Wo Billy - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

वो बिल्ली - 6

(भाग 6)

रात के क़रीब दो बजे रघुनाथ की नींद खुलती है। वह जब अपने बगल में शोभना को नदारद पाते हैं, तो झटके से उठकर बैठ जाते है। आँखों में रही-सही नींद भी अब पूरी तरह से गायब हो गई थीं।

रघुनाथ मन ही मन - " इतनी रात को शोभना कहाँ गई ? हो सकता है वॉशरूम में हो। यह विचारकर रघुनाथ ने साइड टेबल से मोबाइल फोन उठाया और टाइम देखकर फिर से टेबल पर रख दिया।

क़रीब -बीस-पच्चीस मिनट बाद यही प्रक्रिया रघुनाथ ने दोहराई और जब समय देखा तो मन में शंका हुई- " अब तक तो शोभना को वॉशरूम से आ जाना चाहिए था।"

रघुनाथ बिस्तर छोड़कर कमरे से बाहर निकलें। बाहर अजीब सा माहौल था। घर का हर कोना भयानक लग रहा था। हवा से हिलते हुए दरवाज़े और खिड़कियों पर लगें पर्दे भी भूत की तरह लग रहे थें। किचन का दरवाजा चर्र की आवाज़ करता हुआ आगें आता फिर पीछे चला जाता। सन्नाटा पसरा हुआ था फ़िर भी लग रहा था जैसे कोई आपस में बतिया रहा हो।

पूरे घर की बत्तियां बुझी हुई थीं रघुनाथ ने बत्ती जलाने के लिए जैसे ही स्विच बोर्ड के स्विच पर अपनी उंगली रखी तो करंट का हल्का सा झटका लगा। रघुनाथ ने फौरन अपना हाथ पीछे कर लिया। करंट अंगुली से होता हुआ कोहनी तक अब भी महसूस हो रहा था। हाथ में झुनझुनी सी आ गई।

रघुनाथ हाथ को संभाले हुए वही खड़े रहे, तभी बल्ब झपकने लगा। लाइट बन्द-चालू होंने लगीं। रघुनाथ ने स्विच बोर्ड को देखा तो सारे स्विच बन्द थे। थोड़ी देर बाद हॉल में लगे सभी बल्ब झपकने लगें और फिर एक साथ बन्द हो गए। अब घुप्प अंधेरा हो गया। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।

रघुनाथ को लगा जैसे वहाँ कोई और भी मौजूद हैं। उसने आवाज़ लगाई - " शोभना, तुम हो क्या ?"

जब कोई भी उत्तर नहीं मिला तो रघुनाथ ने इधर-उधर नजरें घुमाई। छत की सीढ़ी पर दो चमकीली गोल आँखे एकटक मानो रघुनाथ को ही घूर रहीं थीं। यह दृश्य देखकर रघुनाथ के रोंगटे खड़े हो गए। वह कुछ सोचते-समझते इसके पहले ही अचानक हॉल की लाइट जल गई। सीढ़ी पर कोई नहीं था।

इन हैरतअंगेज घटनाओं को देखने के बाद रघुनाथ को शोभना कि बातों का स्मरण हो आया। मन में सारी बात किसी गाने की तरह बजने लगीं।

"रघु, यहाँ कोई है ! वो बिल्ली ही औरत बनकर यहाँ घूमती है। यह उसी का घर है। वह ही यहाँ की मालकिन है।"

जहन में सारी बातें घूम ही रहीं थीं कि तेज़ गुनगुनाने की आवाज़ ने रघुनाथ का ध्यान अपनी और आकर्षित किया।

"पहले तो होश छीन लिये ज़ुल्म-ओ-सितम से....

दीवानगी का फिर हमें इल्ज़ाम दिया है उम्र भर का ग़म हमें ईनाम दिया......"

आवाज़ छत से आ रही जो किसी महिला की थीं। रघुनाथ इतनी घटनाओं के बाद भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि घर में कोई भूत बाधा है। उनके कदम छत की ओर ले जाने वाली सीढ़ी की तरफ़ बढ़ चले...

 

शेष अगलें भाग में....