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फादर्स डे - 45

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 45

सोमवार 31/01/2000

सूर्यकान्त केवल अपना मंतव्य बताकर शांत नहीं बैठा। उसने खोज करने का तेजी से शुरू कर दिया। बीड़ में पांच लाख रुपयों की फिरौती के लिए अपहरण होने की खबर मिलते ही वह बीड़ की ओर भागा। अपह्रत बच्चा आठ दिनों के बाद पुणे से सुरक्षित वापस मिल गया। कोल्हापुर के पास हुपरी गांव के सात साल के बच्चे का खून कर दिया गया। कारण केवल यह था कि एक लाख रुपए की फिरौती नहीं मिल पाई। खून किए गए बच्चे का फोटो देखकर सूर्यकान्त व्यथित हो गया।

शिरवळ गांव में सूर्यकान्त नाम का दबदबा बढ़ने लगा था। समाचार पत्रों में अपहरण की खबर पढ़कर सूर्यकान्त जिधर भागता, वहां शिरवळ पुलिस भी उसके साथ हो लेती थी। अब पुलिस को संकेत अपहरण मामले का पता लगाने की उत्सुकता बढ़ गई थी। इसीके साथ एक पीड़ित पिता की मदद करने का संतोष भी उन्हें मिल रहा था।

अपहरण के पांच से सात मामले जहां-जहां हुए, वहां-वहां सूर्यकान्त अपनी मित्रमंडली और पुलिसकर्मियों के साथ पहुंचा। अपह्रत बच्चों के माता-पिता से पूछताछ कर आवश्यक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाती। संभव हुआ तो संदेही व्यक्ति से भी पूछताछ की जाती। शिरवळ पुलिस को साथ लेकर स्थानीय पुलिस चौकी में प्रवेश करते थे। यथासंभव अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करने की उनका प्रयास चलता ही रहता था। अब तक अपहरण संबंधी करीब सात घटनाओं वाले स्थानों पर सूर्यकान्त होकर आया था। सबसे पहले वह अखबार में छपी घटना को सिलसिलेवार पढ़ लेता था। संभव हो तो फोन पर भी जानकारी ले लेता था। टिप्पणी लिख कर रख लेता था। इसमें से उसके काम की कोई बात निकलती है क्या उस पर बारीकी से ध्यान देता था। इसी के साथ हरेक अपराधी की गतिविधियों, गुनाह करने के तरीके का व्यवस्थित और गहराई से अध्ययन करना जारी रखा था।

इस भागदौड़ के बीच किसी नए ज्योतिषी की जानकारी मिले तो वहां पहुंचना। ज्योतिषी द्वारा बताई गई जगह पर जाना, वहां जाकर जांचना-परखना, आसपास खोज करना, इतनी भागमभाग के बावजूद अभी तक कोई सुराग हाथ नहीं लगा था. ठोस जानकारी मिल नहीं रही थी। सही दिशा मिल नहीं रही थी। फिर भी सूर्यकान्त बिना थके प्रयास कर रहा था। बिना आलस, बना थके। निराश-हताश हुए बिना सूर्यकान्त अपने बेटे संकेत को खोजने के लगातार कोशिश कर रहा था।

एक आशा की किरण दिखाई दी। संकेत अपहरण कांड का एकमात्र संदिग्ध अमजद शेख तक पहुंचाने वाली जानकारी हाथ लगी।

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शनिवार 06/02/2000

संकेत अपहरण कांड का एकमात्र संदिग्ध अमजद शेख यानी केवल 22-23 साल का नौजवान। अमजद शेख, सूर्यकान्त के मिक्सर ड्राइवर ताजुद्दीन शेख की बेटी फातिमा का बॉयफ्रेंड था। अमजद ने किसी समय में सूर्यकान्त के किसी सबकॉन्ट्रैक्टर के साथ काम किया था। उसका चेहरा किसी को भी याद नहीं था। लेकिन इस समय यह अनजान अमजद बहुत जरूरी हो गया था। संकेत की सुरक्षित वापसी की आशा का केंद्रबिंदु था अमजद शेख. सूर्यकान्त और पुलिस दोनों ही अमजद को पाताल से भी खोज कर निकालने का संकल्प ले चुके थे। दोनों ने ही अपने-अपने आदमियों को इस काम में लगा दिया था। इस वजह से जरूरी जानकारी हाथ लगी थी।

सूर्यकान्त ने तुरंत अपनी जीप एमएच 11-5653 निकाली। रफीक़ कूदकर उसमें बैठ गया। जीप तेज गति से चलते हुए शिरवळ के पास शिंदेवाड़ी पहुंच गई। शिंदेवाड़ी के एक कॉन्ट्रैक्टर के पास अमजद शेख के काम करने की सूचना मिली थी। दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं। सबकॉन्ट्रैक्टर से मुलाकात करने पर पता चला कि वह उसके साथ काम तो करता था लेकिन कोडोली कोल्हापुर जा रहा हूं, ऐसा कहकर निकल गया। अमजद शेख की खोज करने के बाद भी कुछ पता नहीं चला।

साई विहार में वातावरण कुछ अलग ही था।

“अमजद शेख मिल तो जाएगा? संकेत उसी के पास तो होगा न? हे भगवान ...सुरक्षित रखना।”

...और फोन घनघनाया।

धड़कते दिल से प्रतिभा ने रिसीवर उठाया। उधर उसकी बहन अमिता थी। कुछ औपचारिक बातचीत के बाद प्रतिभा, अमजद शेख के मिलने और संकेत के वापस आने की संभावना होने का उत्साह उससे छुपा नहीं पाई। यह खबर सुनकर अमिता बहुत खुश हो गई। अमिता ने तुरंत प्रिया को फोन लगाकर यह बात बता दी। प्रिया ने भी अमजद के मिल गया और संकेत वापस आएगा यह खुशखबर फोन करके प्रवीण भाऊ को बता दी। प्रतिभा, शेखर, अमिता, प्रिया, प्रवीण ये सभी भाई-बहन संकेत की खबर सुनकर खुश हो गए। इनमें से शेखर साई विहार में प्रतिभा और सूर्यकान्त के साथ रहता था और काम-धंधे में मदद करता था। अमजद के मिल जाने के बाद संकेत भी अवश्य मिल जाएगा, इस खबर से प्रतिभा के मायके वाले बहुत प्रसन्न थे।

सूर्यकान्त और रफीक़ ने कोल्हापुर होते हुए कोडोली की ओर जीप भगाई। कोडोली, कोल्हापुर के नजदीक एक छोटा-सा गांव होने के कारण अमजद शेख की बहन की ससुराल खोजने में अधिक वक्त नहीं लगा। उसकी बहन को अमजद के बारे में पूछताछ किए जाने से बहुत आश्चर्य हुआ। उससे मालूम हुआ कि अमजद काम के सिलसिले में दो दिन पहले गोवा गया है। सूर्यकान्त ने उससे झूठमूठ ही कहा कि उसे एक बड़े निर्माण काम के लिए अमजद जैसे अनुभवी कारीगर की आवश्यकता है। ऐसा बताकर उसने गोवा का पता हासिल कर लिया। सूर्यकान्त ने जीप का इंजन स्टार्ट किया।

धुआं उड़ाती चलने को तैयार जीप की ओर देखते हुए अमजद की बहन ने अपने शौहर को ताना मारा,

“आप तो मेरे भाई को निकम्मा कहते नहीं थकते, अब देखा वो निकम्मा कितने काम का है? उसे ढूंढ़ने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।”

शौहर की बोलती बंद।

जीप में सूर्यकान्त और रफीक़ गोआ जाने की बात कर रहे थे। बातचीत के अंत में दोनों इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके थे कि गोआ जैसी जगह पर इस तरह अकेले-दुकेले जाना ठीक नहीं है। साथ में किसी को ले जाना होगा और सावधान भी रहना होगा। अमजद अकेला नहीं होगा, उसके साथ बड़ी गैंग होने की संभावना हो सकती है। हम दोनों की सुरक्षा से ज्यादा संकेत को सुरक्षित रूप से घर लाना अधिक जरूरी है। तय हुआ कि सबसे पहले शिरवळ पहुंचा जाए।

एमएच 11-5653 शिरवळ की दिशा में दौड़ने लगी। रफीक़ को याद आया कि सुबह से किसी ने भी अन्न का एक दाना भी पेट में नहीं डाला है। सूर्यकान्त खाने-पीने के लिए जीप रोकेगा नहीं, यह भी उसे मालूम था। रफीक़ उल्टा गेम खेल गया। “मुझे खूब भूख और प्यास लग रही है। कमजोरी सी छा रही है।”

यह कहकर रफीक़ ने जीप रुकवाई। सूर्यकान्त जीप से उतरने लगा तो रफीक़ ने उसे रोक दिया और खुद चार वड़ा पाव और दो कप चाय लेकर आ गया। सूर्यकान्त से उससे उल्टा सवाल किया,

“सच बताना आपको भूख लगी थी?”

रफीक़ ने गंभीरता होने का नाटक करते हुए जवाब दिया,

“भाई साहब...भूख तो भूख होती है जी...आपकी क्या...मेरी क्या....फटाफट थोड़ा खा लीजिए। शिरवळ पास थोड़े ही है?”

सूर्यकान्त और रफीक़ की पेटपूजा कार्यक्रम के कारण तेज से भाग रही जीप को थोड़ा आराम मिल गया। जैसे ही जीप ने शिरवळ में प्रवेश किया, वहां के रहिवासियों ने नजरें उधर घुमाईं और कान खड़े कर लिए। लोगों के बीच उत्सुकता बढ़ गई। सूर्यकान्त और रफीक़ को अकेला घर लौटते देखकर सभी निराश हो गए। प्रतिभा को फिर से रोना आ गया। जो कुछ हुआ उसके बारे में सूर्यकान्त ने सबको समझा कर बताया। शामराव ने तुरंत सवाल किया,

“गोवा के लिए कब निकलोगे? ”

सूर्यकान्त ने कहा,“कल बहुत सुबह।”

सूर्यकान्त ने रफीक़ को धीरे से कुछ बताया और रफीक़ तुरंत शिरवळ पुलिस स्टेशन की ओर निकल गया।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह