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आवारा जानवरों के खतरे

आवारा   जानवरों के खतरे 

                                          यशवंत  कोठारी 

 

 इधर कुछ वर्षों में शहर में आवारा  जानवरों  के झुण्ड के झुण्ड सड़कों, गलियों , चौराहों पर विचरते रहते हैं।  आवारा  बन्दर, आवारा  कुत्ते,आवारा  गायें , सूअर   हर तरफ दिखाई  देते हैं , सरकार नगर निगम , अन्य संस्थाएं कुछ नहीं कर ती  हैं 

बन्दर अक्सर लोगो को काट  लेते हैं , कुत्तो के कारन गली मोहल्ले  में चलना मुश्किल हो गया हैं।  औरते , बच्चे , वृद्ध 

 सब से ज्यादा परेशां होते हैं 

 वैसे भी पैदल आना  जाना मुश्किल हैं क्योकि पैदल वालों के लिए कोई जगह ही नहीं बची हैं , कोढ़ में खाज  की तरह ये आवारा  जानवर 

जो अक्सरकिसि न किसी दुर्घटना को न्योता देते  रहते हैं 

धर्म प्राणी लोग इनको सड़क पर खाने पिने का डाल  देते हैं और यह भीड़ राहगीरों को परेशां करती हैं  गली मोहल्लों मेंभी खाने पिने का सामान मकानों के बहार इन जानवरों को आकर्षित करता हैं  अक्सर दो पहिया  वाहन , चालक, पैदल यात्री ,स्कूल जाने वाले बच्चे इन सब समस्याओं से रोज रूबरू होते हैं 

शहर  का वौल्ड सिटी एरिया सबसे ज्यादा प्रभावित होतेहैं 

कई   लोग  गायों   को मंदिरों के आसपास छोड़ देते हैं  शाम को मोटर साइकिल के सहरे उन गायों को वापस खदेड़ते  हुए लेजाते  हैं , सड़क पर दौड़ते हैं  अक्सर यातायात में परेशानी आती हैं 

घरों में बंदरों का आतंक इतना की छत पर नहीं जासकते।  बंदरों के काटने पर भी रैबीज के इंजेक्शन लगते हैं , में खुद भी भुक्त भोगी हु 

पार्कों में लोग कुत्ते लेकर आजाते हैं घूमना  मुश्किल हो जाता हैं 

परकोटे के बाजार, मोहल्ले.सभी इस समस्या से तृस्त   हैंआवारा  जानवर कभी भी किसी के भी पीछे पड़  जाते हैं ,काट   लेते हैं  हैं घबरा कर  आदमी दुर्घटना  ग्रस्त हो जाता हे  

नगर निगम ठेका प्रथा से चलती हैं काम होता नहीं हैं 

बन्दर गलता . की पहाड़ियों से आते हैं जंगल खत्म हो गए हैं , पीनी खाने को कुछ नहीं मिलने के कारन    ये जानवर भी परेशां हैं  मानव बस्तियों ने इनकी आज़ादी छीन ली हैं।  ये बेचारे जाये तो जाये कहाँ 

इस शहर में लग भाग ४५ वर्षो  से विकास देख रहा हूँ ,लेकिन विकास के ये दुखद परिणाम आने लग  गए हैं 

आवारा   जानवरों से शहर  कोबचने के लिए  कारगर   उपायों  कि सक्त   जरूरत हैं

अख़बारों में प्रकाशित रपटों के अनुसार नगर निगम कुछ बंदरों को ही पकड़ पता हैं, कुत्तो  गायों को पकड़ने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं हैं 

अन्य एजेंसियां  कुछ नहीं करती हैं 

 इन जानवरों के कारन ट्रेफिक  व्यव्श्था भी बिगड़ती हैं    बिच सड़क पर बैठे ये जानवर  दुर्घटना को निमंत्रन  देते हैं 

बंदरों की परेशानी भरी हैं , फल, सब्जी, कपडे कुछ भी नहीं छोड़ते हैं , 

लगे हाथ एक सुझाव और -  शहर की समस्याओं से निपटने वाली तिन संस्थाएं हैं १-नगर निगम २-जयपुर विकास प्राधिकरण ३- कलक्टर 

 इन तीनो संस्थाओं में कोई ताल मेल नहीं हैं 

 उचित होगा की इन तीनो संस्थाओं के ऊपर एक वरिष्ठ आई ए  एस   अधिकारों हो जो इन संस्थाओं मे  ताल मेल कर शहर की समस्या ओ   को समझे व् निराकरण करे  

आवारा जानवर आवारा  भीड़ से ज्यादा खतरनाक होते हैं सरकार को समझना चाहिए , ००० 

यशवंत कोठारी 

८६, लक्षमी नगर 

ब्रह्मपुरी 

जयपुर -२