NAMN SHAT SHAT NAMAN books and stories free download online pdf in Hindi

नमन शत शत नमन

nआज हम जिस मुकाम पर पहुँच चुके हैं उस मुकाम तक पहुंचने में जाने अनजाने कितने संगी साथियों का"ज्ञात-अज्ञात "योगदान रहा है ।"ज्ञात-अज्ञात "विशेषण मैनें जान बूझकर इसलिए जोड़ा है क्योंकि ये लोग आधुनिक सूचना क्रांति के बहुत पहले या अत्यंत शुरुआती दौर के कर्मयोगी रहे हैं और उस दौर में इनका काम ही इन्हें पहचान दिलाती थी ।ख़ास तौर से आकाशवाणी या ऐसी ही मीडिया के कर्मयोगी जिन्हें तैरती हवाओं में,ध्वनितरंगों के माध्यम से अपना जादू बिखेरना होता था,अपना चित्र बनाना होता था ।याद कीजिए अमीन सायनी को, देवकीनंदन पांडेय को, लतिका रत्नम को, इन्दु वाही को....!इन ढेर सारी जानी मानी हस्तियों में से कई अब हमारे बीच नहीं हैं,कई होते हुए भी नहीं हैं(क्योंकि उन पर मीडिया का फोकस यदा कदा भी नहीं होता) और कई गुमनाम जिन्दगी जी रहे हैं ।हिन्दू संस्कृति में दिवंगत पुरखे- पुरनियों को तो आदर- सम्मान देने के लिए बाकायदा साल में एक पखवाड़े की व्यवस्था की गई है (पितृ- पक्ष)किन्तु जीवित कर्मयोगियों को मान सम्मान दिलाने के लिए कोई विधिवत प्रावधान निर्धारित नहीं किया गया है ।ऐसे लोग परिवार, अपने ही कार्यालय या समाज के रहमोकरम पर जीवन के शेष दिन काट रहे हैं ।मेरा मानना है कि कत्तई यह सब सायास नहीं होता चला आ रहा है लेकिन अगर यह अनायास भी हो रहा है तो यह प्राकृतिक न्याय के विपरीत है और इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझकर एक नई सोच सामने आनी चाहिए ।
आज बात हो रही है उन शख्सियतों की हमें जिन पर नाज़ है ।
आकाशवाणी की सेवा में लगभग 37साल की दीर्घ अवधि बिताने के दौरान मुझे भी इन अद्वितीय कर्मयोगियों का साथ मिला ।जितने लोग मिले ,सीखने-समझने के उतने आयाम खुले ।कुछ ने सिद्धांत बताए, कुछ ने प्रयोग और कुछ ने हाथ पकड़कर राह भी दिखाई ।
चाहे वह उदघोषक कक्ष का कंसोल हो, डबिंग- एडिटिंग रूम की मशीनें,आर० ओ० आर०में स्क्रिप्ट रीडिंग हो, कलाकारों से जन सम्पर्क हो, ओ० बी० रिकार्डिंग के लिए मेलट्रान सरीखी मशीन हो ,टेप-स्पूल हों,वी० आई० पी० कवरेज हो, एनाउंसमेंट या डायलॉग डिलेवरी हो.....!

सबसे पहले जिक्र स्व० इन्द्र कृष्ण गुर्टू का ।1974-75में जब आकाशवाणी गोरखपुर की स्थापना हुई तो वहां के वे पहले निदेशक थे ।मूलतः ड्रामा और संगीत के विशेषज्ञ ।उनके दौर में ड्रामा या संगीत के आडिशन में सफल होना बेहद चुनौतीपूर्ण हुआ करता था ।सौभाग्यशाली हूं एक ड्रामा कलाकार के रूप में मैने भी उनका सानिध्य पाया ।उधर 1977 के दौर के आकाशवाणी इलाहाबाद में बी० एस० बहल केन्द्र निदेशक के कार्यकाल में 30अप्रैल को जब मैने प्रसारण अधिशासी के रूप में ज्वाइन किया तो विनोद रस्तोगी, हीरा चड्ढा,दुर्गा मेहरोत्रा, राजा जुत्शी, नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, उमेश दीक्षित, विपिन शर्मा, आशा ब्राउन,केशव चन्द्र वर्मा,लता दीक्षित, पी० डी० गुप्ता, डा० एस० के० सिन्हा, नरेन्द्र शुक्ल,राजहंस जी, निखिल जोशी ,कैलाश गौतम,ऊषा मरवाहा और उनके पति जितेन्द्र मरवाहा, मोघे साहब, कृपाशंकर तिवारी, नरेश मिश्र, बजरंगी तिवारी, अरिदमन शर्मा, कुसुम जुत्शी, राम प्रकाश जी, फाखरी साहब,मधुकर गंगाधर ,शिवमंगल सिंह,महेन्द्र मोदी जी आदि का सानिध्य मिला ....
हर शख्स अलग अलग मूड और विधाओं का विशेषज्ञ ।सबने मुझ नवांगतुक को दुलार दिया था और सबसे सीखने को बहुत कुछ मिला ।सच मानिए मुझे लगा ही नहीं कि मैं नौकरी कर रहा था ।मुझे हमेशा यही एहसास होता रहा कि मैं अपने सपनों को बहुआयामी रंग रूप देता चला जा रहा हूँ ।
वयोवृद्ध प्रोडयूसर नर्मदेश्वर उपाध्याय पहली बार मुझे इलाहाबाद से अमेठी एक वी० आई० पी० कवरेज में साथ ले गये तो रिकार्डिंग टेप मैनें अमूल्य धरोहर की तरह तब तक अपने से चिपका कर रखे रहा जब तक पंडित जी ने रेडियो रिपोर्ट दिल्ली फीड नहीं कर दी और वह ब्राडकास्ट नहीं हो गया ।उधर प्रोडयूसर ग्रामीण प्रसारण वर्मा जी ने ऐसे अवसरों पर जब नियमित कम्पियर्स उपलब्ध नहीं हो पाते ,अपने साथ गोबिन्दी भइया बनाकर बैठे ठाले लाइव कम्पियरिंग के गुण सिखा डाले ।

गोरखपुर में डा० उदयभान मिश्र,मुनीर आलम, सुशील नारायण दुबे, किश्वर आरा, नित्यानंद मैठाणी, प्रेम नारायण, काज़ी अनीस उल हक़,सोमनाथ सान्याल,बी० बी० शर्मा, रामजी त्रिपाठी, आर० एस० शुक्ल, हमेशा सायकिल से आने वाले सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर नागराजा साहब,एस० एम० प्रधान जी अपने सहकर्मियों हसन अब्बास रिज़वी, शरत चतुर्वेदी, के० सी० गुप्त, एन० भद्र, उमाशंकर गुप्त, रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी भाई, डा० सतीश ग्रोवर(जिन्होंने उदघोषक के रूप में नौकरी शुरू की और उप महानिदेशक पद से रिटायर हुए), उदिता, मोहसिना और सर्वेश दुबे, अनिल मेहरोत्रा, नवनीत मिश्र, रमेश चन्द्र शुक्ल,उस्ताद राहत अली, केवल कुमार....उस कालखंड को याद करते हुए मैं आज भी रोमाचिंत हो उठता हूं ।इसी तरह रामपुर में जब मैं कार्यक्रम अधिकारी पद पर ज्वाइन करने पहुँचा तो डा० जी० आर० सैय्यद, श्याम मोहन, मोहन सिंह ,मंदीप कौर सहित अनेक लोगों ने मेरा सहयोग किया ।लखनऊ की पोस्टिंग के दिन तो मेरे स्वर्णिम काल रहे ।वरिष्ठों में सर्वश्री रामधनी राम, मुक्ता शुक्ला ,वी० के० बैनर्जी, गुलाब चन्द, सुशील राबर्ट बैनर्जी, पी० आर० चौहान, , करुणा श्रीवास्तव, अलका पाठक ,विनोद चैटर्जी दादा ,सहकर्मियों में डा० करुणा शंकर दुबे ,प्रतुल जोशी, डा० महेन्द्र पाठक, डा० सुशील कुमार राय, रश्मि चौधरी, ठाकुर प्रसाद मिश्र, युगांतर सिंदूर का स्नेह मिलता रहा ।

जिन दिनों लखनऊ की जीवन रेखा गोमती की शुचिता की चर्चा तक नहीं होती थी मैने "गोमती तुम बहती रहना"नाम से 13एपिसोड के कालजयी कार्यक्रम बनाकर जनता और शासन दोनों का ध्यान खींचा था और "कुछ नक्श तेरी याद के"माध्यम से मलिका ए गज़ल बेगम अख़्तर की पूरी संगीत यात्रा को जीवंतता देने की कोशिश की थी ।इसीलिए पाठकों मैं सच कहता हूँ कि आकाशवाणी इलाहाबाद, रामपुर, गोरखपुर और लखनऊ से जुड़ी ये ढेरों स्मृतियाँ मेरी थाती हैं ।किन किन को याद किया जाय, उनकी खू़बियों का बखान किन किन शब्दों में किया जाय... मैं तय नहीं कर पाता हूँ ।पुनर्जन्म में विश्वास रखते हुए भरपूर उम्मीद करता हूँ कि इस जन्म में कर्मणा जिस सूचना और प्रसारण मंत्रालय और आगे चलकर अब प्रसार भारती परिवार से मैं अब तक जुड़ा रहा हूँ अगले जन्म में भी उन्हीँ का साथ पाऊँ और नये शरीर की नई कल्पनाओं को साकार करता रह सकूँ ।
सभी की स्मृतियों को नमन करता हूँ।शत शत नमन !

New Releases 17.11.2023

November 17, 2023, 1:53 pm

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November 17, 2023, 10:00 am

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