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अखबार के क्लासिफाइड विज्ञापन

अखबार के क्लासिफाइड विज्ञापन
(🤣सच्चा प्यार 🤣)


आदतन अखबार पढ़ने के शौकीन सींक जैसी टांगों के मालिक, देवराज इंद्र के वज्र सरीखे बलिष्ठ शरीर के स्वामी, राजस्थान की मरु-भूमि मे उगी झाड़ियों जैसे चंद केशों के पर हाथ फिराने के परम शौकीन "बलवान चचा" जिन्हें लोग पहलवान चचा भी कहते है , वो दीदा (आंखें) फाड़े अपलक दैनिक अखबार के वैवाहिक विज्ञापन वाले पृष्ठ को किंकर्तव्यविमूढ़ से निरंतर घूरे जा रहे थे।


उनके सफाचट चेहरे को देख कर अंधे व्यक्ती को भी ऐसे आश्चर्य अलंकार से अलंकृत थोबड़े के विस्मयकारी भाव का बोध दिख जाए।

बड़ी दिमागी जद्दोजहद मे उलझे लग रहे थे चचा।
'अरे चचा पांय लागू'
कलयुग की तीसरी आंख सीसीटीवी कैमरे के मानिंद गर्दन को हौले से जुम्बिश देते हुए आगंतुक शख्स पर अहसान करती नजरों से चक्षुपात किया चचा ने।

सामने कांतीलाल लगभग कांति खो चुके लाल लाल दंतपंक्तियों से बेतहाशा गुटखा चबाते हुए मंद मंद मुस्कराते दिखे।
'खुश रहो कांति लल्ला।' बड़े निर्विकार भाव से बोले चचा ।

हे.. हे..हे कर लगभग पास पडी कुर्सी को खींच कर बिना देर किए तसरीफ़ टिका पसर चुके थे कांति भाई।

' का बात है चचा.. अखबार लिए, बुझी सिगरेट जैसा मुँह काहे बनाएं हो। '

बेटा कांति ये बताओ की हम मे कौनो कमी है का मे।

' चचा अब तक तो हम कुछ बोलबो नै भये'

अबे भुतनी के पूछे है, ब्लेम नाही लगा रहे है तोहका।

'अच्छा.. हम सोचे कौनो गुस्ताखी कर दिए। '

'अब ज्यादा लोड ना दो खाली मगज (दिमाग) मे, जित्ता पूछ रहे बस वहीं टांय टांय करो। ' चाचा फॉम (लय) मे बोले।

' नै चचा कौनो कमी नै दिखी हमे।'

' अमे हम सोच रहे है कि अब हमको भी सच्चा वाला प्यार करना है। '

' चचा अब बकलोली करके बच्चे की जान लोगे यार तुम तो आंय। '

' अमे इसमे बकलोली क का बात है।'

' अब प्यार का उमर थोड़े ना है चचा, पूजा पाठ करो, पता नहीं कब प्राण पखेरू सटक जाए, और तुम टें बोल के निपट जाओ।'

' अबे टें होई हमरे दुश्मन... माना कि शक्ल गंदी है तोहार मगर मुँह से चमगादड़ जैसा ना किया करो। '

' अरे चचा तुम बातै ऐसी करते हो।'

' काहे पचहत्तर के नाती, हम पीरेम नाहीं कर सकते का।'
' उमर देखो अपनी चचा, मुह मे दांत नहीं, पेट मे दुरुस्त आंत नहीं, पैर श्मशान की ओर जा रहे है।'

अब चचा का पारा जून की तपती दोपहर जैसा चरम पर पहुंच गया।
चचा उठे, आव ना देखा ताव, लगे कांति को लतियाने, जबर कुटाई के बाद उन्हें शांति मिली। मगर कांति की कांति फुर्र हो गई।

' अरे चाचा काहे कूटे जा रहे हो। ' बस यही बोल फूटे थे कांति के कंठ से।

तब चचा ने न्यूज पेपर कांति को देते हुए बोले - 'बेटा कांति येका पढ़ लेव। '
कांति की निगाहें अखबार के क्लासिफाइड विज्ञापन पर टिकी, तब उसे चाचा के पगलाने का मूल कारण पता चला।

अब आपसे क्या छुपाना आइये , नयनाभिराम करते हुये अबोध पाठक के मन मे घुमड़ते जिज्ञासा ,आश्चर्य को समझे । आप भी पढ़े.....

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अब कांतिलाल कभी अखबार तो कभी बलवान चचा का थोबड़ा देख रहा था।
चाचा थे कि मूछों पर ताव देते मंद मंद मुस्किया रहे थे।

✍🏻संदीप सिंह "ईशू"
(समाप्त)


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