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गहराता शक

गहराता शक: आखिर कुमुद को पछतावा क्यों हुआ?



कुमुद को पछतावा हो रहा था कि उस ने समय रहते सुमित्रा की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया. शादी से पहले... उस प्राइवेट कालेज में सुमित्रा उस की घनिष्ठ सहेली थी. कुमुद के विवाह की बात चल रही थी. सुमित्रा विवाहित थी और शादी के बाद अब फिर बीए पूरा करने कालेज जा रही थी. एक दिन खाली घंटी में लाइब्रेरी के एक कोने में बैठ कर उस ने जोजो बातें कुमुद को सम?ाई थीं, वे याद आने लगीं.


कुमुद ने करवट बदली. घड़ी में 3 बज गए पर उस का पलंग से उठने का मन नहीं हो रहा था. चाय में अभी देरी थी. वह सुमित्रा की बातें सोचने लगी...

सुमित्रा ने बड़ी गंभीरता से कहा था, ‘‘कुम, मेरी बात पर ध्यान दे. पत्रपत्रिकाओं या किताबों में पढ़ी बातें कह रही हूं, व्हाट्सऐप वाली नहीं. जो कुछ जिंदगी में थोड़ा सा देखा हुआ है, जो गंभीर पढ़ा था, जो भोगा है वही बता रही हूं कि किसी भी हालत में किसी लड़के को पत्र मत लिखना, डायरी न रखना कंप्यूटर पर चाहे पासवर्ड से सेफ क्यों न हों. डायरी रखनी हो तो बस रोजमर्रा की मामूली बातें लिखना, शरत की नायिका की तरह उस में अपनी भावुकता किसी के बारे में बघारने मत बैठ जाना, सम?ा? सब से बड़ी बात सैल्फी लेने में हिचकना. कम से कम सैल्फी या फोटो ही अच्छे रहते हैं.’’


कुमुद ने हंस कर पूछा, ‘‘तू ये बातें कैसे जानती है? क्या कोई...’’

‘‘चुप रह, बेवकूफ लड़की,’’ सुमित्रा ने गुस्से से उसे डांटा, ‘‘तुझे क्या पता. हंस रही है. उस सोमेन को ज्यादा मुंह न लगा. कोई खास सोमेन अगले ही दिन आया. शाम को 6 बजे कुमुद, रघु, नीता सभी पिक्चर के लिए तैयार हो रहे थे कि वह आ पहुंचा. उस के आने पर नक्शा पलट गया. कुमुद को अपना पड़ोस का पुराना दोस्त बता कर रघु से उस का परिचय कराना पड़ा. फिल्म के टिकट खरीदे नहीं थे इसलिए पिक्चर जाना छोड़ सभी बैठ गए.


नाश्ते पर सोमेन कहने लगा, ‘‘कुम्मू बहुत जंचने लगी है अब तो.’’ कुमुद सिर झुकाए प्लेट में चम्मच इधरउधर करती रही. वह अपने में मस्त कहता रहा, ‘‘सच रघु, यह पहले बड़ी दुबलीपतली सी थी. अब तो काफी भर गया है बदन. लड़कियां कहती हैं न ब्याह का पानी...’’ वह कुमुद को देख कर हंसा, ‘‘यह नटखट भी कम नहीं रही है. बचपन में, खेल ही खेल में इस ने एक बार मेरी कलाई पर इतने जोर से काट लिया कि कप भर खून तो

बहा ही होगा. अभी तक दाग बना है,’’ उस ने कलाई का दाग दिखाया रघु को. फिर मजे से किलकारी सी मार कर हंसा, ‘‘घर आ कर मैं ने मां से कहा कि पड़ोस के एक साथी ने खेल में काट लिया है... ये देवीजी उस दिन पिटने से बच गईं.’’

कुमुद ने कनखियों से देखा, रघु का चेहरा भावहीन, जड़ जैसा बना था. नीता सोमेन की

बातें उत्सुकता से सुन रही थी. कुमुद की इच्छा हुई एक प्लेट नीचे गिरा दे ताकि बातों का विषय बदले.

उधर सोमेन अपनी ही रौ में कहता जा रहा था, ‘‘अब तो यह बड़ी गंभीर बन गई है. कोई शैतानी तो नहीं करती?’’

रघु के होंठ फड़फड़ाए. जैसी किसी गहरे कुएं से आवाज आई हो, ऐसे स्वर में बोला, ‘‘नहीं, बड़ी सीधी है.’’ कुमुद कुछ नहीं बोली. बोलने को अब बचा ही क्या था. विवाह के बाद वर्षों तक प्रत्येक नारी के अचेतन मन में जिस स्थिति के आ धमकने का सतत भय समाया रहता है, वही शायद आ पहुंची है.

अपनी समस्त कुंठाओं और प्लावन के साथ, जिस में सबकुछ बह जाता है. उसे अपनी शक्तियां बटोरनी चाहिए. पर किस के विरुद्ध. रघु के? सोमेन के या स्वयं अपने? इस मूर्ख, बेहूदे छोकरे सोमेन को यह क्या सूझ. क्यों निरर्थक बकवास करने आ धमका? रत्तीभर अक्ल नहीं है उसे. पर उस का भी क्या दोष. पासपड़ोस का कोई बचपन की मुंहबोला दोस्त अपनी बचपन के दोस्त की ससुराल जा कर मिले ही नहीं. खुल कर बचपन की बातें न करे. यह कैसी विकृति है कि इस संबंध को सदैव गलत ही समझ जाए. दोषी रघु है. वही अपने मन में विकृतियां पाले हुए है. उसे अपने पुरुष भाव का बड़ा अहंकार है. वह इतने संकीर्ण मन का है, यह कुमुद को पहले क्या पता था.


और तुम? महामूर्ख हो, कुमुद. जब कोई बात ही नहीं तो यह अपराधियों सा सहमना, बिना पूछे रघु को सफाई देने की चेष्टा, यह सब क्या है? क्या सचमुच तुम्हारे मन में भी चोर है? रघु ने चोर की दाढ़ी में तिनका देखा तो वह क्या करे? वह भी तो आदमी है, पति है.


हम लाख आधुनिक बनें, दोनों कमाऊ हों नरनारी का रिश्ता वही आदिम बना रहेगा. पुरुष अपनी जागीर में किसी का रत्तीभर हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकता, उसे भड़का देने में कैसीकैसी अजीब सी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, चाहे बात कुछ भी न हो l