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काला जादू - 5

काला जादू ( 5 )

शाम हो चुकी थी इसलिए अश्विन अपना सामान उठाकर आॅफिस से बाहर चल पड़ता है ,वह लिफ्ट तक गया ही था कि पीछे से पीयूष आया और बोला " गुड इवनिंग सर..... "

" गुड इवनिंग पीयूष..... " अश्विन ने कहा।

" घार जा रहे थे आप सार? "

" नहीं वो घर पर बोर हो जाता हूँ, मुझे ज्यादा मोबाइल चलाना पसंद भी नहीं है इसलिए सोचा कि अपने लिए कुछ किताबें लेता चलूँ ।"

" तो हम छोड़ देता हूँ ना अपना बाईक शे..... चोलिए कौन शा बुक श्टोर लेकर चले आपको? "पीयूष ने कहा।

" आर यू श्योर ?"

" अरे बिल्कुल सर..... आप बताईए कि कहाँ लेकर चलूँ आपको? "

" तो फिर यहाँ पास की किसी लाइब्रेरी में ले चलो.... " अश्विन ने कहा।

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पीयूष अश्विन को वहाँ पर स्थित एक लाइब्रेरी में लेकर जाता है, उस लाइब्रेरी की इमारत इतनी भव्य नहीं थी, वह दोमंजिला एक छोटी सी मकाननुमा इमारत थी , वह पूरी इमारत सफेद थी जिसके किनारों पर नीले रंग से पेंट किया हुआ था ,उसका मुख्य द्वार छोटा सा काले रंग का था, उस इमारत के ऊपर नीले रंग से अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में शोभिता पुस्तकालय का एक सफ़ेद बोर्ड लगा हुआ था, उस इमारत के दोनों ओर कुछ झाड़ीनुमा पौधे लगे हुए थे।

पीयूष उस लाइब्रेरी के बाहर अपनी बाईक पार्क कर अश्विन के साथ उस लाइब्रेरी के अंदर की ओर बढ़ने लगता है।

अंदर सामने के तरफ ही एक लकड़ी की बड़ी सी मेज़ के साथ कुर्सी लगी हुई थी जिसपर एक 35-40 वर्षीय महिला बैठी हुई थी, उस मेज पर कुछ किताबें, रजिस्टर, पैनकेस और कुछ कागज रखे हुए थे, उस कमरे में उस मेज के ठीक ऊपर एक पंखा चल रहा था ताकि वह कागज पंखे की हवा से उड़ ना जाये इसलिए उनके ऊपर एक गोल सा पारदर्शी पेपर हाॅल्डर रखा हुआ था, वह महिला उस कुर्सी पर बैठकर एक रजिस्टर पर कुछ लिख रही थी।

उस महिला के ठीक सामने ही लकड़ी की एक लम्बी सी मेज लगी हुई थी, उस मेज के चारों ओर ही लाईन से कुर्सियाँ लगी हुई थी, उनमें से कुछ कुर्सियों पर कुछ लोग बैठ कर किताबें पढ़ रहे थे। उस लम्बी मेज़ के दोनों तरफ ही लकड़ी की बड़ी बड़ी बुकशैल्फ लगी हुई थी, जिनमें बहुत सी किताबें रखी हुई थी।

अश्विन पीयूष के साथ उस लाइब्रेरी के अंदर आकर उस महिला से बात करने लगता है " हैलो मेम...... आई वाॅन्ट अ बुक अबाउट मिसट्ररी....."

" कौन शा भाषा में चाहिए? "उस महिला ने पूछा।

" जी हिंदी में..... "

" शाॅरी हमारा पास बाँग्ला और अंग्रेजी में वैशा किताब होएगा लेकिन हिंदी में मुश्किल होगा, वो आपको बड़ा वाला लाइब्रेरी में मिलेगा..... "

" ठीक है थैंक्स..... " कहकर अश्विन वहाँ से जाने लगा, उसे यूँ जाता देख पीयूष ने पूछा " सोर आपका किताब मिल गोया क्या? "

" नहीं यहाँ वो किताब नहीं है ,वो किसी बड़ी लाइब्रेरी में मिलेगी...... चलो छोड़ो बाद में कभी ले लेंगे अभी घर चलते हैं.... "

" ठीक है सोर जैशा आपको ठीक लगे, आईए वैसे सोर हम आपसे कुछ कहना चाहता था...... " पीयूष ने बाइक पर बैठते हुए कहा।

" हाँ बोलो..... " अश्विन ने पीयूष के पीछे बैठते हुए कहा।

" सोर आपको आनुष्का पता है? " पीयूष ने बाइक चलाते हुए कहा।

" आॅफकोर्स वो जो आॅफिस में काम करती है , तुम्हारी दोस्त......"

" जी सोर वही...... वो आपको मन ही मन चाहने लगा है, शादी कोरना चाहता है आपके साथ..... "

" क्या? लेकिन क्यों? "अश्विन ने हैरानी से कहा।

" सोर आप इतना भालो मानुष है..... उस दिन हमने लिफ्ट के सामने आपको पड़ेशान भी किया किंतु आप हमें कुछ भी नहीं बोला..... आज सुबह भी उन बुड्ढे लोगों के लिए आप लिफ्ट से निकलकर सीढ़ियों से चला गया । "

" तुम्हें अनुष्का ने कहा ये सब मुझे बोलने के लिए? "

" नोही सोर..... हमसे हमारा दोस्त का ये हालत नहीं देखा जाता..... "

" अनुष्का को मत बताना कि तुमने मुझसे इस बारे में कुछ भी बात की.....मैं बाद में सोचूँगा इस बारे में..... अभी तो 50 तरह की चीजें दिमाग में चल रही हैं इसलिए अभी के लिए ये बात बिल्कुल भूल जाओ .... "

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शाम आठ बजे के आसपास -

अश्विन आज किताब ढूँढने के चक्कर में घर बहुत लेट आया था, वह नहा धोकर रात का खाना खाने जाने ही वाला था कि तभी उसका मोबाइल बजने लगता है।

वह अपना मोबाइल उठाकर देखता है तो पाता है कि वह काॅल उसकी माँ का था क्योंकि मोबाइल स्क्रीन पर काॅल के दौरान " मम्मी काॅलिंग " लिखा हुआ था।

अश्विन जल्दी से वह फोन उठाता है और कहता है " हैलो मम्मी कैसे हो? "

" हम ठीक हैं बेटा ......तू कैसा है? और काम कैसा चल रहा है? "

" मम्मी मेरा काम बिल्कुल ठीक चल रहा है..... वैसे मम्मी एक बात पूछनी थी ....." अश्विन ने संकोच के साथ कहा।

" कौन सी बात बेटा? "

" मम्मी.....आपने कहा था ना कि अब मेरी शादी की उम्र हो गई है....... "

"हाँ तो? "

" मम्मी तो मैं अपनी मर्जी से शादी तो कर सकता हूँ ना? "

" बिल्कुल कर सकता है बेटा.... लेकिन लड़की सही होनी चाहिए..... "

" अगर वो अपनी जात बिरादरी की ना हुई तो? "

" तू कहना क्या चाहता है साफ साफ बोल..... "

" वो....मम्मी....मुझे ना....एक लड़की अच्छी लगने लगी है ,बट वो अपने बिरादरी की नहीं है..... "

"तुझे वो सिर्फ अच्छी ही लगती है या और कुछ बात है ? "

" सिर्फ अच्छी लगती है..... " अश्विन ने शर्माते हुए कहा।

" देख बेटा मैं तो यही कहूँगी कि तू जितना जल्दी हो सके उस लड़की को भूल जा....."

" लेकिन क्यों मम्मी? "

" देख बेटा अगर लड़की हमारी ही बिरादरी की होगी तो हम सबके लिए अच्छा होगा और तू भी ये बात समझ ले तो अच्छा होगा, अगर तू अपनी पसंद की किसी लड़की को हमारे घर की बहू बनाना चाहता है तो वह हमारी जात बिरादरी की हो तो ज्यादा अच्छा है वरना भूल जाना कि तेरी शादी उससे सपने में भी हो सकती है...." अश्विन की माँ ने सख्त लहजे में कहा।

" जी मम्मी मैं ये बात आगे बढ़ने नहीं दूँगा अब..... " अश्विन ने मन मसोसकर कहा।

" वैसे एक बात बता..... तुझे वहाँ गए हुए 10 दिन भी नहीं हुए और तू किसी को पसंद भी करने लगा है? पहले तो ऐसा नहीं था तू..... "

" मम्मी पहले मेरा ध्यान सिर्फ़ अच्छे से पढ़ कर कैरियर बनाने मैं था, बट अब तो सब सेट है इसलिए ध्यान चला गया.... "

" ठीक है... मैं तेरे लिए कोई अच्छी सी लड़की ढूँढूंगी...."

" अभी रहने दो मम्मी बाद में कभी, अभी तो मुझे अपने काम से ही समय नहीं मिलता....."

" ठीक है बेटा, अब मैं तेरे पापा को खाना दे देती हूँ तू भी कुछ खा ले..... "

" ठीक है मम्मी गुड नाइट...... "

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______वर्तमान में______

" ज्योति क्या तुम भी .....इतनी छोटी सी बात को लेकर बैठ गई , हो सकता है कि अश्विन ने ऐसे ही कह दिया हो ये..... " आकाश ने कहा।

" नहीं आकाश , क्या आपने अश्विन को कभी किसी लड़की से बात भी करते देखा था...... फिर उसने कैसे मुझसे कह दिया कि उसे कोई लड़की पसंद है और वो भी वो लड़की जो हमारी बिरादरी की नहीं है.... अश्विन को अच्छे से पता था कि उसकी शादी दूसरी किसी बिरादरी में हम मुश्किल से ही करवाएंगें....इसलिए वो हमेशा अपनी मर्यादा में ही रहता था अब अचानक से यहाँ आते ही वो ऐसा हो गया ये बात सोचने वाली नहीं लगती आपको? "

ज्योति की बात सुनकर आकाश कुछ सोचते हुए अस्पताल के बेड पर लेटे अश्विन की तरफ देखने लगता है फिर वह कहता है " अब हम क्या करेंगे ज्योति? "

" हमें कैसे भी करके ये पता लगाना पड़ेगा कि हमारे बेटे के साथ आखिर हो क्या रहा है यहाँ ? "

" लेकिन कैसे? "

" हमें किसी त..... " इससे पहले ज्योति कुछ कहती अस्पताल के बिस्तर पर लेटे अश्विन को होश आने लगा था, यह देखकर ज्योति और आकाश दौड़ते हुए उसके बिस्तर के पास चले जाते हैं , " बेटा तू ठीक तो है ना? "ज्योति ने भरे गले के साथ अश्विन से पूछा।

" आह.... मैं ठीक हूँ.....बस सर आह! थोड़ा सा दुख रहा है.... मैं कहाँ पर हूँ? "अश्विन ने कहा।

" बेटा तू अस्पताल में है.... क्या हुआ था तुझे? "आकाश ने पूछा।

" पता नहीं पापा आह!.... मैं आॅफिस से लौट रहा था कि तभी मेरी बाइक का बैलेंस बिगड़ा आह!..... फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता..... " उसके बाद आकाश दौड़ते हुए बाहर भागा ।

" तेरे शरीर पर कुछ पुराने घाव भी हैं.... वो कैसे आए ?" ज्योति ने पूछा।

" याद नहीं आ रहा मम्मी..... बट ऐसे ही लग गए थे ,कभी अलमारी में सामान रखने के टाइम, कभी दरवाज़ा लगाने के टाइम ,कभी टेबल के किनारों से आह! ..... पानी मिलेगा क्या? "

" हाँ बेटा अभी देती हूँ..... " कहकर ज्योति मैडिसिन टेबल पर रखी पानी की बोतल से गिलास में पानी डालने लगती है, इस दौरान अश्विन बार बार ऊपर की तरफ देख रहा था मानो वहाँ कुछ हो , यह देखकर ज्योति ने अश्विन से पूछा " क्या हुआ बेटा ?"

" कुछ नहीं मम्मी..... "

" ऊपर क्या देख रहा था? "

" वो पंखा देख रहा था बस..... "

" तू पंखे को इतनी ध्यान से देख रहा था? "ज्योति ने आशंकित स्वर में कहा, अब इससे पहले कि अश्विन कुछ कहता आकाश वहाँ एक 29-30 वर्षीय पुरुष डाॅक्टर को लेकर आ जाते हैं , उसका रंग गोरा था और बाल छोटे लेकिन सलीके से कटे हुए थे , अश्विन के सीने पर स्टेथॉस्कोप ( काले रंग का एक यंत्र जिसका एक सिरा डाॅक्टर अपने कानों में लगाता है और दूसरा गोल सिरा मरीज के सीने में रखकर मरीज की हृदय गति , पेट की गड़गड़ाहट, फेफड़ों के अंदर और बाहर जाने वाली हवा , रक्तसंचार की दशा आदि का परीक्षण करता है। ) लगाते हुए उसने कहा " कैशा है अश्विन तुम? "

" ठीक हूँ, बस थोड़ा सा आह! सर मैं दर्द है....." अश्विन ने कहा।

" वो तो शिर में चोट लगा है उस वजह से हो रहा होगा.... इशका अलावा तो कहीं और दिक्कत नहीं है? "

" जी नहीं बाकि सब तो ठीक लग रहा है.... "

" ठीक है.... हम इशको कल और ओब्जरवेशन में रखेगा अगर सोब सोही रहा तो परसों तक हम डिश्चार्ज दे देगा..... " कहकर वह डाॅक्टर वहाँ से चला गया।

उस डाॅक्टर के जाने के बाद ज्योति ने अश्विन को पानी दिया , इस दौरान वह अश्विन को आशंकित नजरों से घूर रही थी, ज्योति को आश्विन को यूँ घूरता देखकर आकाश ने कहा " क्या बात है ज्योति? तुम ठीक तो हो? "

आकाश की आवाज़ सुनकर ज्योति अश्विन से नजरे हटाते हुए बोली " जी मैं बिल्कुल ठीक हूँ.... "

" फिर तुम अश्विन को ऐसे घूर क्यों रही हो? " आकाश ने हैरानी से कहा, यह सुनकर अश्विन पानी पीना छोड़कर उन दोनों के चेहरे ताँकने लगा।

" आप बाहर आईए मेरे साथ..... " कहते हुए ज्योति आकाश को बाहर की ओर ले जाने लगती हैं और अश्विन उन्हें जाते हुए देखता रहता है, उनके कमरे से जाने के बाद वह दोबारा ऊपर की तरफ देखने लगता है।

कमरे से बाहर आकर ज्योति ने आकाश से कहा " पक्का हमारे बेटे के ऊपर किसी अदृश्य बुरी ताकत का साया है...."

" लेकिन तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है? " आकाश ने हैरानी से कहा।

" क्योंकि हमारा अश्विन बार बार ऊपर की तरफ देख रहा है जैसे वहाँ कोई हो..... और पूछने पर बता नहीं रहा..... "

" क्या? अब हम क्या करेंगे ज्योति? "

" हमें कैसे भी करके पता लगाना पड़ेगा कि यह सब हमारे बेटे के ऊपर कौन कर रहा है, वही इसे रोक भी सकता है , मुझे लग रहा है कि हो ना हो ये उसी बंगालन का किया धरा है जिसे हमारा अश्विन पंसद करने लगा था , और यह सब कौन और क्यों करवा रहा है ये हमें जल्द ही पता चल जाएगा , लेकिन फिलहाल हमें अश्विन को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना है , नहीं तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। " ज्योति ने कहा, उसके बाद वह दोनों वापस अश्विन के कमरे में आ गए ,वहाँ आकर उन्होंने देखा कि अश्विन अभी भी बड़े ध्यान से ऊपर छत की ओर कुछ देख रहा था , यह देखकर उन दोनों ने भी वहाँ देखा जहाँ अश्विन देख रहा था लेकिन वहाँ सिवाए पंखे के और कुछ नहीं था।

यह देखकर आकाश थोड़ा घबरा गया कि आखिर अश्विन को वहाँ ऐसा क्या दिख रहा है जो उन्हें दिखाई नहीं दे रहा, इसलिए उसने एक तेज आवाज के साथ कहा " अश्विन!?! क्या देख रहे हो वहाँ? "

क्रमश:......
रोमा........