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कोयल


कोयल
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हर्ष -हर्षिता अपनी दादी के साथ एक बगीचे में बैठ कर बातें कर रहे थे। तभी उन्हें कोयल का मधुर स्वर सुनाई दिया वे चहक उठे। हर्ष ने कहा, "दादी कोयल कितना मीठा गाती है।" हर्षिता ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई।
दादी हँसकर बोली, "यह कोयल नहीं कोयला की मधुर आवाज़ है। कोयल नहीं बल्कि नर कोयल यह मधुर आवाज़ निकालता है।" हर्ष और हर्षिता दोनों अचरज से दादी को देखने लगे। दादी ने उनसे कहा, "मैं तुम लोगों को कोयल के बारे में बताती हूँ ताकि तुम अपने दोस्तों को भी इस बारे में बता सको।"

हर्ष -हर्षिता दोनों दादी की बात बड़े गौर से सुनने लगे।
कोयल जाना पहचाना पक्षी है। जिसे सभी जानते हैं। कोयल को कोकिला या कुक्कू के नामों से भी पुकारा जाता है। इसकी मधुर आवाज के कारण ही लोग इसकी ओर आकर्षित होते हैं। कोयल को मीठी बोली वाला पक्षी माना जाता है। दादी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, " नर कोयल का रंग नीलापन लिए काला होता है और मादा कोयल तीतर पक्षी की तरह धब्बेदार चितकबरी होती है। नर कोयल ही गाता है। उसकी आँखें लाल व पंख पीछे की ओर लंबे होते हैं। इनकी चोंच घुमावदार और पैनी होती है।


दादी की बातें सुन कर हर्ष ने पूछा, दादी कोयल कहाँ रहती है और ये दिखाई भी नही देती?

दादी ने कहा, " कोयल बगीचे या जंगल में पेड़ पर रहती है। आम का पेड़ और मोलश्री का पेड़ उसका प्रिय पेड़ है। वह अक्सर घने पेड़ों पर ही रहती है। कोयल स्वभाव से संकोची होती है इसलिए वह छुपकर ही रहती है । उसकी प्रिय ऋतु वसंत है। वसंत में वह मधुर स्वर निकालती है।

दादी कोयल क्या खाती है? हर्षिता ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

दादी ने बड़े प्यार से हर्षिता से कहा, कोयल का भोजन कीड़े, मकोड़े है। वह मकड़ी, कीट-पतंगे, लार्वा और तितली आदि खाना पसंद करती है।

बच्चों तुम्हें पता है कि कोयल को चालाक पक्षी भी माना जाता है। वह दूसरे पक्षियों के घोंसले से अंडे खा जाती है और अपने अंडे उसके घोंसले में रख देती है ऐसे में वह बेचारा पक्षी जाने-अनजाने में कोयल के ही अंडो को सेता है। खास कर वह अंडे कौए के घोंसले में रख देती है। कौआ उन्हें अपने अंडे समझकर सेता है। कोयल के बच्चे बड़े होने पर फुर्र से उड़ जाते हैं। ।

ओह! तो कोयल इतनी चालाक होती है हर्ष -हर्षिता ने विस्मय से कहा।

दादी ने हंसकर हामी भरी। सब लोग घर जाने के लिए निकल पड़े। दूर से कोयल की आवाज सुनकर हर्षिता ने कहा ,"देखो कोयल बोल रही है।"
हर्ष ने दादी की ओर देख कर कहा ,"कोयल नहीं कोयला बोल रहा है ।" दादी के संग दोनों जोर से हँस पड़े। फिर दादी ने अपनी मधुर आवाज में गाना शुरू किया -
धरती कितनी सुंदर है अपनी
फूलों से आती खूशबू है भीनी
पेड़ों पर पंछी गाते हैं ,लुभाते हैं
देख- देख कर हम बनते हैं ज्ञानी।

बच्चों जग में काम से ही होता नाम
कितनी अच्छी बीत गई आज की शाम
खेल -खेल में तुम अपना ज्ञान बढ़ाना
रह जाएगा यहाँ सिर्फ तुम्हारा नेक काम ।
दादी के संग बच्चे भी गुनगुनाते हुए तेज कदमों से घर की ओर चल पड़े।

आभा दवे
मुंबई