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जिंदगी

 

जिन्दगी

 

 

जेल के दरवाजे से बाहर निकल कर नरेन ने सुख की सांस ली । लगा फेफड़े में पहली बाहर ताजा हवा गई । इससे पहले तो सदियों से शायद वह सांस ले ही नहीं पा रहा था । इस जेल की घुटन भरी फिजा में कोई सांस ले भी कैसे सकता है ?  हर तरफ तरह तरह के अपराधी कैसी कैसी अजीब शक्लें लिए जेल में बंद थे ।  उन्हें देख देख वह तो यह भी भूल गया था कि कभी वह इस शहर का प्रतिष्ठित डॉक्टर नरेंद्र अग्रवाल हुआ करता था ।  सोचते हुए उसकी आँखों में आंसू आ गए । सामने से कार आ रही थी  । कार की खिड़की के भीतर से झांकती मीत और उसके साथ  महताब को देख कर उसने कमीज की आस्तीन से ही अपने आंसू पौंछ लिए ।

 मीत ने कार का दरवाजा खोला और उसे कार के भीतर बैठने का संकेत किया । महताब ने एक ओर सरक कर उसके बैठने की जगह बना दी । उसका मन किया , महताब को कस कर गले लगा ले पर महताब की आँखों में दीखते अपरिचय को देख उसने अपनी भावनाओं को काबू करने की एक असफल सी कोशिश की । मीत महताब को बता रही थी - मीट योर पापा महताब । महताब ने नमस्ते किया पर पास आने की कोई उत्सुकता नहीं दिखाई । नरेन ने मन को समझाया - कैसे पहचानेगा , जब वह घर से गया महताब सिर्फ ढाई साल का था । बिल्कुल छोटा सा , मासूम सी शरारतों से भरपूर । इन तीन साल में कितना बड़ा हो गया है और सयाना भी । 

उसने सीट से सिर टिका दिया । मीत भी आँखें सड़क पर टिकाये गाड़ी चलाने में व्यस्त थी । ऊपर से बेहद शांत दिख रही थी । उसके भीतर भी झंझावात चल रहे है , नरेन इसे अच्छी तरह समझ रहे थे ।

इन तीन सालों में दोनों ने क्या क्या नहीं झेला । नरेन को जेल से छुडाने और निर्दोष साबित करने में मीत ने जिस तरह दिन रात एक कर दिया .  वकील किये , साक्ष्य जुटाए उसी का परिणाम है कि आज नरेन खुली हवा में घूम पा रहा है वर्ना उसने तो पिछले दिनों यह मान लिया था कि अब जेल की चार दिवारी ही उसका नसीब है । पर मीत सावित्री बन उसे नरक के द्वार से मुक्त करा लाई है । वह नरक से साबुत सालिम निकल आया है , इस पर यकीन अब तक नहीं हो पा  रहा है । विश्वास करने के लिए उसने कार की विंडो खोल ली  । ताजा हवा के झोंके ने जब उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराई तो यकीन करना पड़ा । सचमुच वह इस आजादी का मजा ले सकता है पर वह जो तीन साल उसका पूरा का पूरा वजूद खा गए उनका क्या ? क्या वह सारा जीवन उस जिल्लत और अपमान को , उस घुटन और लांछन को भूल पायेगा जो उसके मत्थे बिला कसूर ही मढ़ दिया गया ।

उसने अपने सुनहरे अतीत को याद किया । क्या दिन थे वे जब वह अपनी एम बी बी एस पूरी कर फरीद कोट मेडिकल कालेज में इन्टर्नशिप कर रहा था । उसने सर्जरी में एक्सपरटाईज हासिल की थी । एक दिन थियेटर में ही उसे मीत मिली डाक्टर गुरमीत । वह मेडिसन में एम् डी कर रही थी । अभी अभी दाखिला लिया था . लम्बी सरल और कर्मठ मीत उसे पहली नजर में ही अच्छी लगी थी .उसके बाद तो वे अक्सर मिलते रहे थे और एम डी पूरी होते ही जब दोनों की पोस्टिंग सिविल होस्पिटल बठिंडा में हुई तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया .माँ पहले तो नहीं मानी पर मीत को देखने के बाद न भी नहीं कह स्की .सादगी से नरेन और मीत की शादी सम्पन्न हुई और मीत दुल्हन बन कर नरेन के घर आ गयी . मीत ने धीरे धीरे सारे घर को भी समझा और घर वालों को भी और सब की लाडली बन गयी .

पर माँ के दिल में एक फांस रह गयी थी अपनी मर्जी से बहु न ला पाने की इस इच्छा को उस समय पंख मिले जब वीरेन ने एक दिन आकर कहा - उसे अपने लिए डाक्टर नहीं कोई टीचर लडकी चाहिए .  टीचर के पास अपने घर और बच्चों के लिए ज्यादा समय होगा . माँ के तो जमीन पर पाँव ही नहीं पड़ते थे .वह तुरंत लडकी ढूँढने में लग गयी .जो भी रिश्तेदार मिलता उसी से माँ लडकी बताने की प्रार्थना करती . फिर लडकी देखना दिखाने  का सिलसिला चला . उसी क्रम  में मुरादाबाद वाले मौसाजी ने अपनी भान्जी की बात चलाई .लडकी ने अंग्रेजी में एम् ए . बी एड किया था और उसी  शहर के सरकारी स्कूल में अध्यापिका लगी थी . आनन फानन में मुरादाबाद जाने की तैयारियां शुरू हो गई . नियत दिन नरेन ,मीत ,महताब माँ के साथ वीरेन लडकी देखने गए लड़की ठीक ही लगी . मौसाजी और मौसी भी आये हुए थे . थोड़ी औपचारिक बातचीत के बाद अंजली के पिता ने पूछा था -बहनजी आपका बेटा तो डाक्टर है .कोई डिमांड …....?

माँ के साथ साथ नरेन ने भी हाथ जोड़ लिए थे - नहीं भाई साहब ! हमारे घर किसी चीज की कमी नहीं है .आप निश्चिन्त हो कर शादी की तैयारी करें . शगुन की रस्म उसी दिन हो गई थी .शादी दो महीने बाद तय हुई . और धूमधाम से शादी हो गयी .

अंजली हमारे घर दुल्हन बन कर  आ गई .   रिसेप्शन भी माँ की इच्छानुसार सम्पन्न हो गया .  पर अगले ही दिन विस्फोट हुआ .

 पहला यह कि अंजली यह शादी नहीं करना चाहती थी .

और दूसरा यह कि उसका किसी जान नामक लड़के से प्रेम सम्बन्ध था जिसे उसके घर वाले किसी भी कीमत पर स्वीकार करना चाहते थे .

 तीसरा यह कि यह शादी उसके मम्मी पापा ने अपनी आत्महत्या की धमकी दे कर जबरदस्ती करवा दी थी .

यह खबर नरेन के परिवार के लिए बहुत बड़ा झटका थी .कुछ देर के लिए तो सब सुन्न हो गए फिर माँ ने ही पहल की थी -देखो अंजली ! या तो पहले हिम्मत दिखाती .जो तुम नहीं दिखा पाई .अब जो पीछे था उसे भूल जाओ . नई  जिन्दगी शुरू करो . अंजली ने अपने आप को एडजस्ट करने की कोशिश की . सब ने सोचा सब सामान्य है .और फिर एक दिन यह होनी बीत गई .

  उस दिन नरेन की इमरजेंसी में रात की ड्यूटी थी . मीत को नौ बजे दिन से हॉस्पिटल जाना था . .नरेन रात की डयूटी करके सात बजे सुबह वापिस आया था .रात भर की एमरजैसी देखते बुरी तरह से थका हुआ था साढ़े आठ बजते  बजते गुरमीत और वीरेन अपनी ड्यूटी चले गए . माँ को किसी पड़ोसी के घर सत्य नारायण की कथा में जाना था सो वह भी चली गयी तो नरेन सोने अपने कमरे में चला गया .

अचानक ग्यारह बजे उसे घर के अंदर से चीख सुनाई दी . पहले उसे लगा कि शायद वह नींद में कोई सपना देख रहा है .पर चीख तेज हुई तो वह हडबडा कर उठा . चीखों की आवाजे ऊपर की मंजिल से आ रही थी .  इस समय घर में कौन हो सकता है -  सोचते हुए वह लगभग भागता हुआ सीढियाँ चढ़ा .  वहां का दृश्य बेहद भयानक था .अंजली आग की लपटों में घिरी चीख रही थी .बाहर की हवा ने जलते शोलों को और भड़का दिया था . एक पल को तो नरेन को समझ ही आया यह सब क्या है .फिर तुरंत कमरे की और भागा.  आग कमरे में लगाईं गई थी तो वहां भी आग जल रही थी . उसने एक कम्बल उस आग पर डाला और दूसरा अंजली पर . आग बुझाते-बुझाते  उसके अपने हाथ और कंधा भी जल गए थे पर वह जैसे तैसे अंजली को नीचे उतार कर लाया .कार में

डाल खुद ही हस्पताल ले गया . अंजली पिछ्तर  प्रतिशत जल गयी थी .  अस्पताल में तुरंत इलाज शुरू  कर दिया गया . सभी सदस्य खबर पाते ही पहुँच भी गए . सब स्तब्ध थे अंजली ने ऐसा क्यों किया वीरेन तो गुमसुम हो गया था खबर पाकर अंजली के घरवाले भी पहुंचे पर उन्होंने अंजली की ससुराल वालों पर ही अंजली को जलाने का इल्जाम लगा डाला .अंजली पूरा एक दिन बेहोश रही पर वह इतनी बुरी तरह से जल गयी थी कि अगले दिन सुबह ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए . पुलिस-  केस बना .  बाकी सब तो घर में नहीं थे .अकेला नरेन उस समय घर पर था इसलिए सारा इल्जाम उसी के सर आया .कोई यह मानने को तैयार ही नहीं था कि थका होने के कारण वह उस समय सोया हुआ था और उसे तो यह भी पता नहीं था की आज अंजली घर पर है . बेकसूर होते हुए भी उसे कसूरवार ठहरा दिया गया था . अंजली के घरवालों ने अपनी ऍफ़ आई आर में लिखवाया था - अंजली की शादी को अभी सिर्फ तीन महीने ही हुए है .इन तीन महीनो में उनकी बेटी को दहेज के लिए परेशान किया जा रहा था .उनकी बेटी की हत्या हुई है .वकीलों ने अलग अलग धाराए  लगाई थी जिसमे इरादतन हत्या भी शामिल थी . नरेन को नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया .वकीलों ने केस बनाया . लेकिन दहेज हत्या की धारा लगने से जमानत भी नहीं हुई .उसके बाद की कहानी तो संत्रास और मानसिक यातना की कहानी है . जेल में उसका स्वागत हत्यारा कह कर हुआ था .  बिना जुर्म साबित हुए उसे अपराधी घोषित कर दिया गया था . इस दौरान उसे अंजली पर कई बार गुस्सा आता -  बुजदिल कहीं की .मरने से अच्छा   तलाक ले कर अपने उस तथा कथित प्रेमी के पास ही क्यों नहीं चली गयी .  इस तरह से मर के क्या मिला उसे .कई लोगों की परेशानी का सबब ही बनी .

अचानक गाडी रुकने की आवाज ने उसकी सोच पर अंकुश लगाया .  गाडी घर के सामने पहुँच गई थी . उसका अपना घर जहाँ उसकी खुशहाल जिन्दगी थी .मीत  और महताब नीचे उसके बाहर आने का इन्तजार कर रहे थे . मीत ने उसे पुकारा . नरेन ने कार का दरवाजा खोला .बाहर कदम निकाला .जैकी उसकी झलक पाते ही लपक कर उसके पास आया .सूंघ और उससे लिपट  गया .  उसे जैकी पर बहुत प्यार आया .झुक कर नरेन् ने उसे अपनी बाहों में भर लिया . घर के दरवाजे को बड़ी हसरत से देखा .वहां माँ और वीरेन  आरती की थाली लिए उसका इन्तजार कर रहे थे . नरेन् का सारा अव्स्साद मानो हवा हो गया .पुलक से भर वह दरवाजे की ओर लपका .मीत  ने पर्स सम्भाला .उसमे से नरेन् के ऑर्डर निकाले और सधे कदमो से चलती हुई नरेन् की बगल में आ कर खड़ी हो गई .  आरती का दीप अपनी पूरी उर्जा के साथ मुस्कुरा रहा था  .  उसके उजाले में दीप की बिन्दी झिलमिलाई . नरेन और मीत की आँखे मिली और उनमे प्रेम और विशवास जगमगा उठा .