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अंतिम विकल्प

अंतिम विकल्प

'टिंग टाँग', 'टिंग टाँग'

डोरबेल की आवाज सुनकर किचन से ही पिंकी की मम्मी रागिनी अपने पति राकेश से बोली, "पिंकी के पापा, देखिए जरा, कोई आया है।"
दरवाजा खोलते ही सामने अपनी बेटी पिंकी और सालभर के नवासे रींकू को देखकर खुशी से चहकते हुए बोले, "अरे वाह, पिंकी की मम्मी देखो कौन आया है। हमारी पिंकी और नानाजी रींकू महाराज।"
रागिनी हाथ पोंछती हुई बैठक में आई, तब तक रींकू महाराज नानाजी के कंधे पर सवार हो चुके थे। पिंकी अपना बैग कोने में सटाकर सोफे में बैठ गई थी। यूँ अचानक अकेली पिंकी को आए देख रागिनी का माथा ठनका, सो पूछ बैठी, "पिंकी बेटा, आज यूँ अचानक बिना कोई खबर कैसे ? दामाद जी या समधी जी छोड़ने नहीं आए ?"
पिंकी बोली, "अब वो कभी नहीं आएँगे मम्मी। मैंने वह घर हमेशा के लिए छोड़ दिया है। पिछले लगभग ढाई साल में मैंने बहुत कोशिश की, कंप्रोमाइज करने की, स्थिति को संभालने की। पर रोज-रोज की किचकिच और अब तो मारपीट भी। नहीं मम्मी, बहुत हो गया। अब और नहीं सह सकती मैं।"
रागिनी आश्चर्यचकित। बोली, "पर क्यों बेटा ? किसलिए ये सब ? ऐसी स्थिति निर्मित ही क्यों हुई ?"
रोते हुए पिंकी बोली, "मम्मी, मेरे ससुराल वाले दोहरे चरित्र के हैं। शादी के पहले तो वे लोग बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे, पर शादी के दूसरे दिन से ही कम दहेज लाने के लिए ताने मारने लग गए। मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की। बहुत सहा, पर अब और नहीं। मुझे लगा था कि बच्चा होने के बाद सब ठीक हो जाएगा, पर कुछ भी ठीक नहीं हुआ। अब तो अक्सर मारपीट भी। ये देखिए।"
पिंकी की पीठ और हाथ में चोट के निशान देखकर रागिनी और राकेश जी का गला भर गया था। रूँधे गले से राकेश जी कहा, "पर बेटा, तुमने ये सब हमें पहले क्यों नहीं बताया ? अकेले ही इतना सब कुछ सहती रही।"
पिंकी बोली, "पापा, मैं आप लोगों को टेंशन देना नहीं चाहती थी। मुझे लगता था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वे सब बहुत ही घटिया किस्म के लोग हैं।"
रागिनी बोली, "पर बेटा, वो चाहते क्या हैं तुमसे ?"
पिंकी बोली, "नगद दस लाख रुपए। वे लोग पापा से माँगने के लिए कह रहे थे, पर मैं माँगना नहीं चाहता था।"
राकेश जी बोले, "बेटा, इतनी सी बात के लिए तुम दो साल से उनकी प्रताड़ना सहती रही। हमें बताया तक नहीं। दे देते हम उन्हें पैसे।"
पिंकी बोली, "पापा, बात महज दस लाख रुपए की नहीं है। यदि आज आप दस लाख रुपए आप दे भी देंगे, तो क्या गारंटी है कि वे कल दुबारा फिर से डिमांड नहीं करेंगे। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मेरी कोई वैल्यू नहीं है क्या ? मेरा मान, सम्मान, स्वाभिमान कुछ नहीं..."
रागिनी बोली, "पर बेटा, तुम्हें हमें बताना तो चाहिए था न। इतने दिनों तक तुम अकेली घुटती रही। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलती रही।"
पिंकी बोली, "बस मम्मी, बहुत हो गया। अब और नहीं। पापा, मुझे अपने पर हुए एक-एक अत्याचार और प्रताड़ना का बदला लेना है। मुझे पुलिस स्टेशन जाकर अपने पति और सास-ससुर पर दहेज प्रताड़ना का केस दायर करना है। आप लोग मेरे साथ चलेंगे, तो चलिए वरना मैं अकेली ही चली जाऊँगी ?
राकेश जी बोले, "बेटा, तुमने भलीभाँति सोच लिया है न कि तुम ये जो फैसला ली हो उसका अंजाम क्या होगा ? क्योंकि एक बार जब हम थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगे, तब फिर तुम्हारी ससुराल वालों के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए लगभग बंद से हो जाएँगे।"
पिंकी बोली, "पापा, मेरा निर्णय पल भर में या क्षणिक भावावेश में लिया हुआ नहीं है। पिछले लगभग ढाई साल में लगातार सोच-विचार के बाद ही लिया हुआ निर्णय है। जो लोग महज कुछ रुपयों के लिए अपनी गर्भवती फिर शिशुवती पत्नी, बहु को लगातार मानसिक और शारीरिक रूप से टॉर्चर कर सकते हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जा सकता है। लात मारती हूँ मैं ऐसे दरवाजे पर।"
राकेश जी अपनी पत्नी की ओर मुखातिब होकर बोले, "रागिनी, तुम्हारी क्या राय है इस विषय में ?"
रागिनी गुस्से से तमतमाई हुई थी, "मैं तो पिंकी के साथ थाने जा ही रही हूँ। अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता। मेरी बेटी का जीवन नरक करने वालों को छोड़ूँगी नहीं मैं। आप बताइए, चल रहे हैं हमारे साथ कि हम दोनों माँ बेटी ही चलेंगी ?"
राकेश जी बोले, "बेटा पिंकी, मैंने सोच लिया है कि हम दहेज के दस लाख रुपए तो देंगे। पर उन लालची दरिंदों को नहीं, बल्कि अपनी बेटी को, ताकि वह अपनी पसंद का काम शुरू कर सके और अपनी और अपने बेटे के साथ सम्मानपूर्वक जीवन बिता सके। हमरा क्या है, कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए। हमेशा तो रह नहीं सकेंगे तुम्हारे साथ। लेकिन जब तक रहेंगे, तुम्हारे साथ ही रहेंगे। कभी अपने आप को अकेला मत समझना। बेटा, मैं ये सब इसलिए कह और कर रहा हूँ कि आज तुम जिस दिशा में कदम बढ़ा रही हो, मजबूती के साथ बढ़ा सको। तुम्हारे मम्मी-पापा अपने आखिरी साँस तक हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे।"
पिंकी बोली, "पापा, मुझे विश्वास है कि आप लोग हमेशा मेरा साथ देंगे।"
रागिनी बोली, "बेटा पिंकी, यदि आप लोग चाहें, तो मैं अपने भैया याने तुम्हारे मामाजी को भी बुला लूँ क्या ? वे इस शहर के जाने-माने वकील हैं। साथ रहेंगे, तो हमारी मदद हो जाएगी।"
राकेश जी बोले, "बिलकुल, वे हमारे साथ ही जाएँगे थाने। मैं उन्हें फोन करके इंफार्म कर देता हूँ। तुम भी रहोगी साथ में। रिपोर्ट लिखवाने के बाद पिंकी की फिजिकल जाँच भी होगी। इन सबमें बहुत समय लग सकता है। तुम बच्चे के लिए पानी, दूध बॉटल वगैरह रख लो। बेटा पिंकी, चाहो तो तुम भी थोड़ा फ्रेश हो लो। कुछ खाना-पीना है, तो खा-पी लो। दस-पंद्रह मिनट में ही हम यहाँ से निकल लेंगे।"
पिंकी बोली, "मैं रेडी हूँ पापा। खाना-पीना तो अब थाना से लौटने के बाद ही करूँगी। आप मामाजी को इंफार्म कर दीजिए। वे सीधे थाने पहुंच जाएँ। बच्चे के लिए पानी, दूध, बॉटल वगैरह सब रेडी है।"
राकेश जी अपने साले को फोन लगा रहे थे।
अंतिम विकल्प के रूप में पिंकी अब उस रास्ते पर निकल पड़ी, जो दहेज के लालची उसके ससुरालियों को उनकी अंतिम मंजिल तक पहुँचाने वाली थी।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़