ball game, catch game in Hindi Comedy stories by राज बोहरे books and stories PDF | गेंद का खेल, पकड़ का खेल

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गेंद का खेल, पकड़ का खेल

व्यंग्य- गेंद का खेल, पकड़ का खेल
नब्बे के दशक का जमाना था, हम चम्बल में चल रहें साक्षरता अभियान में अपने एक मित्र के साथ बीहड़ बीहड़ और गाँव गाँव या घाट घाट भटक रहें थे कि एक खंडहर में हम भोजन बनाने को रुके। सहसा हमारे साथियों ने खंडहर मकान के किसी आले से मिला एक जीर्ण शीर्ण सा कागज़ हम्मरे हाथ में लाकर रख दिया तो चकित से हो कर हमने बड़ी सावधानी से कागज़ की तह खोली और उस पर लिखी इबारत पढना शुरू किया... वह एक लेख जैसा कुछ था , आइये उस लेख को आपको भी पढवाएं -
हमारे देश में खेल बोले तो सिर्फ क्रिकेट है, जैसे बाथरूम बोले तो लघु शंका निवारण प्रकोष्ठ ही याद आता है। लेकिन एक जमाना था जब हमारे आर्यावर्त में नाना प्रकार के खेल हुआ करते थे, बड़ों के अलग, बच्चों के अलग और स्त्रियों व बूढों के अलग।
गेंद के खेल केवल केवल बच्चे ही खेलते थे , श्री मद भागवत में उल्लेख हे की कहा जाता है कि जमुना किनारे गेंद खेलते श्री कृष्ण की फेंकी गेंद जमुना में चली गयी, जमुना में उन दिनों ‘कालिया ‘ नाम का एक भयंकर सर्प या नाग रहता था, कुछ लोग यह कहते हैं कि यह कालिया नाग कोई सर्प न था बल्कि उस इलाके का दादा गुण्डा था, तो बात चल रही थी कि गेम खेलते वक्त जब गेंद जमुना में चली गयी तो ग्वाल वाल बोले ‘ कान्हा तुमने गेंद फेंकी थी , अब तुम ही निकाल कर लाओ !’ सो श्रीकृष्ण कूद गये जमुना में और कालिया नाग की जम के ठुकाई की, और इस तरह श्री कृष्ण ने यमुना में कब्ज़ा करे बैठे कालिया नाग को विस्थापित किया था!यह सब गेंद की करामत थी, बल्कि एक खेल की करामात थी !
लेकिन आज गेंद के इतने खेल विकसित हुए हैं कि बच्चों और बड़ों के सारे भेद मिट चुके हैं, अब हर खेल हर उम्र का मनुष्य खेल सकता है। वह तो पुराने जमाने में युद्ध भी खेल की तरह खेले जाते थे और मुकदमे भी कुछ इसी मानसिकता के साथ यानि आमने सामने की पार्टियाँ एक ही दोस्तों की तरह अदालत तक जाते थे और भीतर घुस के पाला बदलते थे। मेरे दादाजी जब अपनी जागीर का मुकद्दमा लड़ने हिज हाइनेस महाराज माधोराव सिंधिया के इजलास में ग्वालियर तक जाते थे तो उनके ट्रेन टिकट , ताँगा खर्च और भोजन का इंतजाम श्री सबदल सिंह लम्बरदार करते थे , और सबसे बड़े बिसमय की बात यह थी कि यह मुकद्दमा मेरे दादाजी और श्री सबदल सिंह लम्बरदार के बीच में ही लदा जा बढ़ा था ! कितने अचरज की बात है न !
अचरज खासकर इसलिए भी कि आज खेल भी युद्ध की मानसिकता के साथ खेले जाते हैं। फुटबौल खेल में तो खून खच्चर हो जाया करते है !
अलग देश में अलग खेल होते हैं , हमारे देश में तो हर अंचल की खेल संबंधी परंपराएं अलग-अलग हैं और खेल भी अलग-अलग !
हमारी चंबल घाटी में अब बच्चे क्रिकेट ,फुटबॉल और कबड्डी नहीं खेलते, डाकू डाकू खेलते हैं या पकड़ पकड़!
मैंने ध्यान दिया तो पाया कि यह खेल है भी मजेदार और रोमांचक और सबसे बड़ी बात यह है कि जिसकी जैसी क्षमताएं हैं , जैसी कल्पना शीलता है वैसी उड़ान भर ले, वैसे रंग भर ले, वैसी पकड़ कर ले, वैसा आसामी खोज ले, वैसा दलाल खोज ले और वैसी ही वापसी ले ले यानी फिरोती !
अब ड़ाका डालने और लूटने का काम नौसिखए टाइप के छिछोरे डाकू करते हैं, इस धंधे के नए रूप नए जमाने के साथ चरण में आए हैं ! आज का जमाना पकड़ का जमाना है, न मारपीट , न गोलीबारी! मौका देखा और दो-चार लोगों को लपेटे में ले लो , फिर कर लो डीलिंग शुरू!
मजा तो यह है कि जिसकी जैसी क्षमताएं उसको वैसे काम की पेशकश! शहरी शोहदों का काम सिर्फ इतना कि शहर से पकड़ उठाएं और किसी गिरोह तक पहुंचा दें, हो गए पच्चीस पचास हजार अन्टी में बच्चे! गिरोह चाहे तो और बड़े गिरोह को आसामी सौंप कर अपनी औकात बराबर पैसा ले ले! वहाँ भी ऑफर कम नहीं है कंपटीशन भी बड़ा तगड़ा है जो जिससे कट थॉट कंपटीशन कहते हैं न वह वाला!
जानकारी के लिए भी आपको डर-डर और बेहद बेहद नहीं भटकना, सरकार के पास t1 से लेकर t 100 तक जाने कितनी फाइलें हैं, जिनमें पकड़ने वालों की सारी जन्मपत्री लिख रखी है पुलिस वालों ने संभावित पकड़ के कारोबारी की !
अब ग्राहकों पर है कि वह अपने आसामी की डील कहां करता है, किसको कहां पैसे देता है और घर वालों को सुरक्षित लाता है !
वैसे यह वैसे व्यंग्य का नहीं करुणा का है पर व्यंग भी तो करुणा ही उपजाता है!
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