर्जी बोहरा व हाजी कासम को साथ लेकर मुझसे मिलें और शहर का 'हिस्सा' निश्चित करें, वरना मैं शहर को जलाकर नष्ट कर दूँगा। जब सूबेदार की ओर से इस खत का कोई जवाब न आया, तो महाराज अपने घुड़सवारों के साथ शहर में प्रवेश कर गए। शिवाजी महाराज ने सूरतवासियों को यकीन दिलाया कि मैं आप लोगों को तंग करने नहीं आया हूँ। औरंगजेब ने हमारे राज्य पर हमले करके हमें बहुत नुकसान पहुँचाया है। उसने हमारे बेशुमार लोगों की हत्याएँ की हैं। मैं उसी का बदला लेने आया हूँ।
डच व्यापारियों के भंडार के पास बहर्जी बोहरा का महलनुमा निवास दूर से नजर आता था। वहाँ से महाराज के सैनिकों ने 28 सेर हीरे मोती, पाचू, माणिक जवाहर आदि रत्न लूटे। वहाँ इतनी संपत्ति थी कि सैनिक दिन-भर लूट-लूटकर इकट्ठा करते रहे! हाजी सय्यद बेग का निवास अंग्रेजों के भंडार के पास था। वहाँ से भी बहुत खजाना लूटा गया।
शिवाजी महाराज शहर जरूर लूट रहे थे, किंतु उन्होंने एक बार भी अपना उग्र रूप नहीं दिखाया। शहर में 'रेवरेंड फादर एंब्रोज' नामक एक कापुशियन पादरी रहता था। लूटने लायक उसके पास भी बहुत कुछ था । उसका घर दिखाया भी गया, किंतु महाराज ने हमला नहीं किया। उन्होंने कहा कि पादरी लोग पवित्र होते हैं। मैं किसी पादरी को तकलीफ नहीं देना चाहता। इसी तरह सूरत में 'मोहनदास पारख' नामक एक दलाल हुआ
करता था, जो डच व्यापारियों का कारोबार सँभालता था। वह अपनी नैतिकता, दयालुता और दानशीलता के लिए मशहूर था। उसकी मौत हो चुकी थी। उसका परिवार शहर में शांति से रहता था। परिवार के पास बहुत संपत्ति है, ऐसी खबर मिली, किंतु महाराज ने कहा, “हम इस घर को हाथ नहीं लगाएँगे, क्योंकि मोहनदास पारख बहुत सज्जन व्यक्ति थे। जो इज्जत उनकी थी, वही इज्जत हम उनके परिवार को देना चाहते हैं।”
सूरत शहर से लूटा गया कीमती माल थैलों में भरकर, घोड़ों पर लादकर, महाराज राजगढ़ सुरक्षित पहुँच गए। उन्हें रोकने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। यह लूट तकरीबन साढ़े आठ कोटि की थी।
इस लूट में मुगलों के व अन्य साहूकारों के अनेक घोड़े शिवाजी महाराज के हाथ लगे थे। उन पर पहचान के लिए निशान लगाए गए। इन घोड़ों के लिए अलग से तबेले बनवाए गए।
सूरत लूटने के बाद महाराज ने बादशाह औरंगजेब को जो खत लिखा, वह इस प्रकार था—
“तुम्हारे मामा शाइस्ता खान को मैंने दंडित किया है। तुम्हारे शहर सूरत को मैंने इसलिए लूटा है कि तुम हमारे देश पर जबरन काबिज हो। हिंदुस्तान हिंदुओं का है। उस पर तुम्हारा कोई हक नहीं। दक्षिण प्रदेश पर भी तुम्हारा हक नहीं है। दक्षिण प्रदेश निजाम सरकार का है और मैं उसका मंत्री हूँ।”
इस खत का बादशाह की ओर से कोई जवाब नहीं आया।
अब सूरत के सूबेदार इनायत खान ने शिवाजी महाराज के कत्ल की योजना बनाई। समझौता करने के बहाने एक व्यक्ति को महाराज के पास भेजा गया। उस व्यक्ति ने महाराज से भेंट की और समझौते की शर्तें सामने रखीं। शर्तें सुनकर महाराज बोले, “तुम्हारा मालिक औरतों की तरह किले में छिपा बैठा है। हम उसके जैसी औरतें नहीं हैं, जो उसकी शर्तें मान लें।”
इस पर वह व्यक्ति बोला, “हम भी औरतें नहीं हैं। क्या आपको और कुछ कहना है?” इसके साथ ही उसने एक खंजर निकाल लिया, जिसे वह अपने कपड़ों में छिपाकर लाया था। जबरदस्त तेजी से वह शिवाजी महाराज की ओर झपट पड़ा। उसकी चेष्टा
कुछ ऐसी थी, जैसे अपना खंजर महाराज के पेट में भोंक ही देगा। महाराज का एक अंगरक्षक नंगी तलवार लिये वहीं नजदीक खड़ा था। उसने फौरन तलवार चलाकर उसका हाथ छाँट दिया। इसके बावजूद वह अपना हाथ इतने जोर से चला चुका था कि शिवाजी महाराज को धक्का लग ही गया। राजे गिर पड़े, साथ में वह व्यक्ति भी गिर पड़ा।
उस गद्दार को महाराज के अंगरक्षकों ने वहीं-का-वहीं मार डाला।
महाराज के सूरत शहर छोड़ने के सात-आठ दिनों बाद मुगल सेना शहर में दाखिल हुई। महाराज के डर से जो लोग सूरत से भाग गए थे। वे अभी तक वापस नहीं आए थे। मुगल सेना के आ जाने से वे धीरे-धीरे वापस लौटने लगे। सूबेदार इनायत खान अभी तक किले में ही छिपा बैठा था। लोग उसके नाम पर थूक रहे थे, गोबर फेंक रहे थे। अंग्रेज व्यापारियों ने मराठों के हमले के दौरान अच्छी बहादुरी दिखाई थी। लोग उनकी तारीफ कर रहे थे। सर ऑक्जेंडन नामक एक अंग्रेज व्यापारी था। उसकी तो विशेष ही तारीफ हो रही थी। मुगल सेनापति ने जब शहर में कदम रखे, तब ऑक्जेंडन उससे मिलने गया। सेनापति ने उससे कहा, “मैं अपनी बंदूक नीचे रखता हूँ। तुम्हारे रहते मुझे शहर की हिफाजत की कोई फिक्र नहीं। मैं तुम्हें सिर का कवच पहनाना चाहता हूँ। तुम्हें घोड़ा देना चाहता हूँ। मैं तुम्हारी कमर में अपने हाथ से तलवार बाँधना चाहता हूँ। तुम्हें उचित सम्मान मिलना ही चाहिए।”
इस पर ऑक्जेंडन ने कहा, “ऐसा पहनावा योद्धाओं के लिए उचित है। मैं योद्धा नहीं हूँ। हम व्यापारी हैं। हमारे व्यापार के लिए आपके बादशाह-सलामत से कुछ रियायतें मिल जाएँ, इतना ही चाहते हैं।”
बादशाह औरंगजेब ने सूरत के व्यापारियों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की और उन्हें जो नुकसान हुआ था, उसमें राहत देने के लिए उनके माल पर एक वर्ष का कर माफ कर दिया। अंग्रेजों की तरह डच व्यापारियों ने भी हिम्मत के साथ लूट को रोकने की कोशिश की थी। बादशाह ने उनके माल पर एक प्रतिशत कर माफ कर दिया।
लूट व आक्रमण के समय में शिवाजी ने जो उच्च कोटि का संयम दरशाया, उसकी तुलना ईरान के नादिर शाह की नीचता से अवश्य की जानी चाहिए।

नादिर शाह ने सन् 1739 में भारत पर आक्रमण किया। उसकी सेना में सैनिकों की तादाद मुगलों की बनिस्बत भले ही कम थी, किंतु उसने अपने शौर्य एवं कुशल रणनीति के बल पर मुगलों को पराजित कर दिया। इतना ही नहीं, उसने तत्कालीन मुगल सम्राट महम्मद शाह को बंदी बना लिया और उसके पैरों में जंजीरें डाल दीं। जबरदस्त आतंक के साथ नादिर शाह ने राजधानी दिल्ली में प्रवेश किया था। तभी वहाँ अफवाह फैल गई कि नादिर शाह का वध हो गया है। कुछ मुगल सैनिक
इस अफवाह से जोश में आ गए। उतावले होकर उन्होंने कुछ पर्शियन सैनिकों को मार डाला। अपने सैनिकों के बेवजह मारे जाने का समाचार सुनकर नादिर शाह का खून खौल उठा। उसने म्यान से तलवार निकालकर गर्जना की, “कत्लेआम ! जब तक हमारे हाथ में नंगी तलवार है, तब तक कत्लेआम किया जाए। जो भी दिखाई पड़े, काट डालो। औरतों और बच्चों को भी मत बख्शो।”
पर्शियन सैनिकों ने नादिर शाह के हुक्म का अक्षरशः पालन किया । गली-कूचे, गलियाँ-सड़कें खून से सन गईं। अंधाधुंध हत्याओं से प्रलय जैसा हाहाकार मच गया। वह दिन था 11 मार्च 1739, जब एक ही दिन में करीब 30 हजार बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, यहाँ तक कि दिल्ली की इमारतों को भी न छोड़ा गया। उन्हें भी बरबाद कर दिया गया। पूरी दिल्ली तबाह हो गई।
दिल्ली के सम्राट् मुहम्मद शाह की हालत दयनीय थी। वह अपनी प्रजा के लिए जीवनदान माँगने की स्थिति में आ गया। मुहम्मद शाह ने नादिर शाह से निर्दोष प्रजा के जीवन की भीख माँगी । तब नादिर शाह थोड़ा शांत हुआ, किंतु उसने कत्लेआम रोकने के लिए एक शर्त रखी। शाही खजाने की चाबी उसने अपने अधिकार में ले ली और शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया रत्नजड़ित मयूर सिंहासन भी जब्त कर लिया।
भविष्य में यही मयूर सिंहासन पर्शिया के बुलंद शौर्य का प्रतीक माना गया। मयूर सिंहासन के अलावा असंख्य हीरे-जवाहरात के साथ 'कोहिनूर और दरिया-ए-नूर' ये दो अनमोल हीरे भी नादिर शाह के कब्जे में चले गए।
इस लूट में नादिर शाह को इतनी अधिक संपत्ति मिली कि उसने अपनी प्रजा यानी ईरान की प्रजा को तीन वर्ष के लिए कर मुक्त कर दिया।

संसार के सबसे भयानक कत्लेआम चंगेज खान ने किए थे। उसने तत्कालीन संसार की 17 प्रतिशत आबादी, यानी 6 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतारा था। इस प्रकार के कत्लेआमों का ब्योरा आगे दिया गया है।

संदर्भ—
1. छत्रपति शिवाजी महाराज / कृ.अ. केलूसकर
2. छत्रपति शिवाजी / सेतुमाधवराव पगड़ी
3. Shivaji: His Life & Times / G.B. Mehendale.