Rahashy - Girls Hostel - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

रहस्य - गर्ल्स हॉस्टल - 2


(रहस्य) गर्ल्स हॉस्टल -2

सृष्टि कमरे में नहीं थी कि वह पूछ पाती। वह सवेरे ही कहीं चली गई थी। यदि आज वह कमरे में होती तो आज नेहा चुप नहीं रहने वाली थी।।

थोड़ी देर बाद सृष्टि घबरायी हुई कमरे में आई और बोली,”घर से फोन आया था नेहा। मम्मी सीरियस हैं। मुझे थोड़ी देर में निकलना होगा। अभी मैं वार्डन से यही पूछने गई थी। “

नेहा उससे कुछ पूछ न सकी। सृष्टि ने बैग में थोड़े कपड़े डाले और निकल गई। उसके जाने के बाद नेहा ने सब कुछ व्यवस्थित कर लिया। उसके बाद क्लास के लिये निकल गई। शाम को आने पर अपनी दिनचर्या के मुताबिक उसने बोतल में पानी रखा। अपने कॉस्मेटिक्स ठीक ढंग से सजाकर अपनी पढ़ाई करने लगी। पढ़ते पढ़ते उसकी आँख लग गई और वह सो गई।

आधी रात को उसकी नींद खुली तो कमरे की बत्ती बुझी हुई थी।

“मैने तो बत्ती नहीं बुझाई थी फिर कैसे...”सोचती हुई वह स्विच बोर्ड की ओर बढ़ी। उसने बत्ती जलाई। पानी की बॉटल खाली थी। यह देख नेहा की आँखें विस्फरित रह गईं। उसने इधर उधर देखा । शायद वह पानी रखना भूल गई होगी, यही सोचकर वापस बेड पर आ गई। उसने बत्ती जली ही छोड़ दी। काफी देर तक उसे नींद नहीं आई। वह आँखें बंद करके पड़ी रही। अचानक बत्ती बुझ गई। नेहा को लगा कि बिजली चली गई होगी। वह उठी नहीं। कुछ देर बाद उसे नींद आ गई। सुबह उठने में थोड़ी देर हुई। घड़ी की ओर देखा तो ब्रेकफास्ट का समय हो चुका था। जैसे थी वैसे ही कमरा बंद करके ब्रेकफास्ट के लिए चली गई। वापस आकर क्लास के लिये तैयार भी होना था। उसने जल्दी से स्नान किया और ड्रेसिंग टेबल के पास पहुँची। उसके सारे कॉस्मेटिक्स बिखरे पड़े थे। फाउंडेशन की शीशी खुली थी। लिपस्टिक भी खुला था। काजल स्टिक भी एक ओर लुढ़का पढ़ा था। और तो और कंघी में भी कुछ बाल लगे थे।



यह सब देख नेहा हैरान रह गई। अब तो सृष्टि भी नहीं थी तो यह सब कैसे। उसने इधर उधर देखा। उसकी आँखें फैल गईं जब उसने देखा कि सृष्टि के बिस्तर पर सिलवटें पड़ी थीं जैसे अभी अभी कोई सोकर बाहर गया हो। नेहा का कलेजा धक- धक करने लगा। उसने हड़बड़ी में माँ को फोन लगाया और सारी बातें बताईं।

“नेहा, तुम्हारी कोई दोस्त होगी बेटा,”मम्मी ने कहा।

“नहीं माँ, मेरी रूममेट सृष्टि घर गई है और मैंने रूम का दरवाजा लॉक करके रखा था,”वह घबराई आवाज में कहे जा रही थी।

“तो ऐसा करो, ये बातें अपनी वार्डन को बताओ। और हाँ, हनुमान चालीसा भी पढ़ लो। इससे तुम्हारा डर कुछ कम होगा।”

“अच्छा माँ, फोन रखती हूँ। क्लास के लिए देर हो रही। यह कहकर उसने मोबाइल बेड पर रखा और तैयार होकर निकलने लगी। ज्योंहि वह दरवाजे तक पहुँची अचानक दरवाजा बंद हो गया। वह हैंडल बार बार घुमाने लगी किंतु वह खुल ही नहीं रहा था। वह दौड़कर बेड के पास गई और मोबाइल से वार्डन को फोन लगाया।

“मैम , मैं अपने कमरे में लॉक हो गई हूँ। दरवाजा ही नहीं खुल रहा। रूम नम्बर सिक्स”, इतना ही बोल पाई थी कि उसे लगा किसी ने मोबाइल उसके हाथों से छीन ला हो। घबराहट के मारे वह बेहोशी महसूस करने लगी।

“माँ ने कहा था हनुमान चालीसा बोलने को”,यह सोच वह बोलने लगी ”भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे”...अभी इतना ही बोल पाई थी कि भड़ाक से दरवाजा खुल गया। लगा जैसे कोई बाहर निकल गया हो। वह बिस्तर पर अर्धमुर्छित सी पड़ी थी। तबतक वार्डन आ चुकी थीं। रूम का दरवाजा खुला देख अन्दर आ गई। नेहा बेसुध पड़ी थी। वार्डन ने उसके चेहरे पर पानी की छींटें मारीं तो नेहा ने आँखें खोलीं।