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अप्रत्याशित - अनोखी प्रेमकथा

छोटा सा कमरा
अलमारी कानून की कतबो से भरी।रैक में फाइल का अंबार।मेज पर भी फ़ाइल रखी है।युवती बैठी हुई फाइल पढ़ने में मसगुल है।एक युवक आता है।वह पहले दरवाजे के पास खड़ा रहता है।कुछ देर खड़ा रहकर सोचता है,क्या दस्तक दू।शायद ध्यान भंग हो जाये।
वह दस्तक नही देता और अंदर जाकर खड़ा हो गया।युवती ने अपनी नजरे फ़ाइल पर जमा रखी थीं।उसने फ़ाइल पढ़कर ज्यो ही नजरे उठायी उसकी नजर युवक पर पड़ी और वह चोंकते हुए बोली,"अरे।अंदर कब आये?"
"आप फ़ाइल पढ़ने में व्यस्त थी"युवक बोला,"क्या मैं बैठ सकता हूँ।"
"जरूर,"वह बोली,"लेकिन एक बात मै तुम्हे पहले ही बता देती हूँ।"
"क्या?"युवक बैठते हुए बोला,"बताइए क्या बात बतानी है।"
"मैं कोई केस नही लड़ूंगी।"
"आप वकील है?"युवक उसकी बात सुनकर बोला था।
"हां।मै वकील हूँ"
"वकील का क्या काम है?"उसकी स्वीकृति पर युवक बोला था।"
"सब ही जानते है वकील का क्या काम है।वकील का काम है मुकदमे लड़ना और जो उसके पास सलाह लेने के लिए आये उसे उचित सलाह देना।"
"वकील होकर आप कह रही है कि मैं कोई मुकदमा नही लड़ूंगी।"
",मैं वकील हूँ और मै लोगो के मुकदमे लड़ती हूँ।"
"लेकिन अभी तो आपने मुझसे मना किया कि मै कोई मुकदमा नही लड़ूंगी।"
"हां।मैने मुकदमा लड़ने से मना किया था,"वह बोली,"इसकी वजह है।"
"ऐसी क्या वजह है जो आपने मना किया था?"
"बात यह है कि मेरे पास अभी इतने केस है कि मेरे पास नए मुकदमे के लिए समय नही है।मैं उन वकीलों में से नही हूँ जो पैसों के लालच में मुकदमे ले तो लेते है लेकिन केस को ईमानदारी से नही लड़ते,"वह बोली,"मै जो भी केस लेती हूँ।उस पर पूरी मेहनत करती हूँ।"
"एक अच्छे नामी वकील के यही गुण है,"युवक बोला,"इसी गुण से शोहरत मिलती है।"
"ऊपरवाले की दुआ है,"वह बोली,"हां अलबत्ता अगर सलाह चाहो तो मै तुम्हे जरूर दे सकती हूँ।"
"मै न तो कोई केस के लिए आपके पास आया हूँ और न ही सलाह लेने के लिए आया हूँ।"
"फिर वकील के पास आने की क्या जरूरत पड़ गयी।"वह युवक की बात सुनकर आश्चर्य से बोली,"बताओ किस मकसद से मेरे पास आये हो।"
"मैं तुम्हारे पास निवेदन करने के लिए आया हूँ।"
"निवेदन,"वह आश्चर्य स बोली,"कैसा निवेदन?"
"प्रणय।"
"प्रणय।मतलब?"उसकी बात का आशय उसे समझ मे नही आया था
"प्रणय मतलब,"वह बोला,"लव,प्यार,मोहब्बत।"
"कहना क्या चाहते हो?"
"साफ शब्दों में कहूं तो मै आपको प्रपोज करने के लिए आया हूँ।"
"क्या?"वह उसकी बात सुनकर आश्चर्य से बोली थी।"
"रुबिका जी मैं आपसे शादी यानी निकाह करना चाहता हूँ।आपको हमसफ़र बनाना चाहता हूँ।"
"मैं तलाकशुदा हूँ।"
"मूझे मालूम है।"
"मालूम है।कैसे?"
"रुबिका जी आप नामी वकील ही नही है।एक सामाजिक कार्यकर्ता भी है"वह बोला,"आप टी वी चेनलो पर बहस में भी जाती रहती है।मैं आपकी बोल्डनेस के और निडरता ,बेबाक बोल से बहुत प्रभावित हूँ।"
"तुम जवान हो,सुंदर हो तुम्हे अपना बनाने वाली अनेक कुंवारी लडकिया मिल जाएगी।फिर तुम मुझ तलाकशुदा से क्यो निकाह करना चाहते हो।"
",मुझे आपसे प्यार हो गया है और आप कई बार कह चुकी है,अगर मुझे दुबारा निकाह का मौका मिला तो एक हिन्दू से करूंगी।मेरा नाम नगेन्द्र है,"अपना परिचय देते हुए वह बोला,"मैं कभी शिकायत का मौका नही दूंगा।"
"मम्मी--वे बात कर रहे थे तभी एक बच्चा रुबिका के पास आकर खड़ा हो गया।
"यह मेरा बेटा है,"रुबिका बोली,"अगर मैने तुमसे निकाह कर लिया तो मेरे बेटे का क्या होगा?"
"अभी यह तुम्हारा बेटा है,"नगेन्द्र बोला,"हमारा निकाह होने के बाद यह हम दोनों का बेटा होगा।"
और रुबिका,नगेन्द्र से निकाह के लिए तैयार हो गयी थी
"