Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 157 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 157

जीवन सूत्र 471 अच्छे कर्म करना अर्थात ईश्वर में स्वयं को जीना


जो सब में ईश्वर को देखता है, वह अपनी व्यापक दृष्टि के कारण ईश्वर तत्व के परिवेश में जीता है। वह सृष्टि के कण-कण में ईश्वर को देखता है। अर्जुन को भक्त प्रहलाद की कथा का स्मरण हो आया। हिरण्यकश्यप ने पूछा था - कहां है तेरा ईश्वर?



जीवन सूत्र 472 कण कण में हैं ईश्वर



प्रह्लाद ने कहा था- हर जगह हैं ईश्वर। जल में,थल में, वायु में ,आकाश में, वृक्षों में ,पौधों पत्तों में, पर्वत में, हर कहीं ईश्वर हैं। कहां नहीं हैं ईश्वर?

हिरण्यकश्यप: तो क्या इस खंबे में में भी है तुम्हारा ईश्वर?

प्रह्लाद: हां,वे इसमें भी हैं।



अर्जुन के मौन को भांपते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा:पार्थ! किस सोच में डूब गए?

अर्जुन :कुछ नहीं वासुदेव ! आपने ईश्वर की अवधारणा को इतना विस्तार दे दिया है कि मुझे भी हर कहीं उस ईश्वर की प्रतीति हो रही है। मैं आंख बंद करता हूं,तो आप दिखाई देते हैं।

श्री कृष्ण: और ईश्वर केवल सब जगह दिखाई ही नहीं देते हैं अर्जुन, बल्कि साधक जो भी दैनिक कार्य करता है तो समझ लो कि वह ईश्वर के लिए यह कर रहा है। ईश्वर का कार्य कर रहा है। ईश्वर में डूब कर कार्य कर रहा है। कुल मिलाकर उसका हर कार्य व्यापार ईश्वर के साथ है।


जीवन सूत्र 473 ईश्वर को देखने विशेष दृष्टिकोण आवश्यक


अर्जुन: हे प्रभु! ऐसी व्यापक दृष्टि मुझमें कब विकसित होगी?

श्री कृष्ण ने हंसते हुए कहा: तुम केवल एक श्रेष्ठ योद्धा ही नहीं बल्कि एक संवेदनशील मानव भी हो। इसी संवेदना ने तुम्हारे भीतर भीषण रक्तपात को लेकर संदेह भी व्यक्त कर दिया।


जीवन सूत्र 474 संवेदना ईश्वर को प्राप्त करने की एक आवश्यक शर्त


संवेदना की अति मात्रा सही नहीं है और यही मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन उस संवेदना का स्वयं के भीतर होना उस ईश्वर तत्व को पाने की ललक का प्रारंभिक चरण है।


सूत्र 475 सब कुछ करते हुए भी कुछ नहीं करना अर्थात दुष्प्रभावों से बचे रह पाना


आज का प्रसंग गीता के इस श्लोक पर आधारित है: -

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।

सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते।।6/31।।

मुझमें एकीभाव से स्थित हुआ जो योगी सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित मेरा ध्यान और स्मरण करता है, वह सब कुछ बर्ताव करता हुआ भी मुझ में ही बर्ताव कर रहा होता है।


आज की गद्य कविता


अगर गर्भ में बच गई

तो धरती पर आने के बाद

कई तरह की वर्जनाओं

और बंधनों में जकड़ी

कदम - कदम पर

यह करो वह मत करो

और ऊंच-नीच से बचने की

स्थाई चेतावनी लिए

जीवन का हर कदम

कभी सड़क पर

घूरती निगाहों का सामना

कभी इकतरफा सनकीपन में

हिंसा का सामना

तो कभी आत्मा तक को

तार-तार कर देने वाली घटनाएं

और बचते-बचाते

समाज की थोपी मर्यादाएं ढोते-ढोते

और अघोषित आचरण संहिता

का पालन करते-करते

गृहस्थी के पहिए की

एकमात्र धुरी,

अब घर और बाहर दोनों जगह

के दायित्व को संभालती

वह भारतीय नारी…

सैल्यूट!

धिक! समाज के कुछ ऐसे

नारी विरोधी मानसिकता के लोग!


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय




(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय