Amarkantk Yaatra Diary books and stories free download online pdf in Hindi

अमर कंटक यात्रा डायरी


अपनी अमर नाथ यात्रा का आज दूसरा दिन(15 नवंबर 2023) है। जैसा बता चुका हूं कि अमरकंटक विंध्य पर्वतमाला व सतपुड़ा की सुरम्य पर्वतमाला के मिलनक्षेत्र पर मैकल पर्वतमाला में स्थित है। नर्मदा नदी, नदी और जोहिला नदी (सोन की उपनदी) का उद्गम यहीं होता है। शिव पुत्री नर्मदा का जन्म यहीं हुआ था।आज सुबह नाश्ते के बाद हम यहां के शेष दर्शनीय स्थलों का अवलोकन कर रहे हैँ।
नर्मदाकुंड और उस परिसर के अनेक मंदिर
इस समय हम सबसे पहले नर्मदाकुंड आ चुके हैँ जहाँ नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल है।हमदेख रहे हैँ कि इसके चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्‍नपूर्णा मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्‍वर महादेव मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्‍वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्‍ण मंदिर और ग्‍यारह रूद्र मंदिर आदि दिखाई दे रहे हैँ।
कहा जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे। माना जाता है कि नर्मदा उदगम की उत्‍पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर कहा जाता है।
माना जाता है कि पहले इस स्थान पर बांस का झुण्ड था जहां से माँ नर्मदा निकलती थीं। बाद में बाद में रेवा नायक द्वारा इस स्थान पर कुंड और मंदिर का निर्माण करवाया गया | स्नान कुंड के पास ही रेवा नायक की प्रतिमा है |
रेवा नायक के कई सदी पश्चात् नागपुर के भोंसले राजाओं ने उद्गम कुंड और कपड़े धोने के कुंड का निर्माण करवाया था | इसके बाद 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने माँ नर्मदा उद्गम कुंड ,स्नान कुंड और परिसर के चारों ओर घेराव और जीर्णोद्धार करवाया |
लोग बता रहे हैँ कि धुनी पानी नामक गर्म पानी का झरना भी यहीं कहीं है। कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से संपन्‍न है और इसमें स्‍नान करने शरीर के असाध्‍य रोग ठीक हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग इस झरने के पवित्र पानी में स्‍नान करने के उद्देश्‍य से आते हैं, ताकि उनके तमाम दुखों का निवारण हो सके।
और अब दूधधारा। बताइये भला इस जगह का पानी मानो दूध है।पहाड़ी उतार चढ़ाव पर पैदल चलकर हम तो उस स्थान तक अपने बुजुर्ग होने के नाते जाने से रहे लेकिन लोग का कहना है कि दूधिया होने के कारण अमरकंटक में दूधधारा नाम का यह झरना काफी लो‍कप्रिय है। ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है इसीलिए इसे दूधधारा के नाम से जाना जाता है।
हम पहुंचे अब कपिलधारा।
नर्मदा नदी पर बनने वाला पहला प्रपात है, जो उद्गम स्थल के 8 किमी की दूरी पर स्थित है। लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरने वाला कपिलधारा झरना बहुत सुंदर और लोकप्रिय है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मुनि ने यहाँ वर्षो तक तपस्या की थी। घने जंगलों, पर्वतों और प्रकृति के सुंदर नजारे यहां से देखे जा सकते हैं।
माना जाता है कि कपिल मुनि ने सांख्‍य दर्शन की रचना इसी स्‍थान पर की थी। कपिलधारा के निकट की कपिलेश्‍वर मंदिर भी बना हुआ है। कपिलधारा के आसपास अनेक गुफाएं है जहां साधु संत ध्‍यानमग्‍न मुद्रा में देखे जा सकते हैं।लोग नीचे गहराइयों में उतर कर जल क्रीड़ा और स्नान भी कर रहे है.। यह मसूरी के कैम्पटी फाल सरीखा मुझे लग रहा है। जहां जहाँ पहुंच हो सकी, जुगाड़ लग सका हमने भी माँ नर्मदे का चरण स्पर्श करके आप सभी पाठकों, शुभचिंतकों के लिए आशीर्वाद लिया।
और अब ग्यारहवीं सदी कल्चुरी काल के मंदिर परिसर में हम आ चुके हैं।"टिकट प्लीज..."मैं रूपये निकलता हूं तो पुरातत्त्व विभाग का कर्मी बता रहा है कि ऑन लाइन टिकट निकालिए।
हुई मुसीबत..
खैर किसी तरह पेटीएम किया गया।
अब हम अंदर आ चुके हैं।नर्मदाकुंड के दक्षिण में कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पातालेश्‍वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।यहां अनेक मंदिरों का समूह है, एक पुराना कुआँ, एक पुराना जलाशय है। मेरी सहयात्री (Better half )की अनिच्छा फोटो सेशन में रहने के कारण मैं कई बार फोटोग्राफिक उछल कूद नहीँ कर पाता हूं। फिर भी आप सभी के लिए कुछ फोटो तो खिंची ही जा चुकी है।
यहां बताया गया कि सोनमुड़ा जगह पर सोन नदी का उद्गम स्‍थल है।इसलिए हमलोग वहाँ भी हो आए। यहां से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्‍य देखे जा सकते हैं। सोनमुड़ा नर्मदाकुंड से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर मैकाल पहाडियों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन नदी कहा जाता है।
मां की बगिया तो हम कल ही हो आए।
मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्‍थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्‍पों को चुनती दी थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम, केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किलोमीटर की दूरी पर है।कल ही हमलोग श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर भी हो आए थे जो अमरकंटक से 8 किलोमीटर दूर शहडोल रोड पर स्थित है। यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्‍पत्ति होती है। विन्‍ध्‍य वैभव के अनुसार भगवान शिव ने यहां स्‍वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्‍थापित किया था और मैकाल की पह‍ाडि़यों में असंख्‍य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। पुराणों में इस स्‍थान को महा रूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। मंदिर के निकट की ओर सनसेट प्‍वाइंट है।
कल ही हम लोगो ने श्री यंत्र मंदिर भी देखा था जो है तो बहुत सुंदर लेकिन रख रखाव का अभाव झेल रहा है।
पाठकों, इस दो दिवसीय अमर कंटकीय यात्रा की पूर्णता से मैं अमरत्व तो पा सकने का दावा नहीँ कर सकता हूं लेकिन इतना अवश्य है कि इस कंटकीय जीवन की चुनौतियों का साहस से सामना कर सकूँगा इसका आशीर्वाद माँ नर्मदे से मिल गया है। अब सत्तर वर्ष का हो चुका आगे जितने दिन शेष हैँ हँसते गाते बिता लूं यही कामना है। आपका आशीर्वाद आपकी शुभकामनायें ही मेरा संबल हैँ.............
कुल मिलाकर अमर कंटक की अपनी यह दो दिवसीय यात्रा रोमांचक रही है।