Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 166 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 166

जीवन सूत्र 509 खुशहाली के दीप जले


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है -

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।

नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।10/11।।


इसका अर्थ है,हे अर्जुन!भक्तों पर कृपा करनेके लिये ही उनमें आत्मतत्व के रूप में रहनेवाला मैं उनके अज्ञानजन्य अन्धकारको प्रकाशमय ज्ञानरूप दीपक के द्वारा पूरी तरह नष्ट कर देता हूँ।

यह श्री कृष्ण द्वारा अपने भक्तों के लिए सबसे बड़ी घोषणा है।उनके ध्यान में लगे हुए भक्तों को वे तत्व ज्ञान रूपी योग प्रदान करते हैं। वे स्वयं उनके अंतः करण में स्थित हो जाते हैं और जिस तरह दीपक अंधेरे को नष्ट करता है उसी तरह से वे ज्ञान से भक्तों के अज्ञान को नष्ट कर उसे ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। पांच दिवसीय दीपोत्सव में हमें सृष्टि के कण-कण में समाहित इस प्रकाश को हमारे मन आंगन, घर के कोने - कोने से लेकर अपने पासपड़ोस और पूरे समाज तक प्रसारित करने में अपनी भूमिका निभानी होती है।एक अकेला दीपक अमावस के घोर तिमिर से लड़ता रहता है।निःसंदेह अंधेरे को दूर करने के लिए उजाले का अस्तित्व है और अंधेरा प्रकाश की एक रेख के आगे बुरी तरह परास्त हो जाता है।अंधेरे के अभाव का अर्थ ही प्रकाश है,ऊर्जा है,चेतना है।


जीवन सूत्र 510 प्रकाश की एक किरण से भी परास्त हो जाता है घनघोर अंधेरा


वहीं इसके विपरीत जहां प्रकाश क्षीण होता है,वहां अंधेरे का पसरना शुरू हो जाता है।जीवन में निराशा के घोर तिमिर के क्षणों में भी अगर हमारे मन में प्रकाश की एक हल्की सी भी रेख है, तो यह आशा की एक किरण अंधेरे की लंबी से लंबी श्रृंखला को तोड़ने में सक्षम है।

संस्कृत का एक प्रसिद्ध श्लोक है-

दीपज्योति: परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दन:

दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।

इसका अर्थ है दीपक की ज्योति परमब्रह्म(के समान प्रकाशित)है।दीप की ज्योति जनार्दन है।दीपक की ज्योति मेरे पापों का नाश करती है।उस दीप की ज्योति को नमस्कार है।

आइए मिलकर इस दीपोत्सव में अंधेरे को परास्त करने के लिए आशा और विश्वास का एक दीप जलाएं।


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय