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शायरी - 15

हमारी जिंदगी में आना भी, और आकर रहना भी।
बड़ा मुस्किल है मरना भी, और मर कर जिंदा रहना भी।।

हम उनकी हर अदाकारी के कायल ठहरे,
उनका तो पता नहीं हम तो बस घायल ठहरे ।
राह चलते हुए को छेड़ना इश्क करना उनसे,
हाल कुछ यूं हो जाय जैसे पानी पर बुलबुले ठहरे।।

आप आते गए हम खोते गए
दिल हंसता गया हम रोते गए

सहारे एहसास के चाहिए थे किनारे सब होते जा रहे हैं
दिमाक वालो की दुनिया में दिल ढूढना मुश्किल होता जा रहा है

आप चाहते तो हम कुछ भी करते, क्या हम आपसे सिर्फ दोस्ती करते।
राह में तुम्हारे साथ भी चला करते, नही तो आपकी मुश्किल आसान करते।।
नजदीकियां मंजिल की सुनाया करते, रास्ते में दिल को भी बहलाया करते।
मुड़ कर पीछे कभी भी न देखा करते, बस आखिरी दम तक साथ निभाया करते।।

ले उड़ी थीं आंधियाँ मेरे मन का चैन
उसको देखा तो सनम आया दिल को चैन

ले जाओ सारे तख्त और ताज सामने से मेरे
आप आईना हो तो सिर्फ हकीकत दिखाओ

घर में एक दरवाजा है, दरवाजे पर नजरें हैं ।
आप हमारे घर आए हो, हम क्यों बाहर बैठे हैं ।।

जंग कैसी भी हो जीती जा सकती है, मसला कोई भी हल किया जा सकता है।
बात गद्दारी करने की थी वर्ना, हालत कैसी भी हो लेकिन निभाई जा सकती है।।

काश वो रास्ते में मिल जाए
और वो रास्ता आखिरी हो मेरा

अब लगता हैं कि पूरे सारे सपने होने वाले हैं।
मौत करीब आ रही अब सब अपने होने वाले हैं।।


कभी सोचा नहीं था इश्क में यूं समंदर होना
जो कुछ मीठा था ले गई अब बचा ही है खरा होना


आप की शायरी में गलत मिसरा आ गया है जनाब, वगरना
आप ऐसा लिखते तो जमाना न जाने क्या क्या पढ़ता जनाब


हम अपनी कश्ती को साहिल में उतरेंगे जरूर
इन्तजार उस तूफान का है जिसे डुबाने का है गुरुर

मचलती हुई रातों के किनारे पर बैठ कर देखें हैं हमने सभी नजारे
कैसे कैसे लोग होश में आतें हैं टूटे हुए पैमाने और शाज के साथ

हमे आजमाइए बेहतर है, मसवरा ये की दूर से।।


जो प्रेम में उलझा और डूबा नही, वो प्रेम की महिमा क्या जाने।
जो आशिक बना है और प्रेमी नहीं, वो प्रीत पुरातन क्या जाने।।


नाव मेरी उलझी है पड़ी, मझधार का आशिक मैं भी हूं।
डूबी गर तो फिर पार हुई, वरना इसमें तो सवार मैं भी हूं।।

ले चल अपने अंदर तक मुझे, देखूं तुझमें है क्या क्या रे छुपा।
इतनी कश्ती जो डूबोदी तुमने, कहीं दिल में अपने हीं लिए छुपा।।

हर दरिया का किनारा हो जरूरी तो नहीं, मैं भी उसे जान से प्यारा हूं जरूरी तो नहीं।
उसकी आंखों में डूब जाऊं जरुरी था मगर, हर वार आशिक का हीं खसरा हो जरुरी तो नहीं।।

आप चाहें या तो छोड़ें आप को सब छूट है।
प्रेम तो बस आप से है और वो अटूट है।।

हुनर आजमाइए या जिगर आजमाइए।
तीर है कमान पर बस सामने तो आइए।।

हर आदमी हवस का भूंखा है इस जहां में।
आप कब आइएगा हमसे मिलने बियाबां में।।

हम अपने दर्द का हर महफिल में शोर मचाएंगे।
चुप चाप बैठेंगे और लौट कर चले आयेंगे।।