mai to odh chunariya -40 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 40

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मैं तो ओढ चुनरिया - 40

 

बड़ी मामी का मायके का परिवार भरा पूरा था । छ सात बहनें और चार भाई । तीन बहनों और एक भाई की शादी हो चुकी थी । अभी तीन बहनें और तीन भाई कुंवारे थे । मामा की बीमारी में उनका हालचाल पूछने अक्सर भाई आते रहते थे । उनमें से राम भाई के साथ छोटे मामा की दोस्ती हो गई । ये राम मामा रेलवे में फर्स्ट क्लास के डिब्बे में कंडक्टर थे । हमेशा वर्दी में सजे रहते । छोटे मामा ने इन दिनों साबुन बनाने का कारखाना खोल रखा था । इस काम में मेहनत बहुत अधिक थी और आमदनी बहुत कम । राम मामा ने खलासी की मिन्नत करके उन्हें इंजन में कोयला डालने के काम पर रखवा दिया । अब घर के हालात सुधरने लगे थे ।
इन राम मामा की ससुराल दिल्ली में शाहदरा में थी । ससुर जी मंदिर के पुजारी थे । घर में छ बेटियां और उन सबसे छोटा एक बेटा था । इनमें से दो लड़कियों की शादी हो चुकी थी । चार लड़कियां एक के बाद एक शादी के लायक हो गई थी । एक दिन गाड़ी लेकर गये राम मामा छोटे मामा को भी अपने साथ ले गये । मामा को उनकी साली पसंद आ गई तो राम मामा ने रिश्ते की बात चलाई । भाबी , माँ और पिता जी के साथ मैं हम दिल्ली गए । मामी की माँ ईश्वर पर भरोसा करके निश्चिंत रहने वाली प्राणी थी । जो करेंगे , मेरे बंसी वाले करेंगे , वाक्य को तकिया कलाम बना रखा था उन्होंने । सीधे और सरल लोग ।
मामी न माँ को पसंद आई न भाभी को । कालेपन को छूता सांवला रंग था उनका । नये फैशन में कटे छोटे छोटे बाल । तंग कुर्ती और उससे भी तंग पजामी पहने वे हमारे सामने आई तो अनभ्यस्त हाथों से चाय गिरा बैठी । ऊपर से पोछने के चक्कर में चाय के छींटे और उड़ा बैठी फिर घबरा कर भीतर चली गई ।
हम लोग लौट आए थे । राम मामा हमारा तुरंत जवाब चाहते थे पर नानी को बड़े बेटे की गृहस्थी की भी चिंता थी । मामी की नाराजगी का सवाल था । वे हर बार टालमटोल कर जाती । स्पष्ट हां न में जवाब न देती ।
आखिर एक दिन मामा हमारे घर आए । वे तकरीबन हर रोज ही आया करते थे । थोड़ी देर मुझ से बातें करते । मेरी पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछते । माँ को बाजार से कुछ मंगवाना होता तो ला देते । फिर पैर छू कर चले जाते । पर आज उन्होंने न तो मेरे साथ बातें की । न बाजार का काम पूछा । बस ट्रांजिस्टर पर गाने लगा कर ऊँचे सुर में गाने गाते रहे । मेरे इन मामा की आवाज बहुत अच्छी थी । वे मजबूत कद काठी के हीरो लगते थे । अक्सर देवानंद या शम्मी कपूर के स्टाइल में बाल कटवा आते तो पूरे फिल्मी हीरो लगते थे । गली की कई लड़कियां उन पर जान देती थी । इस बात को माँ भी जानती थी और मामी भी । मामा जब घर होते , ये लङकियां कई बहाने बना कर घर आती और आंगन में बिछे खटोले पर पसर जाती । फिर मामी से भरजाई भरजाई करके बातें शुरू कर देती पर उनकी निगाहें मामा के कमरे पर ही लगी रहती ।
अब करीब एक घंटा गाने सुनने के बाद उन्होंने सकुचाते सकुचाते माँ से कहा – बहन वो राम हर रोज मेरा जवाब मांग रहा है । आपने और भाबी ने कोई जवाब उसे नहीं दिया ।
माँ ने भाई का चेहरा देखा । वहाँ उम्मीद की तलाश थी । माँ ने पूछा – तुझे नूरी पसंद है ।
मामा शर्मा गये और साइकिल उठा कर भाग गये ।
माँ ने मुझे कहा – जा तेरे पिताजी को बुला कर ला ।
मैं क्लीनिक गई और माँ का संदेश पिता जी को दिया । पिता जी थोड़ा हैरान हुए । ऐसे मां उन्हें बीच में कभी बुलाती नहीं थी । वे एक मरीज की पुड़िया बांध रहे थे । उन्होंने दो दो गोलियां सफेद और पीली मेज पर फैले चार कागज के टुकड़ों पर रखी ।
ले तू इनकी पुङिया बांध और साथ में एक चार खुराक वाला शरबत भी दे देना । मैं देख कर आता हूँ ।
पिताजी घर के भीतर चले गये । मैंने वह पुङिया बांधी और उन्हें एक छोटे लिफाफे में शरबत समेत डाल कर मरीज को थमा दी – ये दवा , एक पुड़िया एक शाम , एक कल सुबह कुछ खाकर , एक दोपहर में और एक रात को सोने से पहले ले लेना । साथ में एक चम्मच शरबत भी और परसों सुबह आकर दिखा देना ।
उस आदमी ने दस रुपए थमाए और दवा लेकर चला गया ।
माँ ने पिता जी को सारी बात सुनाई । साथ ही यह भी जोड़ दिया कि छोटे को तो लड़की पसंद है ।
पिता जी ने कहा – जब मिया बीबी राजी हैं तो हम बीच में भांजी मारने वाले कौन होते हैं ।
कर देते हैं शादी ।
शाम को हम सब नानी के घर गये । मां ने नानी से कहा – रिश्ते को हां कह दो । हमारे घर में आएगी तो हमारे तौर तरीके सीख जाएगी । हम उसे अपने हिसाब से रहना सहना सिखा लेंगे ।
भाभी ने देखा , बड़ा बेटा बहु और बेटी दामाद सब रिश्ते के पक्ष में हैं तो वह भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गई । तय हुआ कि कल राम के घर जाकर बात पक्की कर आते हैं ।
रात को रोटी खा कर हम लोग चौक से सोडा पीकर खुशी खुशी घर आए ।
अगले दिन माँ और नानी नुमाइश कैंप गये और रिश्ते की बात कर आए । बल्कि उन लोगों के सामने ही ज्योतिस्वरूप मंदिर था वहाँ जाकर पुजारी से गोद भराई का मुहूर्त भी निकलवा लिया ।
मुहूर्त चौदह दिन बाद का निकला था तो ये दिन तो तैयारियों में ही निकल गये ।
सही दिन हम रेल गाडी में बैठे और शगुन दे आए । बदले में हमें भी कपङे और मिठाइयां मिली । घर आकर माँ ने बाजार से फल और मिठाई खरीदी । और पास पड़ोस में बांट दी ।
लोग बधाई देने आ रहे थे और लड़कियां आहें भर रही थी । फिर एक दिन बैंड बाजों के बीच ये छोटी मामी हमारे घर का हिस्सा हो गई ।
ये छोटी मामी बातों की शौकीन थी । काम कुछ आता ही नहीं था । घर में मंदिर का चढ़ावा आता था । लोग दोनों समय थाली परस कर दे जाते । जो थोड़ा बहुत काम होता भी था तो बड़ी बहनें कर लेती । बाहर का भाग दौड़ वाला काम उन्हें भाता था । यहाँ उससे भी छुट्टी हो गई । यहाँ बाजार से सामान लाने के लिए तीन तीन मामा थे और कपङे जैसी चीज खरीदने के लिए माँ तो अब बाजार जाने की भी जरूरत नहीं थी तो ये मामी सज संवर कर बेड पर लेटी रहती । हाथ की पंखी से खुद को हवा देती रहती ।

 

बाकी फिर ...