Pyar ya Dhoka - 3 in Hindi Love Stories by Anshu Kumar books and stories PDF | प्यार या धोका - 3

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प्यार या धोका - 3

प्यार या धोका
 
चैप्टर -3
 
प्यार था धोखा
 
यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है, इस कहानी के सारे पात्र अस्ली / अंशली है ।
 
यह कहानी है एक लड़का और एक लड़की की जो प्यार या धोखा' पे आधारित हैं।.
 
गंगा किनारे बसा एक हसीन गाँव था जहाँ पर सारे लोग दिखावे का अपने कहलाते थे अंदर से कोई किसी को पसंद नहीं करता था और सब एक दूसरे में बुराई देखते थे। परन्तु वहाँ कुछ बच्चे । लड़के थे जो ये सब छोड़ कर अपनी जिन्दगी बर्बाद कर रहे थे उनहीं लड़को में से एक लड़का मैं भी हूँ, जी हाँ मैं भी, मेरा नाम अ. के (AR) हैं, मैं एक पढ़ने वाला चालाक लड़का था परन्तु मैनें अपनी जिन्दगी कैसे अपने हाथो बर्बादि की आइए जानते हैंयह कहानी मेरी है, मैं ही अपनी कहानी का हीरो हो और मैं ही अपनी कहानी का विर्लन भी है। जब मैं स्कूल में था मेरे भी बहुत सारे दोस्त थे, मेरे भी बहुत सारे मैडल थे ।
 
मैं भी टॉप करता था परन्तु उससे मिलने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं है, मेरे पास अब कोई मैडल नहीं है और न ही अब में ट्रांप करता, ट्रांप करना तो छोड़ो मुस्किल से बस पास होता । यह उस समय की बात है जब 岸 कक्षा दसवीं में था, स्कुल खत्म होने के बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने उनके कालेज जाता या क्योंकि मेरे स्कूल की छुटट्टी बारह बजे होती और मेरे दोस्त जो कालेज में पढ़ते थे उनकी दो बजे तो मैं स्कुल खत्म करने के बाद अपने दोस्तों के पास उनके कॉलेज में चल जाता, मुझे अपने स्कुल से ज्यादा अपने दोस्तों का कालेज पसंद था क्योंकि
 
जहाँ हमारे स्कुल में ड्रेस पहनना पड़ता था. वहीं कालेज में आप कुछ भी पहन सकते थे।जहाँ हमारे स्कूल में छुटट्टी होने तक पढ़ाई ही होती थी वही कालेज में बस छोड़ी पढ़ाई होती थी। कालेज के बच्चे, स्कुल के बच्चों से अच्छी जिन्दगी जी रहे थे। उनकी जिन्दगी हम बच्चों की जिन्दगी से अच्छी थी, वह सारे दिन घूमते रहते थे और कभी-कभी पढ़ते थे मुझे भी ये सब करना था इसलिए मैनें कालेज के First Year के छात्रों को अपना दोस्त बना लिया। अब कालेज के दोस्त मुझे स्कुल के दोस्त से ज्यादा पसंद थे क्योंकि वह बाईक (Bike) से कालेज आते, सिगरेट पिते, घूमते-फिरते, गलफेड़ बनाते और वही मेरे स्कूल के दोस्त अपनी टूटी-फूटी साईकिल से आते, दूध पीते और दिन भर स्कुल में बैठे रहते और गलफेड के नाम पर बस लड़की के बारे में सोचते रहते। अब में हर रोज कालेज जाने लगा था क्योंकि अब मुझे कालेज कुछ ज्यादा ही पसंद हो गया था, ही, हाँ आप बिल्कुल सही सोच रहे है। इसलिए अब मैं हर रोज कॉलेज आता हूँ, कालेज के लिए कभी कभी स्कूल भी नहीं जाता हूँ।.बात लड परी और मेरी घडल जात मेरी दिल परी एक ज्यादा पटने फिर रहता हमारी जैसे
 
अब मई का महीना चल रहा है और मैरे स्कूल की गर्मी की छूटिया हो गई। तो अब मैं रोज कालेज जाता है। कालेज के दोस्तों के साथ बहुत मजे करता हूँ, पर मुझे अपने दोस्तों से चीढ़ होती है क्योंकि उन सभी के पास ग्रलफेड़ है और मेरे पास नहीं, खैर यह सब छोड़ो, हम सारे दोस्त साथ-साथ खेलते, साथ-साथ घुमते, और साथ-साथ पढ़ते भी थे। रोज की तरह में दोस्त के साथ बाईक पर 'कुल' बनके कालेज जा रहा था तभी रास्ते पर एक 'परी दिखी' हाँ परी, जिसकी मोरनी सी सुंदर आँखे, कोगल से होठ और सुरज सा लालीमा गाल, और दूध सा गोरा वर्दन | ये वह परी थी जिसके पिछे कॉलेज के सारे लड़के पड़े थे । बार वह किसी को न देखती और न ही बोलती । वह "परी रास्ते पर एक लड़के को डाँट रही थी क्योंकि उस लडके ने उस परी को लंव लेटर दिया था।. हम बाइक पर थे परन्तु मैं बाईक रोक-कर गया और उस लड़के को बचाया उस परी ने क्योंकि वह परी अब गुस्से से लाल होरंग
 
रास्त
 
रही थी। फिर कालेज आए। फिर थोड़ी देर वह परी भी कालेज में आती है और हो कालेज से घुसती है वैसे ही सारे उसको देखने लगते हैं, मेरी तो उस परी पर से ही नहीं हट रही थी। और जैसे ही वह परी मेरे पास आई वैसा ही मेरी धडकन बहुत बेल हो गई। मैं बिल्कुल हडबडा सा गया पर वह अपने क्लास में चली जाती है। अब उस परी को देखने के बाद मेरी आँखे उसे भूल नहीं पा रही है और मेरा दिल ठहर नहीं पा रहा है। अब मैं उस धरी की ख्यालों में खोने लगा था तभी पिछे से एक दोस्त आया और सर पर मारा। और कहीं ज्यादा ख्याति पुलाव मत पका वह तुझझें नहीं पटने वाली, मैंनें कहाँ क्यों पट जाइएगी /. फिर में उस परी को बहुत दिन ऐसे ही देखते रहता वह कभी-कभी मुझे देखती । कभी-कभी हमारी आँखे मिल जाती तो मुझे ऐसा लगता जैसे मैं हिरो हूँ। व और वह मेरी हिरोईन है /-
 
कर। :→
आगे का हिस्सा चैप्टर ४ मे है।।