Mahantam Ganitagya Shrinivas Ramanujan - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 21

[ रामानुजन के विविध कार्यक्षेत्र ]
रामानुजन को गणित में 'संख्या-शास्त्र (नंबर थ्योरी) का द्रष्टा ऋषि' कहना ठीक होगा। आधुनिक समय में
प्रचलित नामावली के अनुसार कहें तो उनके कार्य को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त माना जाता है—
निश्चयात्मक अवकलन-सूत्र (Definite integrals)
मॉडुलर समीकरण (Modular equations)
रीमान्स-जीटा फलन (Riemann's zeta function)
अनंत श्रेणियाँ (Infinite series)
अनंत श्रेणियों का योग (Summation of series)
एनालिटिक संख्या-शास्त्र (Analytic number-theory)
अस्मटोटिक सूत्र (Asymptotic formula)
विभक्तियाँ (Partitions)
संयोजन-शास्त्र (Combinatorics )
जैसाकि पहले लिख आए हैं, कैंब्रिज जाने से पूर्व रामानुजन के पास प्रकाशन-योग्य बहुत सामग्री थी। वह और उनके मित्र उस सामग्री को प्रकाशित करने के लिए उत्सुक थे। प्रो. हार्डी का पहला पत्र मिलने के बाद उनका काफी उत्साहवर्धन हुआ था और उन्होंने कुछ शोधपत्र 'जरनल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में प्रकाशन के लिए भेजे थे। ऐसा करने में उनके मित्र श्री नारायण अय्यर की विशेष भूमिका रही थी। इनमें कुछ निष्कर्ष रूढ़ पूर्णांकों (प्राइम नंबर्स) पर थे। कुछ की उपपत्तियाँ नहीं दी गई थीं। केवल यह लिखकर छोड़ दिया गया था कि 'उपपत्ति बाद में दी जाएगी'। वास्तव में कुछ की उपपत्तियाँ बाद में भी संभव नहीं हुईं। हाँ, कैंब्रिज जाने से पूर्व पाँच शोध-लेख 'जरनल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में छपे।
कैंब्रिज पहुँचकर उन्होंने भारत में किए अपने कार्य के आधार पर लेख, 'मॉडुलर इक्वेशंस एंड अप्रोक्सीमेशंस ऑफ पाई' लिखा। इस लेख में निष्कर्ष उपपत्तियों के साथ दिए गए थे। इसे तैयार करने में प्रो. हार्डी तथा वहाँ के अन्य लोगों की सम्मति का लाभ भी उन्हें मिला था। यह शोध-लेख सन् 1914 में 'क्वार्टरली जर्नल ऑफ मैथेमेटिक्स' में प्रकाशित हुआ। बाद में पहले वर्ष में ही उन्होंने एक लंबा शोध-लेख 'हाईली कंपोजिट नंबर्स' लिखा, जो सन् 1915 में 'प्रोसीडिंग ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में प्रकाशित हुआ। यह लेख 62 पृष्ठों का
है। इसमें 269 समीकरण हैं। यही रामानुजन का सबसे लंबा लेख है।
उनके शोध-लेख सन् 1911 से 1921 तक प्रकाशित हुए। उनमें से 11 शोध-लेख 'जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में, 8 प्रोसीडिंग ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी में, 4 क्वार्टरली जर्नल ऑफ मैथेमेटिक्स में, 4 प्रोसीडिंग ऑफ कैब्रिज मैथेमेटिकल सोसाइटी में, 5 मैसेंजर ऑफ मैथेमेटिक्स में, 2 ट्रांजेक्शन ऑफ कैंब्रिज मैथेमेटिकल सोसाइटी तथा 1-1 मैथेमेटिश्चे साइटशिफ्ट, प्रोसीडिंग ऑफ रॉयल सोसाइटी तथा कौँते-रेंदू में प्रकाशित हैं। इस प्रकार प्रकाशित 37 शोध-लेखों में 5 प्रो. हार्डी के साथ हैं।
ऊपर लिखे 37 शोध-लेखों को बाद में संगृहीत करके 'कलॅक्टेड पेपर्स बाई रामानुजन' के नाम से जी. एच. हार्डी, पी. वी. शेषु अय्यर तथा बी. एम. विल्सन के संपादन में प्रकाशित किया गया है, जिनको पहले सन् 1927 मेंें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और बाद में, 1962 में चेल्सि ने प्रकाशित किया हैै।

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[ रामानुजन के विविध कार्यक्षेत्र ]
रामानुजन को गणित में 'संख्या-शास्त्र (नंबर थ्योरी) का द्रष्टा ऋषि' कहना ठीक होगा। आधुनिक समय में
प्रचलित नामावली के अनुसार कहें तो उनके कार्य को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त माना जाता है—
निश्चयात्मक अवकलन-सूत्र (Definite integrals)
मॉडुलर समीकरण (Modular equations)
रीमान्स-जीटा फलन (Riemann's zeta function)
अनंत श्रेणियाँ (Infinite series)
अनंत श्रेणियों का योग (Summation of series)
एनालिटिक संख्या-शास्त्र (Analytic number-theory)
अस्मटोटिक सूत्र (Asymptotic formula)
विभक्तियाँ (Partitions)
संयोजन-शास्त्र (Combinatorics )
जैसाकि पहले लिख आए हैं, कैंब्रिज जाने से पूर्व रामानुजन के पास प्रकाशन-योग्य बहुत सामग्री थी। वह और उनके मित्र उस सामग्री को प्रकाशित करने के लिए उत्सुक थे। प्रो. हार्डी का पहला पत्र मिलने के बाद उनका काफी उत्साहवर्धन हुआ था और उन्होंने कुछ शोधपत्र 'जरनल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में प्रकाशन के लिए भेजे थे। ऐसा करने में उनके मित्र श्री नारायण अय्यर की विशेष भूमिका रही थी। इनमें कुछ निष्कर्ष रूढ़ पूर्णांकों (प्राइम नंबर्स) पर थे। कुछ की उपपत्तियाँ नहीं दी गई थीं। केवल यह लिखकर छोड़ दिया गया था कि 'उपपत्ति बाद में दी जाएगी'। वास्तव में कुछ की उपपत्तियाँ बाद में भी संभव नहीं हुईं। हाँ, कैंब्रिज जाने से पूर्व पाँच शोध-लेख 'जरनल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में छपे।
कैंब्रिज पहुँचकर उन्होंने भारत में किए अपने कार्य के आधार पर लेख, 'मॉडुलर इक्वेशंस एंड अप्रोक्सीमेशंस ऑफ पाई' लिखा। इस लेख में निष्कर्ष उपपत्तियों के साथ दिए गए थे। इसे तैयार करने में प्रो. हार्डी तथा वहाँ के अन्य लोगों की सम्मति का लाभ भी उन्हें मिला था। यह शोध-लेख सन् 1914 में 'क्वार्टरली जर्नल ऑफ मैथेमेटिक्स' में प्रकाशित हुआ। बाद में पहले वर्ष में ही उन्होंने एक लंबा शोध-लेख 'हाईली कंपोजिट नंबर्स' लिखा, जो सन् 1915 में 'प्रोसीडिंग ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में प्रकाशित हुआ। यह लेख 62 पृष्ठों का
है। इसमें 269 समीकरण हैं। यही रामानुजन का सबसे लंबा लेख है।
उनके शोध-लेख सन् 1911 से 1921 तक प्रकाशित हुए। उनमें से 11 शोध-लेख 'जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी' में, 8 प्रोसीडिंग ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी में, 4 क्वार्टरली जर्नल ऑफ मैथेमेटिक्स में, 4 प्रोसीडिंग ऑफ कैब्रिज मैथेमेटिकल सोसाइटी में, 5 मैसेंजर ऑफ मैथेमेटिक्स में, 2 ट्रांजेक्शन ऑफ कैंब्रिज मैथेमेटिकल सोसाइटी तथा 1-1 मैथेमेटिश्चे साइटशिफ्ट, प्रोसीडिंग ऑफ रॉयल सोसाइटी तथा कौँते-रेंदू में प्रकाशित हैं। इस प्रकार प्रकाशित 37 शोध-लेखों में 5 प्रो. हार्डी के साथ हैं।
ऊपर लिखे 37 शोध-लेखों को बाद में संगृहीत करके 'कलॅक्टेड पेपर्स बाई रामानुजन' के नाम से जी. एच. हार्डी, पी. वी. शेषु अय्यर तथा बी. एम. विल्सन के संपादन में प्रकाशित किया गया है, जिनको पहले सन् 1927 मेंें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और बाद में, 1962 में चेल्सि ने प्रकाशित किया हैै।