Adhuri Milakaat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

अधूरी मुलाकात... - 2


कॉफी के कप में उठते धुएं को फूंक मारकर उड़ाती हुई अर्चना रह-रहकर कप को होंठो तक ले आती और फिर बारिश की बूंदो में सुकून ढूंढने का असफल प्रयास करती । अब क्या लिखता वो, लफ्ज़ तो कुछ पल पहले ही उसका साथ छोड़ चले थे अब तो बस लेपटॉप के भटकते कर्सर को वो सिर्फ ताक ही सकता था कि अचानक अनचाहे कदमों के आगमन से राजीव चौंक उठा । नजरें उठाकर देखा तो उसने वेटर को पाया जो उससे आगे के ऑर्डर की फरमाइश करता दिखा । राजीव ने न चाहते हुए भी एक कॉफी मंगवा ली और वेटर के जाते ही उसने अर्चना की नज़रों का सामना किया जो अब उसे ही देखने लगी थी । क्या वो उसे पहचान पाएगीं ? क्या वो इन पांच सालो के अंतराल में उसकी यादो में कही ठहरा भी था या फिर कहीं गुम हो चला था ? राजीव ने भी थमी हुई निगाहों से अर्चना को देखा, अब छिपने का आखिर फायदा ही क्या था । खामोश नज़रो की बातचीत का एक दौर दोनो तरफ से आरंभ हो गया था, जहां लफ्जों का कोई काम ही नहीं था । अपनी अंगुलियो से कॉफी के कप को सहलाती, अर्चना जहां उसे पहचानने के प्रयास में लगी रही, वही राजीव उसकी नजरों से बचते हुए लेपटॉप पर यूं ही अंगुलियां फिराने लगा पर अब देर हो चली थी । अर्चना की निगाहें उससे एक पल के लिए भी नहीं हटी और उसकी नजरों का आलम कुछ यूं था कि राजीव उन निगाहों की गर्माहट को अपने जिस्म के हर हिस्से पर महसूस कर सकता था । इस बार जब उसने नजरें चुराकर अर्चना को देखना चाहा तो वो बड़ी आसानी से पकड़ा गया । अर्चना उसकी चोरी पकड़, मुस्कुरा उठी और उसके खिले होंठो के किनारों पर सजी मुस्कान को देख न जाने क्यों राजीव को एक अजब सा सुकून मिला । अपनी नजरें झुकाए वो भी मुस्करा पड़ा । अपनी मुस्कुराहटों से एक-दूसरे का परिचय कर उन दोनो ने पांच साल की फैली दूरियों को उस पल एक झटके में मिटा दिया और अगले ही पल अर्चना अपनी कॉफी थामे उसकी टेबल की ओर बढ़ी चली आई ।

”हैलो, मिस्टर राइटर ! तुम मुझे पहचान नहीं पाए या फिर मुझे न पहचानने का नाटक कर रहे थे ? ” अर्चना ने चहकते हुए उससे पूछा ।

उसे अपने इतना करीब देख, राजीव ने तो कुछ पल यकीन करने ही बिता दिए । न जाने कैसी खुश्बू ओढ़ी थी उसने कि आसपास का समां उसकी खुश्बू में ही घुलकर महक उठा और साथ में राजीव का जेहनोदिल भी ।

अपराधबोध, राजीव एक भीनी मुस्कान लिए उसकी ओर देख कर बोला, ” शायद दोनों ही । कितनी बदल गई हो तुम । प्लीज सिट” ।

राजीव के आग्रह पर अर्चना उसके टेबल के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई और कॉफी का एक सिप लेते हुए बोली, ” तुम भी तो बदल चुके हो । क्लीन शेव रखने वाले शख्स को आखिर घनी दाढ़ी से कब प्यार हो चला पर फिर भी मैं तुम्हें पहचान गई न !” ।

होंठो पर तैरती मुस्कान बिखराए, राजीव ने कहा,” पहचान तो मैं भी तुम्हे पहली नज़र में ही गया था । वो तो मेरे मन ने मुझे थोड़ा उलझा दिया था ”।

”हम्म ” अर्चना ने उसे देखते हुए कहा,” मन की बातो में आज भी तुम बड़ी आसानी से आ जाते हो । शायद कुछ आदतें कभी नहीं बदलतीं ”।

”शायद, कभी नही ”

दोनों एक साथ मुस्कुराए ।

तभी राजीव की भी कॉफी उसके टेबल तक पहुंच चुकी थी और कुछ पल शांत रहकर उन दोनो ने कॉफी का जायका लिया । बाहर बरसात की रिमझिम तेज़ हो चली थी । शीशों पर टकराती बूंदे बार-बार दस्तक देकर अंदर आने की इजाजत मांगती दिखी पर अफसोस वहां मौजूद कोई शख्स उन्हें सुन नहीं पाया । कॉफी का सिप लेते हुए राजीव ने अपने सीने में उछलते दिल की धड़कनो को काबू में लाने का प्रयास किया और यही उम्मीद करी कि उसकी धड़कनो की गूंज अर्चना के कानो तक न पड़े ।
”तो अपनी कोई नई कहानी लिख रहे हो, ?” अर्चना ने उसके लेपटॉप को निहारते हुए पूछा ।

राजीव ने झिझकते हुए जवाब दिया,” कोशिश कर रहा हूं पर तुम्हे कैसे पता ? ”।

”तुम्हारी किताब पढ़ी थी मैंने” अर्चना ने कहा,” ‘मोक्ष’ यही नाम था न तुम्हारी किताब का ?”

ये सुन राजीव मुस्कुरा पड़ा और सहमति में सिर हिलाते हुए उसने कहा,” हां, तुम्हें कैसी लगी ? ”

”हम्म” अर्चना ने जवाब में कहा,” अच्छी थी पर मुझे उसका अंत कुछ अटपटा सा लगा”

”मतलब ? ”

”मतलब कि तुमने उसे जल्दबाजी में खत्म किया था शायद”

ये सुन राजीव सिर झुकाए हंस पड़ा । वो सही थी पर राजीव ने उससे सही होने की उम्मीद नहीं की थी ।

”कहानियो का अंत अक्सर मुझे उलझा देता है, यूं समझ लो कि जैसे वो अलविदा कहना ही नहीं चाहते मुझसे ”। राजीव ने अर्चना को देखते हुए कहा, ”पर पता है, सही मायने में कोई भी कहानी कभी पूरी होती ही नहीं है बस ऐसे ही किसी एक खूबसूरत से मोड़ पर लाकर छोड़ दी जाती है सिर्फ इसी उम्मीद के साथ कि उन किरदारों के साथ अब सबकुछ अच्छा होगा । अजीब है न ? ”।

जवाब में अर्चना के होंठ मुस्कान में खिल उठे और उसकी बातो के यथार्थ को समझते हुए बोल पड़ी,” अगर ऐसा है तो, तब तो उन किरदारों की किस्मत हमसे कई गुना बेहतर है । कम से कम कोई तो है जो उनके लिए एक बेहतर अंत तलाश रहा है । यहां तो हमारी पूरी जिंदगी बीत जाती है पर हम उस अंत को कभी तलाश नही पाते ”।

कॉफी थामे ,मुहं की तरफ जाता राजीव का हाथ बीच में ही थम गया । कितना सही कहा था अर्चना ने । ये बात राजीव के दिल को छू गई ।

उससे प्रभावित होकर, राजीव ने मजाक में कहा,” मेरे ख्याल से तुम्हे भी अब लिखना शुरु कर देना चाहिए”।

”अच्छा, अगर ऐसा हुआ तो कही तुम्हारे लिए कम्पीटीशन न बन जाऊं” अर्चना ने हंसते हुए कहा ।

” फिर तो रहने दो”

दोनो ने मुस्कुराते हुए, एक साथ कॉफी का सिप लिया ।

” तो क्या तुम अक्सर यहां आया करते हो ? ” अर्चना ने पूछा ।

” मैं तो बस एकांत तलाशता हूं । जहां मिल जाए, बस वही अपना लेपटॉप खोल लेता हूं और शुरु हो जाता हूं पर तुम बताओ, यही आस-पास रहती हो क्या? ” राजीव ने पूछा ।

”मेरा यहां आना सिर्फ इत्तेफाक भर है, वो भी इस बारिश की वजह से” अर्चना ने कहा ।

इस पर राजीव का मन बोल उठा, ” बड़ा हसीन इत्तेफाक है जो पांच सालो बाद उसने आज हमे यूं ही मिलाने की शरारत कर डाली ” पर वो इस ख्याल को लफ्जों की शक्ल न दे पाया ।

” न जाने कब ये बरसात थमेगी ? ” अर्चना ने शीशो से टकराती बूंदो को देखकर अपना मन मसोसा ।

”कहीं जाना है, क्या ?” राजीव ने पूछा ।

इस पर अर्चना ने खामोश निगाहों से उसे ताका, शायद उसके सवाल को मन ही मन तोल रही थी वो और फिर गहरी सांस भरते हुए उसने कहा,” तुमसे मिलकर अच्छा लगा पर शायद मुझे अब चलना चाहिए”।

”पर अभी बारिश थमी नहीं है और तुम्हारी कॉफी भी तो अभी खत्म नही हुई है ” राजीव ने उसे कुछ पल ओर ठहरने का आग्रह किया ।

अर्चना ने नजरें झुकाकर अपने कप को ताका और फिर अनचाहे मन से उसने एक सिप ओर लिया । बारिश की रिमझिम को सुनते हुए राजीव यादों में खो चला और चहकते हुए उसने कहा,” याद है तुम्हे कॉलेज की वो लास्ट सेमेस्टर की बारिश जहां तुमने कॉलेज से अपने घर तक का सफर पैदल, बारिश में भीगते हुए पूरा किया था । हम लोगों ने कितना टोका था तुम्हें , पर क्या कहा था, तुमने ? ”।