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खामोशिया.....

खामोशिया अपनी कहे किस से ...
जज्बत जज्बात ही रह गए
हम पास आकर भी दूर हो गए

हम तो लिख कर दर्द कम करते है
वो सरेआम दोस्तो मे बदनाम करते है
लोग कहते है बुक लिखा करो
हम क्या बता ए
FB.YQ.WT TG SC IG...
हम सब जगह उनके चर्च कर आए
नाम पूछते है लोग उनका तो हम बताते नही
हम ऐसे ही है जनाब उनके ख्वाब दिल से मिटाते नही है
मेरी तकलीफ का तकाजा नही होगा शायद तुम्हे
हम दर्द लिखते है बताते नही...
मेरी फ़तरत बदल जाने की नही
शायद इसीलिए आज तुझे मेरी कदर नही...

बहुत दर्द है ऐ जान ए अदा तेरी मोहब्बत मे
कैसे कहू की तुझे वफा निभनी नही आती

कीतना लुफ्त ले रहे है लोग मेरे दर्दे गम का
ये इश्क देख तुने मेरा तमाशा बना दिया...

कही शेरो नजमा बन के कही ऑसू ओ मे ढल के
वो मुझे मिले तो लेकिन क ई सूरते बदल कर

हाथो की लकीर पढ कर रो देता है मैरा दिल
सब कुछ तो है पर तेरा नाम क्यो नही.....

वो मेरी ख़ामोशी मेरी तकलीफ नही समझता
जख्म देता है पर मरहम नही समझता ......
कर तू जो तेरा दिल करे
पर मत कर तु वो जो तेरा दिमाग कहे
दिल की दिवानगी देख ली तेरी
अब बात दिमाग की आई है...
रखा सालो तूने सालो तक के चाट काल को
ना रखा तो वो था मेरा दिल
कायरो की तरह काम न कर तू मामूली नही खास बदा है
अब करना तो किसी के साथ ऐसा ट्रस्ट तो किसी के नाम पर छल मत करना...
जो तुझे अपना माने तू उसे अपना मानना
भरोशा कर भरोशा उतना ही कहना
जिस पे तुम भरोशा कर पाए
यूही नही कीसी के भरोस शक मे रखना....
मे तो जान ली तुम्ह
कोई और नही जान पाए गा.....
तू सबका तो होगा पर कीसी का ना हो जाए गा...
मत भूल तू ही मेरे पिछे आया मे तो YQ छोड यहा चला आया
तुझे पता भी नही बताय चुप चाप तुझ पे इतना वक्त बिताया
पर क्यो तू यहा भी आया पर छोड तू आततक मुझे समझ पाया
मैरी खामोश नजरे पढ लिया करता था कभी
आज लफज भी फिजूल लगते है तुम्ह मेरे
फीतरत तु ही बता कीसकी रही बदल जाने की तेरी या मैरी
मे तो आज भी तुझे भला समझता हू
और तू मेरे पीठ पीछे सबूत इकट्टा करती हो इतना शक क्यो
कोन समझेगा तुम्ह आज तक साफ दिल नही समझ सकी
फर्क बस इतना तू जैसी मिली आज तक सब वैसी ही मीली
एक सवाल जिसका जवाब ना मिला
इतना शक करना तुझे किसने सीखाया
किसी के भरोशे का फायदा उठाना कोई आप से सिखे
किसी की हसी छिन कर गम देना कोई आप से सिखे...


खामोशी.... दो शब्द.....

खामोशी को हमसफ़र बना के चलता हू
भावनाओ को मुस्कुराहट मे छीपा कर रखता हू
क्या करू मुझ जैसा मिला नही कोई
आईने मे अपनी परछाई ढुढता हू
लगता है कही देखा है तुम्हे
ये सवाल हमेशा अपने आप से पुछता हू
क्या करू मूझ जैसा मिला न कोई
दिखने मे खुशनुमा लगता हू
हर एक गम लफज मे कैद रखता हू
तेरे इस बनाये जहा मे सबका पता होता है
इसलिए मे गूमशुदा ठिकाना ढुढता हू
क्या करू कोई मिला ही नही मैरे जैसा..