Musafir Jayega kaha? - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२१)

बंसी और बेला पहले रामस्वरूप जी के पास गए फिर रामस्वरूप जी उन्हें ठाकुराइन कौशकी जी के पास ले गए,तब कौशकी जी दोनों से बोलीं...
"तुम दोनों घबराओ नहीं! बेला को कुछ नहीं होगा,मैं लक्खा से बात करूँगीं",
और फिर फिर ठकुराइन कौशकी जी ने लक्खा के घर किसी से संदेशा भिजवाया कि ठकुराइन जी ने तुझे फौरन शान्तिनिकेतन बुलवाया है,वें तुझसे कुछ जरूरी बात करना चाहतीं हैं,ठकुराइन जी के संदेश को लक्खा कभी नहीं टालता था इसलिए वो फौरन भागा भागा शान्तिनिकेतन पहुँचा और ठकुराइन जी के पास जाकर बोला....
"मालकिन! आपने मुझे बुलवाया",
"हाँ! लक्खा! बहुत जरूरी काम था तुमसे",ठाकुराइन कौशकी बोलीं....
"जी! कहिए! आप तो मेरी माँ समान हैं,मैं आपका कहा कैसें टाल सकता हूँ",लक्खा बोला...
"जब तुम मुझे अपनी माँ समान मानते हो तो तुम्हारे समान मेरे और भी दो बच्चे हैं,मैं चाहती हूँ कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम अपने ऊपर ले लो,",ठाकुराइन बोलीं...
"हाँ! क्यों नहीं,मैं आपका आदेश भला कैसें टाल सकता हूँ,कौन हैं वो दोनों?",लक्खा बोला...
"वचन देते हो ना कि उनकी सुरक्षा करोगे",ठाकुराइन कौशकी बोलीं...
"हाँ! मालकिन! मैं उन दोनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता हूँ,अपने बेटे पर भरोसा नहीं है क्या आपको",लक्खा बोला...
"भरोसा था तभी तो तुम्हें उन दोनों की जिम्मेदारी सौंपी है",,ठाकुराइन कौशकी जी बोलीं...
"तो फिर बुलाइए उन दोनों को,मैं उन दोनों से मिलना चाहता हूँ",लक्खा बोला....
और फिर लक्खा के कहने पर ठाकुराइन कौशकी जी ने दोनों को बाहर बुलवाया,जब बंसी और बेला लक्खा के सामने आए तो फिर लक्खा कौशकी जी को दिए अपने वचन से मुँह ना मोड़ सका और फिर लक्खा ने कभी दोनों को तंग नहीं किया,फिर कुछ महीने बाद बेला ने एक बेटे को जन्म दिया और जब ये खबर लक्खा तक पहुँची तो वो खुद को बंसी के घर जाने से रोक ना सका और फिर वो ढ़ेर सारा सामान और मिठाई लेकर बंसी के घर पहुँचा और बंसी उसे अपने घर में देखकर परेशान हो उठा,तब लक्खा बंसी से बोला....
"बंसी! मुझे देखकर परेशान मत हो,मैं तो तेरे घर दोस्ती का हाथ बढ़ाने आया हूँ,जो गलतियाँ मैंने की है,उन्हें भूलकर फिर से दोस्ती की शुरुआत करते हैं,देख मैं बेला के लिए साड़ी और बच्चे के लिए ढ़ेर से खिलौने लेकर आया हूँ,अब पुराना सबकुछ बिसराकर जिन्दगी में आगें बढ़ते हैं"
"मुझे भरोसा नहीं है तुझ पर ,तू मुझे दो बार धोखा दे चुका है",बंसी बोला...
"इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा,मैं तो तुझे अपनी शादी का न्यौता देने आया था ,मेरी शादी तय हो चुकी है,इसलिए बेला से बोलना,सारे नेगचार उसे ही करने हैं,ब्याह की सारी जिम्मेदारी तुम दोनों के ऊपर ही होगी",लक्खा बोला...
"तू सच कहता है",बंसी ने खुश होकर पूछा...
"हाँ! मैं भी कब तक ऐसे आवारा बना फिरता रहूँगा,सोचता हूँ कि अब घर बसा ही लूँ",लक्खा बोला...
"ये तो बहुत अच्छा सोचा तूने,बधाई हो ....बहुत बहुत बधाई हो",बंसी खुश होकर बोला....
"तो फिर अब तूने माँफ कर दिया ना मुझे",लक्खा बोला....
"हाँ! जब तू सच्चे दिल से माँफी माँगेगा तो माँफ ही करना पड़ेगा",बंसी बोला...
और फिर उस दिन के बाद दोनों के गिले शिकवे दूर हो गए और फिर कुछ दिनों बाद लक्खा की शादी हो गई,बेला और बंसी ने लक्खा के ब्याह की पूरी जिम्मेदारियांँ निभाईं,उन दोनों की दोस्ती यूँ ही बरकरार रही,कुछ भी हो लेकिन लक्खा अभी तक बेला को नहीं भूल पाया था,इसलिए वो अपनी पत्नी जागृति को दिल से नहीं अपना पाया और ऐसे ही लक्खा के ब्याह को दो साल बीत गए,लेकिन उसका व्यवहार जागृति के लिए अच्छा ना हुआ,जब कि जागृति बहुत अच्छी लड़की थी ,वो पूरे मन से लक्खा की सेवा करती थी,फिर धीरे धीरे समय बदला आखिर एक ही घर में रहते हुए लक्खा कब तक जागृति से मुँह मोड़ पाता फिर जागृति का स्वाभाव देखकर लक्खा ने उसे अपना लिया और फिर लक्खा के घर में भी कुछ महीनों बाद बच्चे की किलकारियाँ गूँजने लगी,लक्खा के घर बेटी ने जन्म लिया था,जिसका नाम उसने धानी रखा.....
फिर एक दिन बातों ही बातों में लक्खा बंसी और बेला से बोला....
"बंसी! आज से तेरा लड़का मेरा हुआ,ये ले एक रुपइया शगुन,अब से तेरा रमेश मेरा दमाद हुआ",
"लक्खा!एक बार फिर सोच ले,मैं बहुत गरीब हूँ,तेरी बेटी को वो सुख और आराम नहीं दे पाऊँगा जो वो तेरे घर में पाएगी",बंसी बोला....
"कोई बात यार अब तो वो तेरी बहू है जैसी मर्जी आएं वैसें रख",लक्खा बोला....
"अगर तेरी बेटी ने मेरे बारें में तुझसे कोई शिकायत की तो फिर मुझसे आकर मत बोलना",बेला बोली....
"मुझे मालूम है बेला कि तू मेरी बेटी को फूलों की तरह रखेगी,कभी शिकायत का मौका ही नहीं देगी,तेरा दिल बहुत बड़ा है,तभी तो तूने मुझे मेरी इतनी गलतियाँ करने के बावजूद भी माँफ कर दिया",लक्खा बोला....
"वो तो गुजरी बातें हो गईं हैं लक्खा! तू उनको भूल क्यों नहीं जाता",बेला बोली...
"कुछ बातें दिल से चाहकर भी नहीं निकलती बेला!",लक्खा बोला....
और ऐसे ही बातों बातों में दिन बीतने लगे अब बंसी का बेटा रमेश छः साल का होने को आया था, सर्दियों के दिन थे एक दिन दोनों माँ बेटे रेस्ट हाउस के बाहर चारपाई डाल कर धूप सेंकने बैठे थे,तभी रमेश ने अपनी माँ बेला से कहा कि....
" माँ! मुझे पानी पीना है,भीतर से ला दो ना!",
"तू खुद उठकर क्यों नहीं पी लेता",बेला बोली...
"माँ! मेरी प्यारी माँ! ला दो ना पानी",रमेश बोला...
जब बेटा इतने दुलार से कह रहा था तो बेला कैसें ना पानी लेने उठती और वो पानी लेने भीतर गई और जैसे ही वो पानी लेकर चारपाई के पास आ रही थी तो उसने रमेश के पास चारपाई पर एक जहरीले साँप को देखा और वो उसे बचाने उसकी ओर दौड़ी और उसने रमेश को बचाने के लिए उस साँप को अपने हाथ में पकड़ लिया और फिर साँप ने बेला को डस लिया,बंसी उस समय हाट गया था सामान लेने,वो जब तक वापस लौटा तो बेला ये दुनिया छोड़कर जा चुकी थी,अब बेला के जाने के ग़म में बंसी दोबारा शराब पीने लगा और रमेश की सुध ना लेता,बेचारा रमेश दिन दिनभर यूँ ही भूखा प्यासा पड़ा रहता,
अब ये खबर लक्खा के पास पहुँची तो उसने बंसी को बहुत समझाया और उससे बोला कि.....
" वो तो निष्ठुर निकली जो चार दिनो का मोह दिखाकर तुझे अकेला छोड़कर चली गई,लेकिन अब तुझे रमेश के लिए जीना है,तू उसका ख्याल रख,देख तो माँ के जाने के बाद लड़के की क्या दशा हो गई है अगर तू भी उसका ख्याल नहीं रखेगा तो फिर बेचारा लड़का कहाँ जाएगा?"
"तुझे उसका इतना ख्याल है तो तू क्यों नहीं रख लेता उसे",बंसी बोला....
और फिर बंसी की इस बात पर लक्खा गुस्सा होकर रमेश को अपने घर ले आया और जागृति से बोला....
"आज से रमेश हमारे घर पर ही रहेगा"...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...