Kalyug Ke Shravan Kumar - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

कलयुग के श्रवण कुमार - 4 - दुनिया मे क्या रखा है (1)

दुनिया मे क्या रखा है (1)

"सानिध्य प्रताप सिंह" एक ऐसा पुलिस आफिसर जो अपनी ईमानदारी और अनुशासन प्रिय होने के कारण क्षेत्र मे ही नहीं अपितु विभाग मे भी काफी प्रसिद्ध था।
आज सुबह सुबह ही सानिध्य ने रामपुर चौराहे पर औचक निरीक्षण का अभियान चलाया था।
कांस्टेबल भोला राम, राजनारायण, रमेश और इंस्पेक्टर दिव्या के साथ पूरी टीम बड़ी मुस्तैदी से वाहनों की चेकिंग करने मे व्यस्त थे।
अचानक सामने से आती एक फॉर्च्यूनर कार जिस पर किसी राजनैतिक पार्टी का झंडा लगा था।हाथ के इशारे से रुकने को कहा था। पास आते आते टायरों की चिंघाड़ के साथ वह रुकी थी।
गाड़ी के ड्राइविंग डोर की खिड़की खोल एक छूटभैया नेता टाइप का दिखने वाला युवक बोला - क्या बात है बे भोले, अब हमरी गाड़ी भी रोकेगा, तुमको पता नाही है हम तोहरी वर्दी उतरवा देंगे।
भोला राम खिसिया सा गया,
बस इतना बोला - नीचे उतरो साहेब भी साथई है, तुम्हरी गाड़ी की चेकिंन करनी है।
'अबे काहे हम कौनो गुंडा मवाली है का',
सानिध्य के कानो मे उस नेता टाइप टपोरी की आवाज पहुंच चुकी थी।
वह तेजी से उस गाड़ी की तरफ लपका।
पास पहुंचा तो भोला के साथ साथ उस चपड़गंजू नेता की भी सिट्टी पट्टी गुम हो गई।
'चल नीचे उतर', सानिध्य ने बिना भाव के कहा।
'अरे ऐतना ऐंठ काहें रहे हो साहेब, जौन हजार दो हजार चाही, बोल दो, अभिये कर देते है....
उसका इतना बोलना की, सानिध्य आपा खो बैठा।
दरवाजे को तेजी से खोलते हुए उसे लगभग खिंच कर उतारा था।
अभी वो छूटभैया संभला भी नहीं था कि, चटाक ssss की आवाज के साथ उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और सुबह के वक़्त भी उसे बिल्कुल स्याह रात मे टिमटिमाते तारे नजर आ गए।
'नारायण पकड़ इसे', सानिध्य ने हवलदार राजनारायण को बुलाते हुए कहा।
'भोला तू अच्छे से चेक कर इसकी गाड़ी, '
तब उससे रूबरू हुआ, 'क्या रे तू सब को गाजर मूली समझा है क्या जो, जब मर्जी खरीद लेगा, भें@@@ तेरे बापू का राज है क्या,' । बड़े मधुर लेकिन सर्द स्वर मे कहा था सानिध्य ने।
'अरे साहेब बिना वज़ह काहें मार दिए हमको, कौनो गलती भी तो नै किए थे हम,। लगभग रिरियाता सा बोला था वो नेता।
अभी सानिध्य कुछ बोलता की इ. दिव्या की आवाज आई,
'सर, इसकी गाड़ी से गांजे की दो बोरिया और नशे के टेबलेट के बंडल मिले है।
सानिध्य ने देखा जांच प्रक्रिया को अपने मोबाइल से वीडियोग्राफी के द्वारा रिकार्ड करते हुए बोला था दिव्या ने।
क्या?? ज़ब्त करो इस मादक पदार्थों को और इसे भी कस्टडी मे लेकर ससुराल ले चलो।
काग़ज़ी कोरम की पूर्ति शुरू हो गई।
क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप गिरफ्तार अपराधी अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर अंदर कोर्ट मे पेश करना होता है।
सड़क पर वाहनों का आवागमन काफी तेज था।
वैसे भी आज कल लोगों को अपने जीवन का मूल्य कहाँ मायने रखता है, या सच कहूँ तो जीवन मूल्य का ही पता नहीं होगा।
तभी ने वाहनों को निश्चित स्पीड मे ना चला कर मरूत- वेग (हवा की गति) से भागते है शायद इनकी सोच दुनिया (जीवन) मे क्या रखा है वाली है।
अपने कनिष्कों को बाकी का कार्य समझाते हुए अचानक सानिध्य का ध्यान तेज हार्न बजाती तीव्र गति से आती बस पर पड़ी, उसकी आत्मा तब यह देख कर कांप गई कि सामने एक मैले कुचैले वस्त्रों मे भिखारियों जैसी दिखने वाली कभी जर्जर काया की स्वामिनी वृद्धा को सड़क पर करते देखा।
उस पागल सी दिखने वाली उस वृद्ध महिला का ध्यान ना हार्न और ना ही तीव्र गति से आती बस पर था।

बिना एक पल गंवाये उसने सड़क पर छलांग लगा दी और बड़ी ही फुर्ती से उस वृद्ध महिला को लगभग बाहों मे समेटे हुए खुद के शरीर को जमीन की ओर मोड़ते हुए.. धाड़.. से सड़क पर गिर कर घिसटता हुआ चला गया।
ठीक यही पल था जब आँधी की तरह द्रुत गति से आती बस गुजरी थी।
आसपास गुजरने वाले राहगीरों के मुख से लगभग चीख सी निकल गई थी।
भोला चूकिं छूट भैये को हथकड़ी लगा जीप से लॉक कर पेपर वर्क करने मे मशगूल हुआ था।
अचानक घटित घटना क्रम से खुद भोला की घिघ्घी सी बंध गई थी।
वह दिव्या मेम को देखते रहने का इशारा कर, तेजी से सानिध्य की ओर - 'सर आप ठीक हो, ' कहते हुए लपका था।
हादसे के पश्चात सड़क पर आवागमन स्थिर हो चुका था। हालांकि बस ड्राईवर की कोई गलती ना थी, वह अपने हिसाब से सही स्पीड मे गाड़ी चला रहा था, उसने बस कुछ दूरी पर रोक दी थी।
अबतक लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी।
सानिध्य वृद्ध महिला को सुरक्षित बैठाते हुए खुद भी सम्भले हुए खड़ा हो चुका था।
अच्छा हुआ, शुक्र था ईश्वर का कि सर्विस पिस्टल की तरफ नहीं गिरा था सानिध्य वर्ना घिसटते हुए पिस्टल से गोली चलने का खतरा था।
यदि ऐसा होता तो सम्भवतः हादसा भीषण और परिणाम गम्भीर होते।
सानिध्य की वर्दी कई जगह से फट चुकी थी जहां से हो चुके घावों से खून रिस रहा था।
उस वृद्ध महिला को मामूली चोटें आयी थी, कारण उनका सारा भार सानिध्य के शरीर पर था।
हल्का लंगड़ाने लगा था वह।
अब तक बुढ़ी महिला जो भिखारी सरीखे दिख रही थी, वह संभल गई थी।
'बाबू.. (सानिध्य के पैर टटोलते हुए) पीआस (प्यास) लगी बा.. पानी पिया (पिला) दा ।
बड़ी मासूमियत से बोला था सानिध्य से।
जैसे पल भर पहले कुछ हुआ ही नहीं था।
भीड़ को हटाने को बोल, सानिध्य ने उस वृद्धा को सहारा देते अपने....
(क्रमशः) अगला भाग शीघ्र ही .....
"बने रहिए इस प्यारी सी कहानी के साथ क्योंकि बस थोड़ी ही देर मे इसका दूसरा भाग भी प्रकाशित करूंगा, लिख रहा हूँ लगातार.... जब तक आप इसे पढ़ेंगे तब तक दूसरा भाग आपके सामने होगा। "

✍🏻संदीप सिंह (ईशू)