Kurukshetra ki Pahli Subah - 30 books and stories free download online pdf in Hindi

कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 30

30: शब्दों का सर्जना लोक

भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "मैं चंद्रमा और सूर्य में प्रकाश हूं तथा संपूर्ण वेदों में ओंकार हूं। "

अर्जुन ने कहा, "आप स्वयं प्रकाश हैं प्रभु! अगर सूर्य सौरमंडल के आकाशीय पिंडों को प्रकाश प्रदान करता है तो सूर्य के भीतर जो प्रकाश का अक्षय, अनंत स्रोत है, वह आप ही हैं। ब्रह्मांड से पंचमहाभूत की उत्पत्ति आप सर्वशक्तिमान ईश्वर की चेतना का ही विस्तार है। " अर्जुन ओम के महत्व से परिचित हैं। गुरु आश्रम में गुरुदेव ने राजकुमारों को ओम के महत्व के बारे में जानकारी दी थी। अगर ब्रह्मांड की कोई प्रधान ध्वनि है तो वह ओम है। इस शब्द के माध्यम से न केवल हमारी आत्मा झंकृत और तृप्त हो सकती है बल्कि उस सर्वशक्तिमान ईश्वर तक इस ब्रह्मांड ध्वनि के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है। जब गुरुदेव ने ओम के उच्चारण की विधि से राजकुमारों को अवगत कराया था तो एकांत में बैठकर समवेत स्वर में ओम की साधना प्रारंभ करने के कुछ ही क्षण बाद अद्भुत आनंद छा जाता था। 

गुरुदेव ने कहा था, "ओम प्रथम ध्वनि है। इस ध्वनि को तुम अपने भीतर शांत बैठने पर स्वत: ही महसूस कर सकते हो। "

अर्जुन को द्रौपदी का स्मरण हो आया। एक दिन घने वन प्रदेश में द्रोपदी के साथ विचरण के समय ऐसा लगा था जैसे पूरी प्रकृति से अद्भुत तादात्म्य स्थापित हो गया हो। अर्जुन और द्रौपदी पैदल ही चलते हुए दूर तक निकल गए थे। दोनों कई जगहों पर आम, पीपल, बरगद, पलाश, चंदन, मधुक, कदंब, इमली, शमी और बेल के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए प्रकृति की शोभा पर मुग्ध हो रहे थे। अर्जुन को युद्ध कौशल के अभ्यास से अवकाश ही नहीं मिलता था कि वे इस तरह पेड़ - पौधों, वनस्पतियों को निहार सकें और उनके महत्व से परिचित हो सकें। द्रौपदी इन पेड़ों की प्रजातियों और विशेषताओं के बारे में अर्जुन को जानकारियां देते जाती थीं। 

द्रौपदी :यहां इतने सारे वृक्ष हैं कुमार और सभी उपयोगी हैं। 

अर्जुन: हां यह वनक्षेत्र है पांचाली। यहां ऐसे कई तरह के वृक्ष तो मिलेंगे ही। 

द्रौपदी: पर एक वृक्ष मुझे सबसे अधिक पसंद है। और वह है आपके नाम वाला वृक्ष। 

द्रौपदी अर्जुन वृक्ष की चर्चा कर रही थी…

अर्जुन: ऐसा क्यों द्रौपदी?

द्रौपदी: क्योंकि यह अपने नाम के आधार पर आपका स्मरण कराता है। और मेरे लिए तो जहां पांडव हैं, जहां धर्म है, जहां न्याय है, जहां आप हैं वहां मैं हूं। 

अर्जुन मुस्कुरा उठे। इस वन प्रांतर के पुष्पों, पौधों और वृक्षों में एक संगीत है…. वह प्रेम का संगीत है.. । वह मौन का संगीत है…. वह आत्मा का संगीत है….. वह ब्रह्मांड की ध्वनि है…..

अर्जुन जैसे चैतन्य हो उठे। सचमुच ब्रह्मांड में एक नाद है, एक ध्वनि है, वह ध्वनि प्रेम की ध्वनि है, आत्मा की ध्वनि है, वासुदेव ओंकार के माध्यम से उसी सर्वशक्तिमान ईश्वर की अभिव्यक्ति कर रहे हैं…  वे स्वयं ओंकार हैं। अ, उ, म से मिलकर ओम बनता है …. जैसे सारे वर्ण अक्षर शब्द वाक्य और वाणी सब कुछ इन्हीं से निकले हों…

श्री कृष्ण आगे कह रहे हैं, " मैं आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूं। "

अर्जुन विचार करने लगे, "सचमुच सृष्टि में (ओम) ध्वनि के रूप में शब्द उत्पन्न हुआ और इससे आकाश तत्व की उत्पत्ति हुई। यह नाद ब्रह्म है। यह ध्वनि तत्व आकाश के माध्यम से विस्तार प्राप्त करता गया और अन्य पंचमहाभूतों की उत्पत्ति होती हुई। केशव यहां कह रहे हैं कि मैं आकाश में शब्द हूं। यह तो सृष्टि का प्रारंभ समय था। हम शब्द को केवल सुनने के अर्थ में ले लेते हैं लेकिन यह इससे कहीं अधिक व्यापक, विस्तृत और संपूर्ण ब्रह्मांड को नाद के माध्यम से ब्रह्म से जोड़ने वाला है। … अद्भुत!"

वासुदेव श्री कृष्ण स्वयं को पुरुषों का पुरुषत्व निरूपित कर रहे हैं। अर्जुन ने इसे और विस्तृत अर्थ में लेते हुए सभी मानवों के भीतर पाई जाने वाली जिजीविषा और संघर्ष क्षमता से जोड़कर देखा। अर्जुन के हाथ पुनः प्रणाम मुद्रा में जुड़ गए। आखिर कहां नहीं हैं ईश्वर? वे सभी श्रेष्ठ, अनुकरणीय और आदर्श गुणों में हैं, जिनसे मानव का कल्याण होता है।