Adhuri Milakaat - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

अधूरी मुलाकात... - 4

राजीव उसकी बात पर सिर हिलाकर सिर्फ मुस्कुरा पाया और बदले में अर्चना भी मुस्कुरा उठी । कुछ ही पलों बाद वो उसकी नजरों से दूर होती चली गई और राजीव बिना पलकें झपकाए, शीशे की आड़ में उसे तब तक देखता रहा जब तक की वो उसकी आंखो से ओझल नहीं हो गई । न जाने क्यो मन ये ख्याल पाल बैठा था कि शायद वो उसी दरवाजे से वापस चली आए, जहां से वो खो गई थी, बस इसी इंतजार में राजीव यूं ही टेबल पर कुछ पल बैठा रहा । पर वो वापस नही लौटी । वो आई तो थी बहुत सी उम्मीदों के साथ पर जाते हुए एक अनाम सा गम ईनाम में दे गई जिसे राजीव कभी भुला नहीं पाएगा । न जाने वो अपने साथ ऐसा क्या ले गई, जिसके बगैर राजीव खुद को अधूरा सा महसूस करने लगा और अफसोस इस बात का रहा कि राजीव खुद नहीं जानता था कि वो चीज़ क्या थी, जो वो उससे मांग सकता । वो चली तो गई थी पर उसकी खूश्बू वहीं ठहर गई जो उसकी खाली कुर्सी के इर्द-गिर्द एक साए की तरह मंडराती रही और राजीव उसमे रह-रहकर अपनी सांसे भरता रहा । उसके कहे गए शब्द राजीव के दिलोदिमाग में अभी तक गूंज रहे थे । ये कैसा प्रभाव था उसका, कि वक्त भी उसके आगे हार मानता सा दिखा, जो बीत ही नहीं रहा था । यादों के सागर में बार-बार गोते खाता राजीव का मन घुटने लगा और तभी अचानक राजीव ने अपने लेपटॉप को घूरा और फिर न जाने उसे क्या हुआ कि उसकी अंगुलिया खुद ब खुद उस पर चलने लगीं । उसकी रफ्तार से स्पष्ट था कि एक नई कहानी उसके मन में घर कर गई थी जिसे वो अब वास्तविकता का रुप देने में शुमार हो चुका था ।



दो साल बाद...



” थके हारे दिल के साथ जब रोहन उस कॉफी शॉप के बाहर आया तब उसने प्रिया को वहीं दरवाजे के पास बाहर खड़ा पाया । प्रिया के भीगे चेहरे को देखकर, रोहन को एहसास हुआ कि इस बरसात में भीगते हुए वो सिर्फ उसका इंतजार कर रही थी । इससे पहले कि वो कुछ कह पाता, प्रिया ने अपनी इंगेजमेंट रिंग को अपनी अंगुली से निकाल फेंका और वो उसकी ओर धीमे कदमों से बढ़ चली । रोहन के कदमों के कुछ फासलों पर प्रिया के कदम थमे और उनकी निगाहों ने एक-दूसरे को कुछ ऐसे निहारा मानो वो एक-दूसरे से बरसों बाद मिल रहे हो ” राजीव के स्वर से पूरा हॉल गूंज रहा था और जैसे ही उसके शब्द थमे, तालियों की एक जोरदार गड़गड़ाहट उसकी खामोशी का पीछा कर, उस हॉल में गूंज उठी ।

अपनी किताब को थामे, वो उनमे लिखी कुछ लाईने किसी मंच में खड़ा होकर सुना रहा था । आज अपनी नई बुक के लॉन्च पर राजीव ने अपने नोवॅल के लिए काफी वाह-वाही लूटी पर उसका मन, खुशी के साए से कोसों दूर कहीं वीरानियत में खोया रहा । तभी उसकी नजरें अपनी किताब से हटी और वो सामने बैठे कुछ लोगो से मुखातिब हुआ ।
” आखिर क्या प्रेरणा रही इस किताब को लिखने की ? ” किसी एक महिला सदस्य ने सवाल किया ।

इस सवाल पर राजीव के चेहरे पर गंभीरता छा गई । माइक को थामे, कुछ पल खामोश रहकर, उसने जवाब दिया,” एक मुलाकात जिसके अंजाम को मैं कोशिश करके भी न बदल पाया, शायद इस एहसास ने ”।

” तो फिर ये कहना गलत नहीं होगा कि ये किताब आपके जीवन की किसी सच्ची घटना से प्रेरित है ” किसी अन्य सदस्य ने सवाल किया ।

”जी, बिल्कुल ठीक कहा आपने ” ।

” तो क्या आपकी प्रिया हकीकत में है ? ”

ये सुनकर राजीव अपने चेहरे पर एक दबी मुस्कान ले आया और कहा, ” है भी और.. नहीं भी ”।

उसका जवाब वहां बैठे कई लोगो के चेहरे पर हैरानी के भाव ले आया ।

उनकी हैरानी देख, राजीव ने मुस्कुराकर कहा, ” उस दिन कॉफी शॉप पर एक लड़की आई तो थी पर उसने प्रिया की तरह मेरा इंतजार नही किया और न ही मेरे लिए उसने अपनी इंगेजमेंट रिंग को अपनी अंगुली से निकाल फेंका पर एक वादा जरुर कर गई थी वो मुझसे उस दिन , जिसकी खातिर मेरा मन आज भी उसी कॉफी शॉप में ही ठहरा है कहीं । मेरे मन का एक हिस्सा आज भी उसी कुर्सी पर बैठा उसका इंतजार कर रहा है और शायद हमेशा करता रहेगा ” ।

” कैसा वादा ? ” तभी भीड़ से सवाल गूंज उठा ।

इस सवाल पर राजीव नजरें झुकाए, कुछ पल खामोश रहा ।

” ये एक राज़ है जो सिर्फ हम दोनों के दरम्यान कैद है ”।

इतना कहकर राजीव ने अपनी किताब और माइक को टेबल पर रखा और रुम से बाहर चला गया । टेबल पर रखी उस किताब का शीर्षक उसके हटते ही स्पष्ट हुआ- ” अधूरी मुलाकात” ।

शायद कुछ कहानियों का अंत वैसा नहीं होता जैसा कि हम चाहते हैं। राजीव भी तो यही कहता था न, कि सभी कहानियां एक खूबसूरत से मोड़ पर लाकर छोड़ दी जाती हैं सिर्फ इसी उम्मीद पर कि अब सबकुछ ठीक होगा । वो आज भी उसी कॉफी शॉप में जाता है जहां उसकी मुलाकात अर्चना से हुई थी और हर बार की तरह कॉफी ऑर्डर कर, उस दरवाजे को ताकता रहता है जिसका हैंडल थामे वो वही कुछ पल के लिए थम गई थी । सिर्फ उसके इंतजार में , वो घंटो उसी टेबल पर बैठा रहता है और इस दौरान वो फिर उन बीते पलो में खोकर, हमेशा उसके आखिरी शब्दों पर आकर ठहर जाता है ।

”तुम्हारी नई किताब का इंतजार करुंगी”

यही तो कहा था उसने जाने से पहले । यही तो एक वजह थी कि राजीव ने उसी पल से अपना सारा वक्त उस नई किताब को खत्म करने में लगा दिया जो उसे फिर से अर्चना से मिला सके और उस अधूरी मुलाकात को मुक्कमल कर सके जो उस दिन अधूरी रह गई थी । क्या उसने उसकी नई किताब पढ़ी भी होगी ? क्या उसे अपनी बात याद भी होगी ? या फिर वो इन दो सालों के अंतराल में अपने जीवन में कहीं इतनी दूर तो नहीं चली गई कि राजीव बहुत पीछे छुट चुका हो शायद । इसी यादों के सिलसिले में राजीव को अभी याद आया कि वो उस दिन उससे ये पूछना तो भूल ही गया था कि क्या वो याद रहा था उसे इतने सालो में ।

आज वक्त पहले से कुछ धीमा बीत रहा था और बाहर का मौसम भी तो कुछ अनमना सा लग रहा था । बदलते करवटो के पहर में जब राजीव थक हार कर अपनी कॉफी के आखिरी घूंट को खत्म कर उठने को हुआ ही था कि तभी शॉप के दरवाजे पर एक आहट हुई और वो वही थम गया । कोई तो दाखिल हुआ था उस शॉप में जिसके कदम कहीं और न बढ़कर सिर्फ राजीव की टेबल की तरफ बढ़े । वो अर्चना थी, हां वही थी । नीले रंग की साड़ी पहने, चेहरे पर फिक्र बिछाए और निगाहो में बैचेनी लिए, वो राजीव को देखकर मुस्काई और उसके टेबल के करीब आकर थम गई । वही राजीव भी धड़कनो में बेताबी लिए अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और फिर दोनो ने एक दूसरे को कुछ ऐसे देखा मानो एक-दूसरे से बरसो बाद मिल रहे हों शायद । सवालों की जगह, होंठो पर मुस्कान सजाए वो यूं ही एक-दूसरे को खड़े ताकते रह गए । शायद वक्त कहीं थम सा गया था या ये दुनिया कहीं गुम हो चली थी, बेसुध से वो दोनों , बेपरवाह थे इस वक्त और दुनिया की हलचल से । वही उसी पल राजीव ने पाया कि अर्चना के बाएं हाथ की अंगुलियां सूनी पड़ी थी । इससे पहले कि वो कुछ ओर पूछ पाता, अर्चना की भीगी आंखो ने उसके सवाल पर लगाम लगा दिया और वो दोनो कुछ कह नहीं पाए, सिवाय एक-दूसरे को निहारने के…।


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”क्या खूब कहा था किसी ने कि, जिंदगी उस किताब की तरह है जिसके पन्ने सिर्फ वक्त पलट सकता है…हम नहीं । क्या पता आपकी अधूरी चाहत भी उन पन्नो पर कहीं, आपका इंतजार कर रही हो शायद !"

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