positivity in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | सकारात्मकता

Featured Books
  • જૂનું અમદાવાદ

    *અમદાવાદનો અમારો ગાંધી રોડલેખક: *અશોક દવે**મને એટલું યાદ છે...

  • એક ષડયંત્ર.... - ભાગ 50

    (માનવ સિયાને સોના જેવું બનાવે છે, ઉદાહરણ આપી સમજાવે છે. સિયા...

  • ભાગવત રહસ્ય - 4

    ભાગવત રહસ્ય-૪   સચ્ચિદાનંદરૂપાય વિશ્વોત્પત્યાદિહેતવે I તાપત્...

  • સચિન તેંડુલકર

    મૂછનો દોરો ફુટ્યો ન હતો ને મૂછે તાવ દેવો પડે એવા સોલીડ સપાટા...

  • જોશ - ભાગ 1

    Kanu Bhagdev ૧ : ભય, ખોફ, ડર... ! રાત્રિના શાંત, સૂમસામ વાતા...

Categories
Share

सकारात्मकता

एक छोटे से खेत में एक जवान लड़का और उसके दादा मिट्टी खोद रहे थे। वे मिट्टी को पलट रहे थे, उसकी गांठों को तोड़ रहे थे ताकि मिट्टी उस वर्ष की बुवाई के लिए अच्छे से तैयार हो सके।

उस काम में काफी कड़ी मेहनत थी लेकिन उनके सभी प्रयास एक अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए आवश्यक थी।

बूढ़ा आदमी अपने 70 की उम्र में भी अच्छी तरह से कड़ी मेहनत कर रहा था। हाँ थकान से वो काफी हद तक हांफ रहा था। हर प्रहार के जोर से उनके माथे से पसीना टपकता था लेकिन फिर भी वह शिकायत नहीं कर रहा था।

उनका पोता जो महज 17 साल का था, तंदुरुस्त और ताकतवर। वह मिट्टी को पलटने और गांठों को तोड़ने में लगती मेहनत और ताकत के लिए कोसता, फिर वहाँ खड़े होकर वह हाँफता और थोड़ी देर के लिए रुक जाता! थोड़ा आराम करने के बाद एक बार फिर से काम शुरू करने से पहले शिकायत करता।

थोड़ी देर बाद, युवा पोता देखता है कि उसके दादाजी ने जितना काम कर जमीन को तैयार किया वो उसके द्वारा तैयार की जमीन से बहोत ज्यादा हैं।

"दादाजी,आप इतने बूढ़े हो फिर भी आपने मुझसे इतना अधिक काम कैसे किया?" पोता अपने दादा से पूछता है।

दादाजी ने उसे जो जवाब दिया ऊसकी उसे उम्मीद नहीं थी।
"जब हम किसी काम को मुश्किल मानते है और उसके बारे में ज्यादा सोचते है तो सच में मुश्किल हो जाता है,और हम बिना सोचे जब उसे करते है और करते ही रहते है तो वो आसान हो जाता है।"

पोता थोड़ा अचंभित हो जाता है इसलिए दादाजी अपनी बात जारी रखते हैं।

"जब हम अपना समय यह सोचने में बिताते हैं कि कोई काम कितना कठिन है,और अभी कितना सारा बाकी है, तब हमारा मन बहाने बनाने लगता हैं।

इन सभी चीजों के बारे में सोचना,अपने स्वयं के विचारों के बवंडर में फंसना ही उस काम को हमारे लिए बहोत ज्यादा कठिन बना देता है। इसलिए समझदारी इसी में है की वास्तविक रूप से पहली बार में शारीरिक कार्य किया जाए”

"जब आप तय किए काम के बारे में ज्यादा सोचते हैं और अपने दिमाग को नकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देते हैं, तो आपकी गति उस काम को करने के लिए अपने आप धीमी होती जाती है। अगर आप किसी भी काम के दौरान सकारात्मकता बनाए रखना चाहते हैं तो आपको तुरंत उस काम को शुरू करना चाहिए और अगर देखना और सोचना है तो जितना आप आगे बढ़े यानी की जितना काम आपने अच्छे से खत्म कर लिया उसे देखें न की जो बाकी है उसे! ऐसा करने से एक सुखद और सकारात्मक एहसास आपको उस काम को लगातार करते रहने की ऊर्जा देता रहेगा । हमें अपने कार्य को मन लगा कर करने से कार्य सरलता व सहजता से पूरा हो जाता है और हमें कार्य करने में रूचि बनी रहती है जिससे कार्य से अलगाव नहीं होता है । कार्य में सकारात्मक एहसास कार्य करने की क्षमता को दुगुना कर देता है ।