Kalyug Ke Shravan Kumar - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

कलयुग के श्रवण कुमार - 1 - जीवन भर की बचत

अभी अभी बेटे से फोन पर बात हुई थी। फोन कट चुका था।
लगभग 40 वर्ष की उषा और ऐसे ही 42-43 रही होगी माधव की उम्र। बेटे से बात कर बहुत प्रसन्न थे, होठों की मुस्कान स्पष्ट कह रही थी कि कोई खुश खबरी मिली थी उन्हें।

जिससे बड़े उत्साहित और प्रसन्नचित्त हुए थे दोनों पति पत्नी।
आखिर हो भी क्यों ना, उनके इकलौते सुपुत्र शगुन को एक प्रसिद्ध आई टी कंपनी मे असिस्टेंट मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई थी।

जॉइनिंग लेटर आ चुका था। पंद्रह दिनों के अंदर ही ग्रेटर नोयडा के सेक्टर तीन स्थित कंपनी के ऑफिस मे जॉइन करना था और पदभार ग्रहण करना था।
शगुन बहुत खुश था।


अभी वह एक स्थानीय ऑनलाइन विज्ञापन प्रदाता कंपनी मे बतौर सोफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहा था। सैलरी भी कम ही थी।

आज की महंगाई मे तो मध्यमवर्गीय परिवारों की तो बस दाल रोटी चल जाए तो बड़ी बात है। फिर 15 हजार की नौकरी मे क्या हो सकता था।

जैसे तैसे करके चार कमरों का मकान बना लिए थे, माधव। 10 बीघे की खेती थी, सो इतना पैदा हो जाता था कि अनाज तिलहन मोल नहीं लेना पड़ता था।

मिट्टी के चूल्हे पर और सरकार द्वारा मिले उज्ज्वला के गैस सिलेंडर पर खाना बन जाता था।

कहने को तो सरकार का दिया था, सब्सिडी आने के वादे भी थे, वो भी सीधे बैंक खाते मे।
पर सच तो ये था कि यह भी एक समस्या ही थी गरीबी मे आटा गीला जैसी।

गैस के दाम थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, एकदम इस तरह सरपत दौड़े जा रहे थे, जैसे किसी ने लंगड़े घोड़े को ऐंड़ लगा थी हो।


गरीब आदमी की जिंदगी तो छलनी जैसी ही होती है, सब पर बस चोकर ही बचता है। नंगा नहाएगा क्या निचोड़ेगा क्या ?
एक सयानी होती बिटिया.... मधु।

दहेज दानव का सुरसा जैसे बढ़ता मुँह। सच मे बेटी होती तो लक्ष्मीरूपा है। किंतु समाज की की लालची सोच और आए दिन दुराचार की घटनाएँ, एक पिता के लिए आज बेटी अभिशाप से कम नहीं।


समाज मे चरित्र पतन और इंसानियत तो गंगू तेली के यहां तेल लेने चली गई है। ऊपर से तुर्रा ये कि सभ्य शिक्षित समाज। भई वाह रे मनुष्यता।


'क्या हुआ पापा आज बड़े खुश हो आप दोनों,'। रसोई से निकलती चाय लेकर आती मधु ने पूछा।
हाँ बिटिया, खुशी की बात ही है... अच्छा हुआ चाय ले कर आ गई मैं बस बुलाने ही वाला था,'।


माधव ने मुस्कुराते हुए इकलौती बेटी से कहा।
' तनी हमको भी तो बताइए कि आखिर ऐसा का हो गया।'
'बिटिया तुम्हारे भईया की नौकरी बहुत बड़ी कंपनी मे लग गई है, कह रहा था कि बिट्टू की शादी बड़े धूमधाम से करूंगा पापा चिंता ना करियो।'


लजा कर थोड़ा झेंप गई थी मधु, चहकने वाली चिड़िया चुप हो गई थी।
यही था एक छोटा सा परिवार। माधव के दोनों बच्चे बड़े संस्कारी और सभ्य थे।
समय का पहिया अपनी दूरी पर बेतहाशा चलता जा रहा था।


अब शगुन को भी दो साल हो गये थे उस कंपनी मे काम करते हुए। वेतन भी 40 हजार के पास था।
रहने को फ्लैट कंपनी ने ही दिया था। अब काफी पटरी पर थी जिंदगी।


शुभ मुहूर्त देख माधव ने शगुन का रिश्ता मृदुला से तय कर दिया था, सुंदर, सुशील, शिक्षित, और नाम के अनुरूप ही थी मृदुला। यथा नामों तथा गुणों।


निश्चित तिथि को अग्नि को साक्षी मान, सात फेरों के साथ ही जीवन महत्तवपूर्ण पड़ाव दाम्पत्य की डोर मे बंध गए थे दोनों।


एक ओर मृदुला भी इतने सुशील परिवार को पा कर खुश थी, तो परिवार भी सुशीला और लक्ष्मी रूप मे संस्कारी बहू पा कर ईश्वर का धन्यवाद करते नहीं थकते थे।
मधु को तो जैसे इतनी प्यारी भाभी मिली कि उसकी तो जैसे हमजोली सहेली मिल गई।


दहेज के विरोधी माधव ने दहेज नहीं लिया था। ये और बात है कि मृदुला के पिता जी राजेश ने यथा शक्ति हर सुविधा का समान और शगुन को शगुन के रूप मे तीन लाख नगद दिया था। माधव ने पुरजोर विरोध किया।


पर राजेश ने 'ये मेरा फर्ज है आखिर दुलारी बेटी है हमारी,' यह कहते हुए विनम्रता से बात काट दी थी माधव की।
अब चार कमरों का घर भी छः कमरों का हो चुका था।
समय चलता रहा....... । शादी को साल भर बीत चुके थे। इधर मधु भी विवाह योग्य हो गई थी।


माधव और उषा ने जिद कर बहू को बेटे के साथ नोयडा भेज दिया था।
मृदुला बिल्कुल भी नहीं जाना चाहती थी, वो तो सास ससुर और ननद से इतना घुलमिल गई थी कि मायके की भी सुध भूल गई थी।


खैर मृदुला शगुन के संग नोयडा मे खुश थी पर उसे सास ससुर और मधु की बहुत याद आती। जब शगुन चला जाता तो वह फोन पर सास से और मधु से घंटों बातें करती।
शगुन अच्छे पद पर था, कहते हैं कि पैसा इंसान को बदल देता है, और इसमे संगत का असर भी बहुत होता है। वह भी दिखावे मे और पैसे की चमक मे थोड़ा थोड़ा बौराने लगा था।


यार दोस्तों की संगत मे, उनके रंग मे रंगने लगा था। पार्टियां, ऐशो आराम, दिखावा, और कभी कभी शराब भी पीने लगा था।


शायद माधव के राम मे अब रावण ने जन्म ले लिया था। अब वह घर, माँ बाप बहन से कुछ खींचा खींचा रहने लगा था। बस पैसे भेजना ही जिम्मेदारी समझता था।
पर माधव आज भी समान्य और सादा जीवन उच्च विचार के ही थे।


अब शगुन को एक बेटा हो गया था - अक्षत।
शगुन का प्रमोशन हुआ था, सो दो दिन बाद उसने अपने फ्लैट पर पार्टी रखी थी।

(क्रमशः) कहानी जारी है......


✍🏻संदीप सिंह (ईशू)
©सर्वाधिकार लेखकाधीन