the curtain went down in Hindi Moral Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | पर्दा हट गया

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पर्दा हट गया

कहानी
पर्दा हट गया
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अभी थोड़े दिन पहले ही सीमा को पदोन्नति देकर जनरल मैनेजर बना दिया गया था। अपने काम के प्रति जूननी और समर्पित सीमा न खुद लापरवाह रहती थी और न ही अपने अधीनस्थों से ऐसी अपेक्षा रखती थी। अनुशासन प्रिय सीमा कंपनी के लापरवाह और कामचोर कर्मचारियों की आंख में इसीलिए चुभती भी थी।आये दिन उसके खिलाफ षड्यंत्र रचे जाते थे,जिसकी जानकारी उसे दी। फिर भी वो चुपचाप अपना काम करती जा रही थी। उसका मानना था कि कंपनी हमें जिस काम के पैसे और सुविधाएं दे रही है, हमें उस काम को पूरी ईमानदारी से निभाना चाहिए।
आज दोपहर भोजनावकाश में कंपनी का एक कर्मचारी अचानक फिसला और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे गिर गया। उसके हाथ पैर और सिर में गहरी चोट आती। सीमा उस समय लंच कर रही थी।उसे छोड़कर भागी। मजदूर की हालत देख वह कांप गई। फिर हौसला कर अपने ड्राइवर से गाड़ी लाने को कहा।
ड्राइवर यथा संभव नजदीक गाड़ी लेकर आ गया। सीमा ने पास खड़े कर्मचारियों से घायल कर्मचारी को गाड़ी में लिटाने को कहा। तब उसमें से किसी ने कहा मैडम गाड़ी गंदी हो जायेगी।
सीमा तैश में आ गई, जो कहा है वो करो जल्दी, किसी की जान से ज्यादा कीमती गाड़ी नहीं है। फिर उसके साथ खुद भी गाड़ी में बैठकर एक प्राइवेट नर्सिंग होम में जा पहुंची और डाक्टर से बोली - डाक्टर साहब इस व्यक्ति का अच्छे से अच्छा इलाज कीजिए। पैसे की चिंता मत कीजिए, जितना पैसा लगेगा मैं दूंगी।
डाक्टर ने घायल मजदूर को देखते ही कहा -मैडम इसे खून की तत्काल जरूरत है तभी हम कुछ कर पायेंगे।
तो कीजिए न इसमें परेशान होने की क्या बात है? सीमा बोली
परेशानी की बात यह है कि इस व्यक्ति के ग्रुप का खून आज शहर के किसी ब्लड बैंक में नहीं है। यदि आप या कोई और अपना खून दे सके तो बेहतर होगा।
तब तक कर्मचारियों का जत्था भी अस्पताल पहुंच गया, जब ये बात कर्मचारियों को पता चली तो दो तीन कर्मचारी खून देने के लिए आगे आये, लेकिन सीमा ने सबको रोकते हुए कहा कि पहले मेरे खून की जांच होगी, जब मेरे खून का ग्रुप नहीं मिलेगा। तब आप लोग जांच कराएंगे।
एक कर्मचारी बोल उठा- मगर आप अपना खून क्यों देंगी एक मजदूर को, हम सब देने को तैयार हैं मैडम।आप चिंता न कीजिए।
ये समय बातों में समय गंवाने का नहीं है। मैं कंपनी की मुखिया हूं, तो पहली जिम्मेदारी भी मेरी है। फिर उसने अपने खून की जांच कराई, उसके खून का ग्रुप कर्मचारी के खून के ग्रुप से मिल गया। सीमा को आत्मसंतोष हुआ, उसने खून देने के बाद फिर डाक्टर से कहा-डाक्टर साहब जो भी करना हो कीजिए, मगर हमारे कर्मचारी को बचाइए।
कहते हुए सीमा की आंखें डबडबा आईं।
वहां उपस्थित कर्मचारियों ने जब देखा तो उन्हें अपने कृत्यों पर पछतावा हो होने लगा। उन सबने सीमा से क्षमा मांगते हुए कहा- हमें क्षमा कर दीजिए मैडम,हम सब आपको अकड़ू घमंडी और जाने क्या क्या समझते रहे और आप तो हमें अपने परिवार के सदस्य जैसा समझती रहीं। हम शर्मिंदा हैं मैडम हम गलत थे। सभी ने हाथ जोड़कर कहा।
शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है हमें अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य ईमानदारी से निभाना चाहिए। कंपनी में मैं तुम सब की मुखिया हूं, लेकिन मैं भी इंसान हूं, मेरे अंदर भी संवेदना है। मुझे पता है जब परिवार में आय का साधन नहीं होता या परिवार का कमाऊ सदस्य हमें छोड़कर चला जाता है तब परिवार की क्या हालत होती है। मैं नहीं चाहती कि हमारी कंपनी के किसी कर्मचारी, मजदूर के परिवार को ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़े।
तब तक घायल मजदूर की पत्नी भी आ गयी। सीमा ने उन्हें ढांढस बंधाया और चिंता न करने की बात कहते हुए अपने गले से लगा लिया और कहा पैसे की चिंता बिल्कुल भी मत कीजिए। जितना भी पैसा लगेगा वो मैं दूंगी। पर आपके पति को कुछ नहीं होने दूंगी।
मजदूर की पत्नी कर्मचारियों से मुखातिब हो कर कहने लगी तुम लोग तो मैडम को, घमंडी, गर्दन टेढ़ी रखने वाली, अकड़ू और जाने क्या क्या कहते थे,अब क्या कहोगे?
कर्मचारियों की गर्दन झुक गई, बोल न सके। उन सबकी आंखों से पर्दा हट चुका था।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित
१९.०७.२०२३