Kile ka Rahashy - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

किले का रहस्य - भाग 9

रात के 12 बज रहे थे और अमित व अवंतिका दोनों किले

की ओर आहिस्ता आहिस्ता चले जा रहे थे।

सारे दिन का अथक परिश्रम भी उन्हें विचलित नहीं कर रहा

था

दोनों के अंदर एक ही जज्बा था इस अंतिम राज़ को जानने

का

और वो यह तो समझ चुके थे कि कि इस राज़ पर पर्दा डालने के लिये ही ये डरावनी अफवाहें फैलाई गई हैं।

वातावरण बहुत भयावह था। घुप्प अंधेरी काली स्याह रात।

आसमान पर अचानक बादल छा ही गये, ऊपर बादलों के गरजने का शोर तो नीचे चमगादड़ों की आवाजें कानों के पर्दों पर हमला कर रहीं थीं।

ऊपर तड़ित की भयंकर गर्जना तो नीचे भागते हुए घुंघरुओं की आवाजे सन्नाटे को चीर कर भयंकर बना रहीं थी ।

लेकिन उन दोनों ने भय को मुट्ठी में बांध लिया था।

अमित फुसफुसाया अवंतिका भूल कर भी मोबाइल आन मत करना जरा सी चमक भी हमारी उपस्थिति बता सकती है।

अवंतिका भी फुसफुसाई हां अमित हमें इस अंधेरे में ही

चलना है।

दोनों ने एक दूसरे के हाथ कस कर पकड़ रखे थे, दोनों बहुत धीमी गति से दूसरे हाथ से टटोल टटोल कर चल रहे थे, नीचे धरातल पर पत्थर भी तो टूटे फूटे पड़े थे।

अचानक बिजली चमकी और उसकी चमक में बड़ सा खभा

दिखाई दिया।

अवंतिका फुसफुसाई । चलो अमित उस खंभे की ओट में खड़े हो जाते हैं।

वो दोनों जाकर उस खंभे की ओट में खड़े हो गये। वहां से वो झोंपड़ियाँ साफ दिखाई दे रही थीं क्यों कि उनमें अंदर दीपक या लालटेनों की पूरी रौशनी थी।

कुछ देर बाद उन्होंने देखा 4 गाड़ियां झोंपड़ियों के बाहर आकर खड़ी हो गई, और उनमें से उतर कर 6 व्यक्ति। किले की ओर ही आ रहे थे।

मोबाइल में समय देखा, रात के 1 बज रहे थे,

दोनों ने ही अपनी नजरें उन 6 पर जमा रखी थी।

उनके हाथों में काले रंग के काफी बड़े बड़े बैग्स थे।

चाल अकड़ी हुई और तेज थी, आगे वाले दो तो विदेशी लग रहे थे। क्यों कि उन दोनों ने टार्च जला रखी थी, इसलिये उनका चेहरा साफ दिख रहा था। पीछे वालों ने अपनी पीठ पर काले बैग्स डाल रखे थे, वो मजदूर से लग रहे थे।

अमित और अवंतिका सांस रोके उन लोगों को किले में आते हुए देख रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे वो उन दोनों की तरफ ही आ रहे हों।

हे भगवान यह बिजली क्यों रह रह कर चमक रही है,

कहीं ऐसा ना हो बिजली की चमक में वो लोग उन दोनों को देख लें। रक्षा करो प्रभु।

लेकिन बिजली की चमक तो बार बार उन 6 पर ही पड़ रही

थी।

वो सब किले के अंदर घुस चुके थे और द्रुत गति से आगे की ओर जा रहे थे।

अमित अवंतिका के कान में फुसफुसाया चलो थोड़ी दूरी रखते हुए उनका पीछा करते हैं।

लेकिन वो उस अंधियारी सुरंग में नहीं घुसे उसके आगे के गलियारे में बड़ गये।

वो किले के घुमावदार गलियारे पर चल रहे थे करीब 15 मिनट चलने के बाद वो एक बड़े से फाटक पर रुक गये।

आगे वालों ने एक बड़ी सी चाबी को एक बड़े से ताले में घुमाया, चर्रमर्र की आवाज से ताला खुल गया।

दरवाजा भारी भरकम जंजीरों से भी बंद था उन्होंने जंजीरों के ताले खोलकर जंजीरों के फेरे खोले फिर दरवाजा खोल दिया।

अब उन्हें यह तो पता था नहीं कि उनका पीछा किया जा रहा

है।

इसलिये उन्होंने दरवाजे को खुला ही छोड़ दिया और उस खंडहर से पड़े हाल में प्रवेश कर गये।

अमित और अवंतिका भी मौके का फायदा उठा कर दरवाजे को पार कर ही गये, देखा अंदर एक जर्जर अवस्था में बड़ा सा हाल था।

उस हाल में चारों तरफ कक्ष बने हुए थे, कुल 6 कक्ष तो थे

ही ।

उन दोनों ने फिर एक कक्ष का ताला खोला।

चारों मजदूरों ने शायद अपनी पीठ के सामान को उस कक्ष में

रख दिया।

जब वो उस अंदरूनी कक्ष में फिर ताला लगा रहे थे तो अमित अवंतिका दबे पाव उस हाल से बाहर आ गये, और एक खंभे की ओट में हो लिये।

यह क्या जब वो लोग वापिस आये तो उनके हाथों में बड़े बड़े लंबे लंबे काले बक्से थे, वो इतने बड़े थे कि दो ने एक बक्सा पकड़ रखा था।

आगे वाले दोनों आदमी शायद अंदर ही थे, वो चारों मजदूर बाहर निकले और किले के पीछे की और चल दिये।

अमित अवंतिका ने दबे पांव खंभों के पीछे छिपते छिपाते उनका पीछा किया।

किले के पीछे चलते हुए उन्होंने एक दरवाजा खोलकर पार

किया।

यह क्या वो तो बाहरी मैदानी इलाके में आ गये, जहां पर विशाल वट वृक्ष फैले हुए थे।

घोर अंधकार भी अमित अवंतिका का साथ दे रहा था,

वो दोनों एक दूसरे का कस कर हाथ पकड़े झट से एक वृक्ष की ओट में हो लिये।

बाहर भी चार मजदूर खड़े हुए थे, बाहर वालों ने उनके बक्से पकड़ लिये और चल दिये आगे की ओर पहले वाले मजदूर वापिस किले में चले गये।

अमित अवंतिका ने अब बाहर वाले मजदूरों का पीछा करना
शुरु कर दिया।

थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि उन चारों मजदूरों ने धरती पर बैठ कर पत्तों का ढेर हटाया जिनके नीचे एक दरवाजे को खोला।

O.M.G यहां सुरंग है, वो चारों उन संदूकों को लेकर उस सुरंग में उतर गये।

कुछ देर बाद ही पहले वाले वो 6 भी किले के उसी दरवाजे

से

बाहर आये उन चारों मजदूरों के हाथ में वैसे ही 2 संदूक

ओर थे।

वो सभी उस सुरंग में उतर गये।

अमित अवंतिका के सांस में सांस आई।

वो सुरंग के पास गये तो देखा दरवाजा नीचे की तरफ से बंद
था।

रात के 3 बज रहे थे, चमगादड़ों का शोर और भागते घुंघरूओं की आवाजें जगह जगह चमकती बिल्लियों की आंखें वातावरण को बहुत भयानक बना रहीं थी ।

लेकिन अवंतिका के कानों में अपने पिता की नसीहत गूज रही थी। नेक इंसानों के साथ हमेशा एक अनंत शक्ति होती है वो कभी अकेले नहीं होते।

अवंतिका फुसफुसाई चलो अमित ।

दोनों मंथर गति से महल की छत की ओर बड़ चले, अभी भी वो छुपते छुपाते ही चल रहे थे।

दुश्मन का क्या भरोसा, जरा सी चूक भी खतरनाक थी। करीब आधा घंटा चलने के बाद वो महल की छत पर पहुंचे।

वो चारों उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्होंने अपनी मोबाइल की वीडिओ और फोटो दिखाये।

चित्र बहुत दूर से लिये थे, इसलिये अस्पष्ट थे, किंतु इतना प्रमाण ही काफी था कि वहां पर्वत की तरफ से आधी रात को गाड़ियां

आती हैं जिनका संपर्क यहां रहने वालों से है।

अमित ---- चलो अब सो जाओ, सवेरे बात करेंगे, और वो सब गुंबद के नीचे जाकर सो गये।

अब जब नींद आती है तो पत्थरों पर भी आती है और आज तो वो निश्चिंत होकर सो रहे थे, अंतिम राज़ का भी पता लग चुका था

सुबह की रवि रश्मियां जब उसके चेहरों पर पड़ी तो वो सभी हड़बड़ा कर उठ बैठे।

देखा 8 बज रहे थे, वो सभी पीछे की पगडंडी से होते हुए

बाहर आ गये और अपनी कार में बैठकर चल दिये अपने होटल की ओर।

ठीक 10 बजे वो सभी फ्रेश होकर नाशते की टेबिल पर बाते कर रहे थे।

अमित कल का दिन हमारे लिये बहुत शुभ दिन था।

उन गाड़ी वालों का राज पता करने के चक्कर में हम उस अंधियारी

सुरंग में घुस गये, और फिर हमने ढूंढ लिया राजा माधोसिंह

का

गुप्त अकूत खजाना।

अवंतिका - हां अत्यंत विस्मयकारी और अमित वो तो तुम्हें संस्कृत आती थी और हिंदी की संख्या का ज्ञान था,

इसलिये हम उस खजाने तक पहुंच पाये।

अब मैं भी संस्कृत और हिंदी सीखूंगी प्रीती मैं भी....
आशीष

- तू क्या करेगी सीख कर, तुझे कौन सी जासूसी --

करनी है।

प्रीती गाल सुजाकर • और तुम तो बहुत बड़े जासूस हो ना।

अमित - आशीष तुम क्यों प्रीति को छेड़ते रहते हो, अब शांत हो जाओ दोनों भाई बहन और हमारी रात वाली जासूसी सुनो।

अमित और अवंतिका ने रात वाली सारी बातें अपने सभी साथियों को सुनाई।

सुनकर सभी के चेहरे अवाक हो उठे।

अमित अवंतिका हमारा शक सही निकला है ना, वो लोग अवश्य अवैध सामान यहाँ छुपा कर रखते हैं।

अवंतिका हां अमित उनके लंबे लंबे बक्स देख कर तो यही लग रहा था कि जरूर उनमें बंदूकें होंगी।

अमित और जंगल की जिस सुरंग में वो उतरे, वो

अवश्य उन झोंपड़ियों में खुलती होंगी। " जानने के लिये बने रहियेगा अगले भाग में