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नयी संसद

थेम्स के किनारे इस खूबसूरत भवन में ब्रिटिश पार्लियामेंट बैठती है।

कोई 900 साल पुराना ये भवन कई बार पुनर्निर्माण किया गया। वर्तमान स्वरूप में कोई 500 साल से है। हाल में गोथिक आर्किटेक्चर के, इस सबसे जाने पहचाने नमूने का रिस्टोरेशन चल रहा था।

यहां हाउस ऑफ लॉर्ड्स है, हाउस ऑफ कॉमन्स है, चर्च है, सीमेटोरी है। मदर ऑफ आल पार्लियामेंट के नाम से जानी जाती है।
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वेस्टमिंस्टर मॉडल, दुनिया मे गवरनेंस का एक सफल मॉडल है। भारत मे इसी मॉडल का लोकतंत्र चलता है। मगर ब्रिटेन अनोखा देश है, जो लोकतन्त्र है, मगर रिपब्लिक नही।

ये किंगडम है,
"यूनाइटेड किंगडम."
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हाउस ऑफ कॉमन्स जब बना था, इसमे 500 से अधिक सदस्य थे, जो बढ़ते बढ़ते 700 सदस्य हो गए।

मगर सीटें यहां आज भी 478 हैं।

दायें नीचे की तसवीर में हाथ बांधे खड़े लोग, कोई मार्शल या प्यून नही। ये राइट ऑनरेबल एमपी साहबान हैं।

बहुमत से जीकर अंदर आए हैं।
खडे हैं, क्योंकि जगह नही है।
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सदन में जो पहले आता है, सीट पर बैठ जाता है किसी बस या रेल के अनारक्षित डिब्बे की तरह। लेकिन महिलाओं, वृद्ध सदस्यों या वरिष्ठ को देखकर कुर्सी छोड़ दी जाती है।

या आगे पीछे खिसककर, चिपककर, किसी तरह अपने साथी को स्पेस दे दिया जाता है। किसी को नाम लिखी चौड़ी सीट नही मिली।

नए एमपी पीछे बैठते है। सीनियरिटी और अनुभव के साथ, केंद्र की ओर बढते है।
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सदन में भीड़ हमेशा नही होती। पर जब वोट ऑफ कॉन्फिडेंस हो, बजट या महत्वपूर्ण बहस हो, थ्री लाइन व्हिप जारी हुए हो, तब पैक्ड हाउस होता है।

पैक्ड हाउस, याने बैठने की जगह नही। सौ से उपर सांसद, कोने-किनारे मे जगह देखकर खड़े रहते हैं।
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हर सीट पर माइक नही। बाबा आदम तकनीक का एक माइक होता है, जो उपर लटके तार पर झूलता है। वक्ता बदलने के साथ, सरककर दूसरे वक्ता के पास आ जाता है।

पुरानी ओक और वालनट की लकड़ी की बनी बेंच। साधारण गद्दियाँ, ठूंसे हुए लोग ..

ऐसा नही की ब्रिटेन के पास, एक सुसज्जित, सर्वसुविधायुक्त, नई पार्लियामेंट बनाने के लिए पैसा नही।

उनके पास दुनिया का सबसे ज्यादा पैसा है। ब्रिटेन तो दुनिया के काले सफेद पैसे का स्टोरहाउस है। मगर यह भवन उनकी अस्मिता है, उनका गौरव है,

उनका इतिहास है।
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कभी ये भवन, दुनिया के चौथाई हिस्से की किस्मत तय करता था। इसके फर्श ने, दुनिया के हर मशहूर शख्स की कदमबोसी की है।

यहां क्रामवेल की आवाज गूंजी, चर्चिल ने "नेवर सरेंडर" कहा। फ्रेंकलिन ने "नो टैक्सेशन - विदाउद रिप्रेजेंटेशन' की हुंकार भरी। वो शब्द, वो लम्हे, वेस्टमिंस्टर की दीवारों में जज्ब होकर गूंजते हैं।

तो भवन मे आया, एक नया MP भी ब्रिटेन के इतिहास से जुड़ जाता है। उस गरिमा के सागर की एक बूंद हो जाता है। यह होना एक गंभीर अनुभूति है।

ये अनुभूति सहेजकर, सीने से लगाकर वे खड़े होते हैं। इस भवन में उनके राष्ट्र की जड़ें हैं, जड़ों में उनकी आस्था है। यह आस्था, यहां हुई बहसें, यहां बनी परम्पराएं ही तो ब्रिटेन का संविधान है।

भला कोई चमचमाता शीशे का सुसज्जित भवन, भव्यता और LED स्क्रीनों के साथ, इस गौरव का मुकाबला क्या ही करेगा?

तो सांसद खडे़ रहेंगे.. पर कहीं और न जाऐंगे। जी हां, एक बार नए भवन का प्रस्ताव भी आया था।

बुरी तरह से खारिज हो गया।
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हंगर इंडेक्स में 101 वें स्थान पर खड़ा देश, 20 हजार करोड़ खर्च कर नई पार्लियामेंट, नई राजधानी बना रहा है।

क्योकि नए नाजी रेजीम को, भारत की छाती पर अपने स्मृति चिन्ह खुरचने है। ख्याली विश्व गुरु को एक भव्य नई जर्मनिका चाहिए। जिसके चप्पे चप्पे में उसके शिलापट्ट लगे हों।

तो वो पुरानी इमारत, जहां भारत को आजादी मिली, परवान चढ़ी। जहां भारत के बेहतरीन स्पीकर, सभासद, वक्ता, प्रधानमंत्री, स्टेट्समैन बैठे...

जहां सरदार, अंबेडकर, शास्त्री, अटल, की आवाज गूंजी.., जहां एक खंभा आज भी भगतसिंह के "बहरो के लिए किए गए धमाके" के निशान लिए खड़ा है ।

जहां "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" की बात हुई। जहां हमने पक्ष और विपक्ष का एका देखा। जहाँ नम निगाहों से टकटकी लगाई जनता ने, दिल हरा करने वाले भाषण सुने,

जहां हम भारत के लोगों ने अपना संविधान लिखा, और आत्मार्पित किया।

वह सन्सद .. !!!

हिंदुस्तान के लोगों, सुनो !! अब वो छोटी हो गयी है। आज वह त्याग दी गयी है।
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हमारे जियालो की न्यौछावर जिंदगियों से मिली आजादी, आज नकली हो गई। गांधी के लहू से सने गोडसे को आजादी मिल गयी है।

इतिहास का गौरव जगाने वाले, हमारे इतिहास की गौरवमयी इमारत को लात मार चुके। अब लोकतन्त्र को, उसके बचे खुचे प्रतीकों को लात मार रहे हैं।

क्या हमे सोचने की जरूरत है।
सोचिये।

सोचिये, कि हमें क्या सोचने की जरूरत है। क्या तुरन्त, किसी को रोकने की जरूरत है?