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काला जादू - 6

काला जादू ( 6 )

आकाश की अचानक से आवाज सुनकर अश्विन थोड़ा डर जाता है और कहता है " क्या? कुछ नहीं पापा कुछ नहीं.... "

" तो फिर ये बार बार ऊपर क्या देख रहे हो? "

" वो.....मैं.....ऊपर देखते हुए कुछ सोच रहा था... "

" क्या सोच रहे थे? "

" यही कि मेरा एक्सीडेंट हुआ तो हुआ कैसे था.... बट ढंग से याद नहीं आ रहा कुछ..... मुझे थोड़ी नींद आ रही है इसलिए थोड़ी देर सो लेता हूँ.... " कहकर अश्विन चादर अपने मुँह तक खींच कर सो गया।

ज्योति और आकाश एक दूसरे का मुँह तांकते रहे।

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दो दिन बाद अश्विन को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया ,और वह अपने माता पिता के साथ वापस अपने फ्लैट में आ गया।

अश्विन के फ्लैट में खाना बनाने के लिए गैस की व्यवस्था नहीं थी इसलिए प्रशांत के कहे अनुसार विंशती उन तीनों के लिए खाना बनाकर एक 4 डिब्बे वाले स्टील के टिफिन में डालकर उनके घर लेकर जाती है ।

विंशती ने इस समय पीला सूट पहना हुआ था जिसके साथ उसने अपने लंबे बालों की चोटी बनाई हुई थी, विंशती उस पीले सूट में बहुत खूबसूरत लग रही थी ।

अश्विन के फ्लैट के आगे आकर विंशती उसके फ्लैट की घंटी बजाती है...

कुछ देर बाद ज्योति दरवाज़ा खोलती है तो अपने सामने एक 19-20 की खूबसूरत युवती को देखकर आश्चर्य से कहती है " जी? "

" आंटी.... हम आपका पाड़ोसी है..... आश्विन जी ठीक नहीं है ना तो दादा बोलेछि कि आप लोगों का लिए खाना बनाकर दे आऊँ..... " विंशती ने वह टिफिन ज्योति को पकड़ाते हुए कहा।

विंशती चेहरे से इतनी मासूम और प्यारी सी लगती थी कि उसे देखकर ज्योति मुस्कुराते हुए बोली " यहीं से दे दोगी.... अंदर तो आओ..... "

उसके बाद विंशती भी मुस्कुराते हुए अंदर आ गई ,अंदर आकर ज्योति ने उससे कहा " बेटा तुम बैठो में तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूँ....."

" दरकार ना आछे.... आई मीन उशका जरूरत नहीं है.... " विंशती ने कहा।

" अच्छा बेटा तुम अश्विन को कब से जानती हो? "

" हमारा उनशे कभी बात नहीं होता..... वो और दादा मतलब हमारा भाई बहुत ओच्छा बोन्धु है..... "

" आपका भाई कहाँ पर है बेटा? "

" दादा तो बैंक गाया है..... वो वहाँ काम कोरता है..... "

" अच्छा बेटा शाम को जब आपका भाई आए तो उन्हें यहाँ भेजना..... "

" ठीक आछे आंटी ।" विंशती ने सिर हिलाकर कहा।

" बेटा अश्विन किसी....." ज्योति आगे बोलने ही वाली थी कि तभी अश्विन बेडरूम से निकलकर वहाँ आ गया और बोला " अरे विंशती तुम..... यहाँ? "

" हाँ , हम खाना लेकर आया था..... " विंशती ने कहा।

" तुम्हें तकलीफ़ करने की क्या जरूरत थी? "

" दादा बोलेछि कि आप लोगों को खाना दे आऊँ....."

" तुम्हें काॅलेज में होना चाहिए था इस टाईम तो....."

" हाँ वो हमको दादा ने मोना कोर दिया जाने शे....."

" लेकिन क्यों? "

इस पर विंशती कुछ ना बोली लेकिन फिर अश्विन ने कहा " मैं कई दिनों तक ऐसे ही रहूँगा तो तुम क्या मेरे पीछे ऐसे अपनी पढ़ाई खराब करोगी?..... आने दो प्रशांत को खबर लूँगा उसकी आज..... "

" आप चिंता मोत कीजिए अभिमन्नो आज का नोट्स लाता ही होगा, हम उससे पोढ़ लेगा...... "

" चलो तुम्हारा मँगेतर कुछ काम तो आया..... " अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

" आप भी ना..... अच्छा अब हम चोलता है आप ओपना ख्याल रोखना..... " विंशती ने कहा।

" हाँ बिल्कुल..... " अश्विन ने कहा और उसके बाद विंशती वहाँ से चली गई, विंशती के जाने के बाद ज्योति ने कहा " इस बच्ची की सगाई हो रखी है? "

" हाँ मम्मी इसकी लव मैरिज होगी , इसके मँगेतर का नाम अभिमन्यु है..... अब मम्मी खाना दो ना परोसकर विंशती बहुत अच्छा खाना बनाती है.... "

अश्विन की बातें सुनकर ज्योति सोच में पड़ गई यह देखकर अश्विन ने कहा " क्या बात है मम्मी? आप कुछ परेशान लग रहे हो? "

" कुछ नहीं बेटा बस.... मुझे लगा था कि ये वही लड़की थी जो तुझे पसंद आई थी..... इसे अपने घर की बहू बनाने में मुझे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन इसकी तो किसी और से शादी होने वाली है.... " यह सुनकर अश्विन कुछ नहीं बोला वह बस चुपचाप उसे घूरता रहा फिर कुछ देर बाद वह चुप्पी तोड़ते हुए बोला " आप खाना परोस दीजिए, इतने दिनों से अस्पताल का बेस्वाद खाना खाकर मैं भी उब गया था अब कुछ अच्छा तो मिलेगा..... "

ज्योति कुछ ना बोलते हुए चुपचाप खाना परोसने लगी।

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शाम के समय -

प्रशांत काम से आकर बैग रखकर हाथ मुँह धोकर सीधा अश्विन के फ्लैट की ओर बढ़ जाता है।

उसने काम पर जाने के समय पीली कमीज के साथ काली पतलून पहनी हुई थी , जो कि उसने अब भी नहीं उतारी थी, वह बिना कपड़े बदले ही अश्विन से मिलने निकल पड़ता है।

अश्विन के फ्लैट के पास आकर वह घंटी बजाता है , कुछ देर बाद ज्योति दरवाज़ा खोलती है, प्रशांत को देखकर वह उससे पूछती है " जी? "

" नोमश्कार आंटी, मैं प्रोशांत है, विंशती बोलेछि कि आपने बुलाया था..... " प्रशांत ने कहा।

" अरे आओ बेटा आओ... " ज्योति ने प्रशांत को अंदर लाते हुए कहा।

" आश्विन कैशा है? " प्रशांत ने सोफे पर बैठते हुए कहा।

" अभी तो ठीक है बेटा वो सो रहा है.... लेकिन मुझे उसका बर्ताव कुछ सही नहीं लग रहा.... " ज्योति ने कहा और ये कहते हुए उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई।

" क्या बात है, हमको बताओ हम आपका बेटा जैशा ही तो है.... "प्रशांत ने ज्योति को धीरज बाँधते हुए कहा।

" बेटा अश्विन की हरकतें कुछ अजीब सी हो गई है, वो घंटों कहीं पर भी ध्यान से देखता रहता है, पूछने पर बताता नहीं है.... " बेडरूम से आते हुए दीपक ने कहा।

" आश्विन ऐसा विहेब कुछ दिनों से कारने लगा है, वोरना पहला ऐशा नोही था..... " प्रशांत ने कुछ सोचते हुए कहा।

" हाँ बेटा पता नहीं कुछ दिनों से क्या हो गया है उसे..... " आकाश ने कहा।

" ऐशा कोरता है कि कोल इश फ्लैट में हम हवन कोरता है, शारा नेगाटिव ऐनर्जी चोला जाएगा, तब सोब ठीक हो जाएगा..... "

" लेकिन बेटा हवन का सामान और पंडित को ढूँढने में समय तो लगेगा..... "

" आप उशका चिंता मोत करो, हम बांगाली ब्राहमोण है, हम कोर देगा और शारा सामान भी ले आएगा, आप तीनों बोस सुबह 10 बोजे तक रेडी रोहिऐगा। "

" बहुत बहुत शुक्रिया बेटा.... " ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा ।

" अरे इशमे शुक्रिया कैशा? आश्विन हामारा भी तो दोश्त है.... "प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा , प्रशांत ने इतना कहा ही था कि तभी उनके दरवाजे की घंटी बजी, ज्योति दरवाज़ा खोलने के लिए उठी, दरवाजा खोलते ही उसने सामने विंशती को सफेद चाय की ट्रे हाथ में लिए खड़ा पाया।

यह देखकर ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा " अरे बेटा चाय की तकलीफ़ करने की क्या जरूरत थी.... "

" कोई बात नहीं..... हम हमारा लिए बना रहा था इसीलिए आपका लिए भी बना दिया। " कहते हुए विंशती वह चाय की ट्रे लेकर अंदर आने लगी ।

विंशती वह चाय की ट्रे वहीं सोफे के सामने वाली टेबल पर रखकर जाने लगती है, कि तभी ज्योति उसे रोकते हुए कहती है " अरे बेटा ,चाय तो पीकर जाओ.... "

" मैं माँ के शाथे पी लेगा...."विंशती ने मुस्कुराते हुए कहा।

" ठीक है बेटा... " ज्योति ने कहा, उसके बाद विंशती वहाँ से चली गई ।

विंशती के जाने के ज्योति ने कप में चाय डालते हुए कहा " बड़ी ही प्यारी बच्ची है, हमें हमारे अश्विन के लिए ऐसी ही लड़की की तलाश है । "

" तो मिल ही जाएगा आंटी.... आश्विन बहुत ओच्छा लोड़का है , कोई भी लोड़की बहुत नोसीब वाला होगा जो उससे शादी कोरेगा। " प्रशांत ने ज्योति के हाथ से चाय का वह सफेद कप लेते हुए कहा।

" अगर विंशती की सगाई नहीं हुई होती तो हम उससे ही अपने अश्विन की शादी करवाते..... " ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा ।

यह सुनकर प्रशांत थोड़ा सकपका गया लेकिन फिर वह मुस्कुराते हुए बोला " क्या आप भी आंटी.... ओच्छा मोजाक करता है तुम.... "

" लेकिन इसमें मजाक क्या है? "

" हमारा बिड़ादरी ओलग है ना....." प्रशांत ने चाय का एक घूँट लेते हुए कहा।

अब इससे आगे ज्योति कुछ कहती आकाश ने उसे चुप रहने का इशारा किया जिससे वह आगे कुछ ना बोली।

थोड़ी देर बाद प्रशांत ने अपनी चाय खत्म की और मुस्कुराते हुए कहा " अब हम चोलता है, होवन का तैयारी भी कोरना है,रात का खाना विंशती बोनाकर ले आएगा इशलिए खाने का टैंशन नहीं लेना और आश्विन दादा का ख्याल रोखना। "

" हाँ बेटा। " आकाश ने कहा, उसके बाद प्रशांत वहाँ से चला गया।

प्रशांत के जाते ही आकाश ने ज्योति से कहा " क्या जरूरत थी उसके आगे ये सब बोलने की? "

" मुझे वो लड़की हमारे अश्विन के लिए बहुत अच्छी लगी इसलिए ऐसा कहा। " ज्योति ने कहा।

" लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है ना ज्योति? " आकाश ने ज्योति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

" हाँ, क्योंकि उसकी शादी पहले ही किसी और के साथ फिक्स हो रखी है....."

" नहीं क्योंकि वह एक ब्राह्मण लड़की है , और बाह्मण अपनी ही जात बिरादरी में शादी करते हैं चाहे जो जाए .....अगर यह लड़की हमसे नीची जात की होती तब तो फिर भी कुछ हो सकता था। "

" हाँ आपने सही कहा..... मैं भी ना जाने क्या क्या सोचने लगी थी। " ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा।

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रात के समय-

क्योंकि वह एक 1bhk का फ्लैट था, इसलिए अश्विन के माता पिता भी उसके साथ ही सो गए।

रात के करीब 2 बजे के आसपास ज्योति पानी पीने के लिए उठती है तो पाती है कि अश्विन अपने बिस्तर पर नहीं था , वह उसे बाथरूम में भी ढूँढती है लेकिन अश्विन वहाँ भी नहीं था ।

यह देखकर वह डर जाती है और डरकर आकाश को उठाती है " सुनिए उठिए..... "

" क्या हुआ? सोने दो ना....... " आकाश ने अर्ध निद्रा की अवस्था में कहा।

" अरे अपना अश्विन मिल नहीं रहा....पता नहीं कहाँ चला गया है वो.... "ज्योति ने कहा, ज्योति की यह बात सुनकर आकाश की सारी नींद गायब हो जाती है और वह एक ही झटके में उठते हुए कहता है " कहाँ गायब हो गया वो? बाथरूम में देखा वहीं होगा वो..... "

" मैंने अभी वहाँ देखा, वो वहाँ नहीं है.... " ज्योति ने चिंतित स्वर में कहा।

यह सुनकर आकाश ने बिस्तर से उतरते हुए कहा " चलो चलकर देखते हैं उसे......"

वह दोनों अश्विन को पूरे घर में ढूँढने लगते हैं, वह दोनों रसोई, हाॅल हर जगह ढूँढते हैं लेकिन अश्विन उन्हें कहीं नहीं मिलता, यह देखकर ज्योति रोते हुए कहती है " पता नहीं मेरा बेटा कहाँ चला गया...... "

" धीरज रखो अश्विन मिल जाएगा.....एक मिनट क्या तुमने बाल्कनी चेक की? "

" मैंने नहीं की.... आपने की? " ज्योति ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा।

यह सुनते ही आकाश बाल्कनी की ओर भागा, ज्योति भी उसके पीछे पीछे बाल्कनी की ओर दौड़ी।

बाल्कनी में आकर उन्होंने पाया कि अश्विन बाल्कनी में खड़ा विंशती की बाल्कनी में मुस्कुराते हुए देख रहा था।

" इतनी रात में तू यहाँ क्या कर रहा है बेटा? " ज्योति ने रोते हुए अश्विन को गले लगाते हुए कहा।

" मम्मी आप रो क्यों रहे हो? " ज्योति को यूँ रोता देखकर अश्विन ने कहा।

" पहले तू मेरी बात का जवाब दे.... तू यहाँ क्या कर रहा था इतनी रात में? "

" मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए सोचा कि यहाँ आकर थोड़ी ताजी हवा खा लूँ , फिर विंशती भी यहीं मिल गई तो उसी से बातें करना लगा। "

यह सुनकर आकाश और ज्योति विंशती की बाल्कनी में देखने लगे,वहाँ देखने के बाद आकाश कहता है " तुम्हें वहाँ विंशती दिखाई दे रही है? "

" हाँ क्यों? आपको नहीं दिख रही क्या? " अश्विन ने हैरानी से कहा।

" ऐसा नहीं है बेटा.... तेरे पिता को तो मजाक करने की आदत है..... क्या आप भी ( आकाश की ओर देखते हुए ) इतनी रात को ऐसे मजाक करते हो ,बेटा ( अश्विन की ओर पलटकर )अब सोने चलो, तुझे नींद नहीं आए तो हमें जगा देना लेकिन ऐसे अकेले इतनी रात में घूमने की जरुरत नहीं है, ठीक है बेटा? "

" जी मम्मी, चलिए फिर मैं सोने की कोशिश करता हूँ... " कहकर अश्विन अंदर की ओर बढ़ गया , उसके जाने के बाद आकाश और ज्योति दोबारा से विंशती की बाल्कनी को निहारने लगते हैं..... " आकाश क्या आपको वहाँ कोई दिखा? "ज्योति ने विंशती की बाल्कनी को घूरते हुए कहा।

" मुझे ना पहले कोई दिखा था और ना ही अब..... पक्का हमारे बेटे के साथ कुछ तो गलत हो रहा है। " आकाश ने भी विंशती की बाल्कनी को घूरते हुए कहा।

क्रमश:......
रोमा.........