Rahashy - Girls Hostel - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

रहस्य - गर्ल्स हॉस्टल - 1


(रहस्य) - गर्ल्स हॉस्टल



नेहा को मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया था। वह और घर के लोग फूले न समा रहे थे। अच्छा रैंक पाने के लिए उसने दो वर्षों तक इन्तज़ार किया था। नेहा इसलिये भी खुश थी कि अब स्कूल ड्रेस से छुटकारा मिला था। वह मनचाहे कपड़े पहन सकती थी, मनचाहे कॉस्मेटिक्स इस्तेमाल कर सकती थी। स्कूल के दौरान बहुत पाबंदियाँ होती हैं , अब वह स्वतंत्र रहेगी। हॉस्टल में जाना उसके लिए बहुत पसंद की बात थी।

निश्चित समय पर काउंसलिंग के बाद एडमिशन हो चुका था। अब बारी थी हॉस्टल के लिये रूममेट चुनने की। कुछ देर बाद वह भी मिल गई। सृष्टि नाम था उसका।

हॉस्टल का पहला तल्ला फर्स्ट इयर के लिए होता था। वहीं रूम नम्बर छह में उन दोनों ने अपने सामान जमा लिया। रूम की व्यवस्था ऐसी थी कि दो अलग बेड के साथ एक-एक आलमीरा, एक-एक टेबल, एक-एक कुर्सी और छोटे छोटे सामान रखने के लिए मेजनुमा ड्रेंसिंग टेबल भी था। बाथरूम कॉमन था।

कॉलेज के क्लासेज़ दो दिन बाद से शुरू होने थे। दोनों के पेरेन्ट्स जा चुके थे। दो अनजान लड़कियों को एक साथ रहना था। हमउम्र लड़कियाँ जल्दी मित्र बन जाती हैं। दो दिनों तक दोनों ने इधर- उधर घूमकर पूरे कॉलेज और हॉस्टल का मुआयना कर लिया। कैंपस खूबसूरत था। हरियाली भी भरपूर थी।

दो दिनों के बाद क्लासेस शुरू हो गईं । हॉस्टल का खाना भी समय पर तैयार रहता था। कुल मिलाकर दोनों को अच्छा लग रहा था। अन्य कमरों में भी छात्राएँ आ चुकी थीं।

रैगिंग का सिलसिला थम चुका था। उस कॉलेज में रैगिंग का पैमाना थोड़ा कम ही था। एक बार रैगिंग के दूरान एक छात्रा ने चुपके से वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था। उस साल उन लड़कियों को सस्पेंड कर दिया गया था। तब से प्रशासन और स्वयं छात्राएँ भी डरी रहती थीं। रैगिंग जैसै भयावह स्थिति को लगाम लगा था।

हॉस्टल में रात सोने के पहले नेहा अपने सारे सामान सुव्यवस्थित करके सोती थी। रात को कमरे से बाहर न जाना पड़े इसके लिए पानी की बोतल भी रख लेती थी। सृष्टि थोड़ी लापरवाह थी। उसके सामान इधर- उधर बिखरे पड़े रहते। किन्तु वह अपनी तरफ जैसे भी रहे , नेहा को फर्क नहीं पड़ता था। अक्सर वह रात को पानी पीने नहीं ही उठती थी। एक रात उसकी नींद खुली और उसे प्यास लगी। उसने बोतल उठाया...पर यह क्या, बोतल तो खाली थी। उसमें पानी की एक बूँद भी न थी। नेहा को थोड़ी झुँझलाहट हुई। सृष्टि भले ही अपना सामान जैसे तैसे रखे लेकिन उसका रखा पानी पीना तो ज्यादती थी। उसे भी अपना बॉटल भर कर रखना चाहिए था। फिर उसने सोचा कि किसी को पानी के लिए नहीं टोकना चाहिए। उसे प्यास लगी होगी तो पी लिया होगा उसने। अब वह ध्यान देने लगी कि ऐसा अक्सर ही होने लगा था। पहले से ही हो रहा था शायद क्योंकि वह पानी पीए या नहीं, बोतल हमेशा खाली ही रहती थी।

एक रात नेहा कॉलेज के फंक्शन की वजह से थकी हुई थी तो पानी नहीं रख पाई। रात उसे प्यास लगी तो तब उसे याद आया लेकिन रात को वह अपना कमरा नहीं खोलती थी। मन मार कर फिर से सो गई। सुबह जब उसकी नींद खुली तब वह बॉटल नीचे जमीन में गिरी हुई थी। उसे लगा कि खाली बोतल हवा के झोंके से गिर गई होगी। दूसरी सुबह तो हद ही किया सृष्टि ने। उसने नेहा की कंघी इस्तेमाल की थी। कंघी में लगे बालों से नेहा को पता चल गया। लिपस्टिक भी खुली थी। सृष्टि कमरे में नहीं थी कि वह पूछ पाती। वह सवेरे ही कहीं चली गई थी। यदि आज वह कमरे में होती तो आज नेहा चुप नहीं रहने वाली थी।।