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अनीश की कहानियाँ

1. अनीश की कहानी....

एक छोटे से प्यारे से गांव में एक छोटा - सा, साधारण - सा बच्चा रहता था। उस बच्चे नाम अनीश था । वो बहुत ही अच्छा बच्चा था। सदा दूसरों की सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहता था।
एक दिन, अनीश अपने विद्यालय से घर जा रहा था। राह में, उसे एक उम्र दराज महिला दिखाई दी। वह महिला बहुत थकी हुई व परेशान - सी लग रही थी। अनीश ने महिला से पूछा, "दादीजी, क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूंँ?"
महिला ने कहा, "हाँ, मैं बहुत ही थक गई हूं। क्या बेटा मुझे, मेरे घर तक ले जा सकते हो?"
अनीश ने कहा, "जी दादीजी, मैं आपको ले जा सकता हूं।"
अनीश, महिला को उसके घर तक ले गया। महिला ने अनीश को धन्यवाद दिया और कहा, "तुम बहुत अच्छे लड़के हो।"
अनीश दिल से बहुत खुश हुआ। उसने विचार किया, "मुझे खुशी है कि मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं।"
अनीश और महिला की दोस्ती हो गई। वह दरसल महिला से मिलने उसके घर जाता था। महिला अनीश को कहानियां सुनाया करती थी।
एक दिन, महिला का स्वास्थ्य बहुत ही गिर गया था। उसे चिकित्सालय में उपचार कराना पड़ा व रहना पड़ा। अनीश रोज दिन महिला से मिलने चिकित्सालय जाता था। वह महिला की सार सम्भाल करता था।
महिला को अनीश के द्वारा सेवा करना बहुत अच्छा लगा। वह अनीश से कहा, "तुम मेरे लिए एक बेटे की तरह हो।"
अनीश बहुत खुश हुआ। उसने विचार किया, "मुझे खुशी है कि मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं।"
महिला कुछ दिनों बाद स्वस्थ हो गई। अनीश भी बहुत खुश हुआ। वह महिला से हाल चाल पहुंचने उसके घर गया।
महिला ने अनीश को एक झोली दी गई। उस झोली में एक पहनने की बिठ्ठी थी। महिला ने अनीश से कहा, "यह बिठ्ठी तुम्हारी मेहनत और दयालुता के लिए है।"
अनीश ने वह बिठ्ठी हाथ की अंगुली में पहन ली। उसने विचार किया, "यह हाथ की अंगुली की बिठ्ठी हमेशा याद दिलाएगी कि मैं हमेशा दूसरों की सहायता करूं।"

सीख:- हमे हमेशा दूसरो की सहायता करनी चाहिए।

2. राजा और चिड़िया की कहानी

एक राजा के विशाल महल में एक सुंदर वाटिका थी, जिसमें अंगूरों की एक बेल लगी थी। वहां रोज एक चिड़िया आती और मीठे अंगूर चुन - चुनकर खा जाती तथा अधपके व खट्टे अंगूरों को नीचे गिरा देती।

माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की, पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई। यह सुनकर राजा भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली और वाटिका में छिपकर बैठ गया। जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने तेजी दिखाते हुए उसे पकड़ लिया।

जब राजा चिड़िया को मारने लगा, तो चिड़िया ने कहा, 'हे राजन, मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की चार महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी। राजा ने कहा, 'जल्दी बता!' चिड़िया बोली, 'हे राजन, सबसे पहले, तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो। 'राजा ने कहा, 'दूसरी बात बता!' चिड़िया ने कहा, 'असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो ।' राजा ने कहा, 'अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।' इस पर चिड़िया बोली, 'चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।' चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया, चिड़िया उड़कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, 'मेरे पेट में दो हीरे हैं।' यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, 'हे राजन, ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता, उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी। मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया। मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे है, फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया। आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए, तो आप पछताने लगे।

सीख - उपदेशों को जीवन में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं।