Mahavir Singh Rathore in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | महावीर सिंह राठौड़

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महावीर सिंह राठौड़

अमर शहीद महावीर सिंह का बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान

उत्तर प्रदेश के एटा जिले के राजा का रामपुर क्षेत्र के शाहपुर टहला गांव में राजपूती परिवार ठाकुर देवी सिंह राठौड़ के यहां 16 सितंबर 1904 को एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया महावीर। अब यह गांव कासगंज जिले के अंतर्गत आता है। कहते हैं बालक महावीर में अन्याय के खिलाफ लड़ मरने की भावना बचपन से ही कूट कूट कर भरी हुई थी। राजा के रामपुर से प्राथमिक शिक्षा के बाद महावीर सिंह ने एटा के राजकीय इंटर कॉलेज में अध्ययन किया और फिर आगे की पढाई के लिये कानपुर चले गये , जहां डी ए वी कॉलेज में अध्ययन के दौरान इनका क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ।

महावीर सिंह का बचपन घर में ही देशभक्ति के माहौल में बीता। कानपुर में क्रान्तिकारियो के सानिध्य से आजादी के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे को नयी राह मिली और ये पूरी तरह अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष में कूद पड़े। इनकी गतिविधियों की जानकारी जब इनके पिता देवी सिंह को मिली तो उन्होंने

विरोध की जगह अपने पुत्र को देश के लिये बलिदान होने के लिये आशीर्वाद ही दिया।

गौरतलब है कि अनेकों क्रांतिकारी उनके गाँव के घर में कई बार रुके थे। सरदार भगत सिंह तक खुद 3 दिन तक शाहपुर टहला उनके घर में छिपकर रहे थे।

काकोरी और सांडर्स कांड के बाद वह अंग्रेज़ों के लिये चुनौती बन गए थे। उन्होंने सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को लाहौर से निकालने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। 1929 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अन्य क्रान्तिकारियो के साथ काला पानी की सजा सुनाई गई।

उस दौरान अंडमान जेल में क्रांन्तिकारियों को अनेक यातनाऐं दी जाती थीं। यातनाओं, बदसलूकी और बदइंतजामी के खिलाफ जेल में बंद क्रांतिकारियों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। अंग्रेज़ों ने इनकी भूख हड़ताल को तोड़ने की भरसक कोशिशें कीं लेकिन वह नाकाम रहे। बन्दियों को जबरदस्ती खाना खिलाने का भी प्रयास किया गया , लेकिन उसमें भी गोरे अंग्रेज नाकाम रहे। उन्होंने महावीर सिंह की भी भूख हड़ताल तुड़वाने की बहुत कोशिशें की, उन्हें अनेकों लालच भी दिए, यातनाएं दीं लेकिन वह अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए। लाख कोशिशों के बावजूद अंग्रेज महावीर सिंह की भूख हड़ताल नहीं तुड़वा सके। अंग्रेज़ों ने फिर जबरदस्ती करके उनके मुँह में खाना ठूंसने की कोशिशें कीं, इसमें भी वो सफल नहीं हो पाए।

इस बारे में अनेकों किंवदंतियां हैं। कुछ के अनुसार इसके बाद अंग्रेजों ने नली के द्वारा नाक से उन्हें जबरदस्ती दूध पिलाने की कोशिश की । इस प्रक्रिया में उन्हें जमीन पर गिराकर 8 पुलिसवालों ने पकड़ रखा था। हठी महावीर सिंह राठौड़ ने पूरी जान लगाकर उनका विरोध किया जिससे दूध उनके फेफड़ों में चला गया । नतीजतन इससे तड़प तड़पकर उनकी 17 मई 1933 को मृत्यु हो गई ।

कुछ बंदी क्रांतिकारी कैदियों के द्वारा बाद में दी गयी जानकारी के अनुसार अंग्रेजों द्वारा उनका अनशन तुड़वाने की ख़ातिर जबरन खाना खिलाये जाने से क्रुद्ध होकर बलिष्ठ शरीर के स्वामी महावीर सिंह ने पकड़े सिपाहियों को धक्का देकर जेलर को पकड़ लिया और उसे बीच से चीर दिया। बाद में उन्हें वहीं फांसी दे दी गयी और उनके शव को पत्थरों से बांधकर समुद्र में फेंक दिया। उनकी मृत्यु की तारीख के बारे में भी विवाद है, कुछ जानकार उनकी मृत्यु 17 मई 1933 बताते हैं तो कुछ 16 अगस्त 1933।
दुःख की बात है कि महावीर सिंह राठौड़ ऐसे ही एक राजपूत योद्धा थे जिनकी शहादत से आज भी बहुत कम लोग परिचित हैं। उनके परिवार को भी उनकी राष्ट्रभक्ति की कीमत भीषण यातनाओं के रूप में चुकानी पड़ी। अंग्रेज़ों की यातनाओ से तंग आकर उनके परिवार को 9 बार अपने घर ,यहां तक कि गांव को भी छोड़कर जाना पड़ा । आज भी उनका परिवार गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश है। ऐसे वीर क्रांतिकारी के परिवार से आजाद भारत की सरकार आज भी मुंह मोड़े हुए है। इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। यह है देश के लिए अपना सर्वस्व होम करने वाले भारत मां के वीर सपूतों की हकीकत। उन्हें सम्मान की बात तो दीगर है, उनके परिजनों की सुध लेने वाला भी कोई नहीं।

आज जब हम आजादी की 76वीं सालगिरह मना रहे हैं हमारा दायित्व है कि हम आजादी की लड़ाई के उन योद्धाओं का स्मरण करें जिन्होंने देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया। असलियत में ऐसे वीरों का बलिदान हमारी अमिट धरोहर है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। इसके साथ ही धन्य है वह मां जिसने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया। हम सभी इस अवसर पर उस जननी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। इंकलाब जिंदाबाद। भारत माता की जय। जय हिंद।