Two way... in Hindi Motivational Stories by Saroj Verma books and stories PDF | दो राही...

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दो राही...

कड़के की ठण्ड और रात का समय ,रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे,ठण्ड के कारण इलाके में धुन्ध सी छाई हुई थी और रेलवें प्लेटफार्म पर एकदम सन्नाटा छाया हुआ था,प्लेटफार्म पर लगे खम्भों पर पीली रोशनी वाले बल्ब जगमगा रहे थें, मिस्टर सिंह कोट के ऊपर ओवरकोट पहने ,गले में ऊनी मफलर डाले और सिर पर हैट लगाए अपने ड्राइवर के साथ प्लेटफार्म की ओर बढ़े चले जा रहे थें,सन्नाटे के कारण केवल उन दोनों के कदमों की आहट सुनाई दे रही थी,रेलगाड़ी पहले से आकर प्लेटफार्म पर खड़ी थी और अब उसके चलने का समय हो चुका था इसलिए मिस्टर सिंह लम्बे लम्बे कदमों से रेलगाड़ी की ओर बढ़े जा रहे थे और तभी उन्होंने अपने ड्राइवर के साथ रेलगाड़ी में प्रवेश किया और फिर वें अपने ड्राइवर से बोले....
"दीनदयाल!सामान ठीक से जमा दो और जल्दी से उतर जाओ क्योंकि रेलगाड़ी बस अभी चलने ही वाली है,ज्यादा देर तक नहीं रूकती यहाँ पर"
फिर ड्राइवर ने मिस्टर सिंह के कहे अनुसार वोगी में सामान जमा दिया और ट्रेन से उतर गया,ड्राइवर के उतरते ही रेलगाड़ी चल पड़ी,तो मिस्टर सिंह ने अपना ओवरकोट उतारकर एक तरफ रख दिया और अपनी पोकेट से सिगार निकालकर सुलगाया और पीने लगें,तभी भरभरा एक यात्री उनकी वोगी में घुस आया,चूँकि मिस्टर सिंह ने फर्स्ट क्लास का टिकट लिया था इसलिए उनकी वोगी में किसी और के घुसने का सवाल ही पैदा नहीं होता था,इसलिए उस यात्री को देखकर वें थोड़े असमंजस में पड़ गए और उससे बोलें....
"ये वोगी तो रिजर्व है,तुम्हें यहाँ किसने घुसने दिया"
तब वो यात्री बोला....
"मैं भी आपकी तरह राहगीर ही हूँ,रेलगाड़ी चल पड़ी थी इसलिए यही वोगी सामने पड़ी और मैं इस में ही घुस आया,अगली स्टेशन पर उतर जाऊँगा,तब तक मुझे यहाँ रुकने देगें तो बड़ी मेहरबानी होगी आपकी"...
उस यात्री की बात सुनकर मिस्टर सिंह ने पूछा...
"क्या नाम है तुम्हारा"?
"जी!नाचीज़ को शाहआलम कहते हैं",वो यात्री बोला....
"ओह...काम क्या करते हो"? मिस्टर सिंह ने पूछा...
"बस!हुजूर!मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पालता हूँ",आलम बोला...
"तुम तो ठण्ड से काँप रहे हो,रूको मैं अभी तुम्हें अपनी गरम जर्सी दे देता हूँ",मिस्टर सिंह बोले...
"ना!हुजूर!रहने दीजिए,हम गरीबों को तो आदत होती है भूख और ठण्ड सहने की",आलम बोला....
"मैं तुम्हारी हालत बखूबी समझ सकता हूँ क्योंकि मैं भी गरीबी देख चुका हूँ,गरीबी इन्सान की जान ले लेती है",मिस्टर सिंह बोलें....
"सच!ये जो आपके ठाटबाट हैं,पहले ऐसे नहीं थे क्या?"आलम ने पूछा...
"नहीं!जिन्दगी ने करवट ली और फिर सब बदल गया",मिस्टर सिंह बोले...
"वो भला कैसे ?"आलम ने पूछा....
"अरे!भाई!पहले तुम आराम से मेरे सामने वाली सीट पर बैठ जाओ और ये जर्सी पहन लो,तब तक मैं हम दोनों के लिए थरमस से गरमागरम चाय और कुछ सैंडविच निकालता हूँ,फिर खाते खाते इत्मीनान से बात करते हैं,क्योंकि मुझे बहुत जोरों की भूख लग रही है,तुम भी तो भूखे होगे"मिस्टर सिंह बोले...
"जी!भूख तो लगी है",आलम बोला...
इसके बाद आलम ने मिस्टर सिंह की दी हुई जर्सी पहन ली और सुड़क सुड़क के चाय पीने लगा ,साथ में सैंडविच भी खाता जा रहा था,मिस्टर सिंह भी चाय और सैंडविच का लुफ्त उठा रहे थे और तभी आलम ने मिस्टर सिंह से पूछा....
"तो बताइए आप कैसें इतने अमीर बने"?
तब मिस्टर सिंह बोलें....
"बहुत पुरानी बात है ये जब मैं जवान था" मिस्टर सिंह केवल इतना ही कह पाए थे कि इतने में अंग्रेज टी.सी.टिकट चेक करने आ पहुँचा और मिस्टर सिंह की बात अधूरी ही रह गई,मिस्टर सिंह ने अपना टिकट दिखा दिया और जब टी.सी.ने आलम से टिकट माँगा तो आलम चुप हो गया तो तभी मिस्टर सिंह अंग्रेज टी.सी.से बोलें....
"माँफ कीजिएगा आँफिसर!ये मेरे साथ है,ये मेरा नौकर है,मेरी तबियत ठीक नहीं थी तो इसलिए मेरी पत्नी ने इसे मेरी देखभाल के लिए मेरे साथ भेज दिया,ये तो अचानक ही मेरे साथ आ पहुँचा,इसके टिकट के पैसे में अभी आपको दिए देता हूँ,इसे यही मेरे साथ सफर करने दीजिए"
जब अंग्रेज टी.सी.को मुँहमाँगा दाम मिल गया तो वो चुपचाप आलम का टिकट देकर वापस चला गया,टी.सी.के जाते ही आलम बोला....
"आपने मेरे लिए इतने पैसे दे दिए"
"तो क्या हुआ?मैं भी तो कभी तुम्हारी तरह हुआ करता था,लेकिन उस समय मेरी मदद किसी ने नहीं की थी",मिस्टर सिंह बोलें...
"वही तो मुझे जानना है कि फिर आपने अमीर बनने के लिए ऐसा क्या किया"?,आलम ने पूछा...
"सुनना चाहते हो तो सुनो,मैनें आज तक किसी से ये बात नहीं बताई ,यहाँ तक कि अपनी पत्नी से भी नहीं लेकिन तुमसे कहे देता हूँ",मिस्टर सिंह बोले...
"तो फिर कहिएगा,मैं बहुत उतावला हो रहा हूँ आपकी कहानी जानने के लिए",आलम बोला...
तो फिर सुनो और इतना कहकर मिस्टर सिंह अपनी कहानी सुनाने लगे....
ये उन दिनों की बात है जब मैं जवान हुआ करता था,मेरी माँ तो मुझे जन्म देते वक्त ही स्वर्ग सिधार गईं थीं और मेरे बाबा ने ही मुझे बड़ी मुश्किलों से बड़ा किया था,वें गाँव में रहते थे और उनके पास थोड़ी सी ही जमीन थी,उस जमीन पर गोरे अफसर जबरदस्ती उनसे नील की खेती करवाया करते थे और उसके बदले में थोड़ा सा अनाज दे दिया करते थे,मैं ऐसे हालातों में पल रहा था जहाँ भरपेट अनाज भी नसीब नहीं होता था,मेरे बाबा तो बस हड्डियों का ढ़ाचाँ थे ,फिर उन्हें तपेदिक हो गया और वें मुझे छोड़कर भगवान को प्यारे हो गए,नील की खेती मेरे वश की नहीं थी,मैं नील की खेती कर भी लेता अगर उसमें कोई मुनाफा होता,मेरे बाबा तो जैसे तैसे नील की खेती कर लिया करते थे,लेकिन मैं वो नहीं कर सकता था और करना भी नहीं चाहता था,इसलिए मैं ने रातोंरात गाँव छोड़कर शहर जाने की बात सोची,इसलिए गाँव छोड़कर मैं एक रात एक कस्बे से दिल्ली जाने वाली रेलगाड़ी में बैठ गया....
मैं भूखा प्यासा रेल में सफर कर रहा था,जो था वो पहले ही बस के किराए और खाने में खर्च हो गया था,रेल में बैठने की जगह तक नहीं थी,रात का सफर था इसलिए मैं ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता था इसलिए मैं फर्श पर ही बैठ गया और फिर ना जाने कब मुझे नींद आ गई,तभी किसी खड़बड़ाहट की आवाज से मेरी आँख खुली तो देखा कि हर कोने से चीखने चिल्लाने की आवाज़े आ रही थीं,मतलब रेलगाड़ी पलट गई थी और मैं अभी भी रेलगाड़ी की वोगी में था,लेकिन जैसे तैसे मैं ने खुद को वोगी से बाहर निकाला और दूसरे लोंगो की भी मदद करने लगा,चाँदनी रात थी,सब ठीक से दिख रहा था, तो मैं कुछ लोगों को निकालकर और आगें बढ़ा,तब मैनें देखा कि एक फर्स्टक्लास का डिब्बा था जहाँ कि लाइट अब भी जल रही थी और वो पलटा नहीं था,बस थोड़ा टेड़ा हो गया था,मैं उस वोगी के पास पहुँचा और भीतर गया तो वहाँ एक महिला थी,जिसके सिर पर बहुत जोर की चोट लगी और उसके सिर से लगातार खून बह रहा था,वो महिला अभी भी थोड़ी होश में थी,मैं उसकी मदद करने ही जा रहा था कि मुझे उसका पर्श दिख गया,मैनें उसे खोला तो उसमे रूपए और बहुत से जेवर थे,मेरी नीयत डोल गई और मैनें उसके पर्श के रूपए और जेवर पास में ही पड़े एक थैले में डाले और साथ में उस महिला के गले का हार,हाथों की चूड़ियाँ,अँगूठियाँ और कान के झुमके उतार लिए,उस महिला ने ना सिन्दूर लगाया था और ना बिन्दी और पास में ही सीट पर उसका बुरका रखा था तो मैं समझ गया कि वो कोई मुस्लिम महिला था.....
लेकिन सवाल यहाँ हिन्दू और मुसलमान का नहीं था,सवाल था रूपयों का जो मुझे चाहिए थे,जिनकी मुझे सख्त जरूरत थी और उस रात मैं इन्सान से हैवान बन गया,यदि मैं उन रूपयों और जेवर के लालच में ना आता तो उस महिला की जान बच सकती थी,लेकिन मैनें ऐसा नहीं किया ,मैं वो रूपए और जेवर लेकर भाग गया और फिर दिल्ली जाकर छोटी-मोटी दुकान खोल ली,उससे मुनाफा हुआ तो बड़ी दुकान खरीद ली और फिर मेरी और तरक्की हुई तो सालों बाद मैनें बड़ा व्यापार शुरू कर दिया,इस दौरान मैनें शादी की और मेरे दो बेटे भी हुए जो अब मेरा व्यापार सम्भालते हैं,लेकिन अब भी मेरी आत्मा मुझे उस रात के कुकृत्य के लिए धिक्कारती है,उस रात उस महिला का उसके पर्श में रखा फोटो भी उन जेवर और रुपयों के साथ आ गया था,मैं जब भी उस महिला की फोटो देखता हूँ तो मुझे एक तरह की शर्मिन्दगी महसूस होती है,मैं उस महिला की फोटो हमेशा अपने पास रखता हूँ,ताकि मैं अपने उस घृणित कार्य को हमेशा याद रख सकूँ....
ये कहते कहते मिस्टर सिंह मायूस से हो गए.....
तब शाहआलम बोला.....
"ओह ..तो ये थी आपकी कहानी"
"हाँ!अमीर होने पर भी आत्मिक शान्ती नहीं है"मिस्टर सिंह बोले....
"तो क्या आप अब भी गलत तरीके से रूपया कमाते हैं क्या"?,शाहआलम ने पूछा....
"आजकल ईमानदारी का जमाना कहाँ है",मिस्टर सिंह बोले....
"क्या मैं उस महिला की तस्वीर देख सकता हूँ",शाहआलम बोला....
"अब तुमसे क्या छुपाना,तुम कौन सा मेरी शिकायत पुलिस में कर दोगे,लो ये देखो ये है उसकी तस्वीर",मिस्टर सिंह ने अपने पोकेट से तस्वीर निकालकर आलम को देते हुए कहा...
फिर शाहआलम ने वो तस्वीर देखी और बोला....
"अब तो सफर खतम होने वाला है,लगता है मंजिल अब दूर नहीं",
"हाँ!शायद हम दोनों राहगीरों का सफर यही तक का था"मिस्टर सिंह बोलें...
"मुझे भी आपके साथ सफर का मजा आया,दो राही और मंजिल एक",शाहआलम बोला....
"मैं कुछ समझा नहीं,दो राही और मंजिल एक कैसें",मिस्टर सिंह ने पूछा...
"स्टेशन आते ही आपको पता चल जाएगा",शाहआलम बोला....
"ठीक है!भाई!तुम्हारी बात तो मेरी समझ से परे है,मैं जब तक सामान समेट लेता हूँ,कुली बुलवाना पड़ेगा ना!,मिस्टर सिंह बोलें....
"लाइए मैं आपकी मदद करता हूँ और मुझे ही अपना कुली समझिए,मैं बहुत से लोगों को उनकी मंजिल तक पहुँचा चुका हूँ"शाहआलम बोला....
"कैसी उलझी उलझीं बातें कर रहे हो"?मिस्टर सिंह बोले....
"आप कुछ देर में सब समझ जाऐगें "और शाहआलम के इतना बोलते ही स्टेशन आ गया और जैसे ही दोनों रेलगाड़ी से नीचे उतरे तो इतने में वहाँ पुलिस आ पहुँची,ये सब देखकर मिस्टर सिंह को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने हवलदारों से पूछा....
"क्या बात है भाई!पुलिस क्यों आई है यहाँ?
तब उन में से एक हवलदार ने शाहआलम की ओर इशारा करके कहा......
"आप हमारे इन्सपेक्टर साहब से ही पूछ लीजिए"
"इन्सपेक्टर साहब.....ये तो शाहआलम है",मिस्टर सिंह बोले....
तब शाहआलम बोला....
"मैं इन्सपेक्टर शाहआलम कादरी! आपको स्मगलिंग के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है,मैं आपको दरियादिल समझकर जाने भी देता,लेकिन जो तस्वीर आपने दिखाई दी वो मेरी अम्मी की थी और इतना कहकर शाहआलम ने मिस्टर सिंह के हाथों में हथकडी़ लगाई और ले चला उनकी मंजिल की ओर.....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....