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आम आदमी

सर्दी के कारण आज शरीर में थोड़ी हरारत, इस लिए चारपाई से उठने का मन नहीं किया। रजाई ओढ़ कर मैं अपने भविष्य के बारे में सोच ही रहा था कि कमरे के गेट पर थपटाफाहट हुई।
,, न जाने कौन होगा, इतनी सर्दी में,,। बड़बड़ाते हुए कहा मैने
,, होगा कौन, कोई कर्जे वाला होगा,,। खुद को खुद ही जवाब देते हुए मैं चारपाई से उठ कर धीमी चाल से गेट तक आया, इस बीच दोबारा गेट पर खट खट हो गई।
,, आ रहा हूं भाई,,। और मैने गेट खोल दिया, देखा कि सामने कमरे का मालिक खड़ा था।
,, क्या कर रहे थे सरदेसाई,,। गेट खोलते ही मकान मालिक ने सवाल दाग दिया।
,, जी कुछ नहीं, शर्दी से थोडी तबियत खराब है इसलिए लेटा हुआ था, आप सुबह ही सुबह,,। मैं सामने मकान मालिक को देख कर थोड़ा असहज हो गया।
,, देखो मिस्टर सरदेसाई, मुझे आज शाम तक मकान का किराया चाहिए,,।
,, जी जरूर प्रयास करता हूं,,।
,, यह सब सुनते सुनते हुए छह महीने हो गए मुझे सोच लो या तो आज मुझे किराया दे दो या फिर कमरा ख़ाली कर दो, इस तरह से नहीं चलेगा, मैं हर तीसरे दिन तुम्हारे पास आ कर हाजरी देता हूं, मैं नौकर नही हूं तुम्हारा, बहुत किरायेदार आते हैं मेरे पास,,।
,, जी,,। कहने को तो मैने कह दीया लेकिन मकान मालिक ने क्या क्या कहा, मैं समझ नहीं पाया, और मकान मालिक बड़ बड़ करता हुआ चला गया। गेट थोड़ा झुका कर मैं वापस चारपाई पर आ कर बैठ गया। फिर सोचा कि थोडी चाय हो जाएं। यह सोच कर मैं अलमारी की ओर गया, अलमारी खोल कर देखा तो दूध भी नहीं है, और मैं बिना दूध की चाय बनाने लगा। दो चार मिनट में चाय बन कर तैयार हो गई और मैं चाय का कप ले कर वापस चारपाई पर बैठ गया न चाहते हुए भी मेरा अतीत मेरी आंखों के सामने घूमने लगा।
जब मैं नोकरी से रिटायर हो कर घर आया था तो मेरा ऐसा सम्मान किया गया था कि जैसे मैं कोई बड़ी लड़ाई जीत कर घर आया हूं और सच पूछो तो छत्तीस साल की नोकरी के बाद ससम्मान घर आना एक बड़ी लड़ाई ही होती है। रिटायर होने के बाद जो भी पैसा मुझे मिला वो सब मैने यह सोच कर कि मेरे बच्चे ऐसे नही है तीनों बच्चों में बराबर बराबर बांट दिया। पत्नि के रहने तक लगभग ठीक ही रहा,, लडकी को भी उसका हिस्सा दे दिया। छोटे लडके की बहू ने ऐसा प्रपंच रचा कि जो थोडी बहुत पूंजी मेरे पास थी उसको भी लगवा दिया। मैं फिर भी यह सोच कर कि बच्चें सुखी रहे और मुझे क्या चाहिए। लेकिन आज, तभी गेट पर फिर से खट खटाहट हुई, मैं ने चाय की ओर देखा तो वह भी ठंडी हो गई। मैं पुन चारपाई से उठा और गेट पर जा कर देखा तो गेट पर मेरा पुराना दोस्त देवेंद्र खड़ा है।
,, अरे देवेंद्र भाई, आज सुबह सुबह ही कैसे,,।
,, अरे क्या मैं अपने दोस्त के पास सुबह सुबह नही आ सकता,,। देवेंद्र के चेहरे पर मुस्कान देख कर मैं थोडा खुश हुआ।
,, ठीक है अन्दर आजा और यह बता क्या तू बिना दूध की चाय पियेगा, अगर पीनी है तो मैं बनाता हूं,,।
,, नही मेरे दोस्त मैं चाय पी कर ही आया हूं आज तो मैं मिठाई खाने के लिए आया हूं,,।
,, मिठाई और मुझ से ऐसी कौनसी लाटरी लग गई है,,।
,, हां लाटरी ही समझ ,,। मैं यह सुनकर थोडा बैचेन हो गया।
,, फिर भी बता क्या बात है,,। तब तक देवेंद्र चारपाई पर बैठ चूका है और मैं खड़ा हूं।
,, तुझे तो याद होगा कि जब तू रिटायर हुआ था तब तेरे फंड के कुछ रूपये रह गए थे,,।
,, हां हां करीब साठ हजार रूपए है,,।
,, अब तुझे उन साठ हजार रूपए के मय बयाज के एक लाख रुपए मिलेंगे, आदेश भी हो गए हैं और दूसरी खुशी यह है कि हमारे शहर में जो स्टील प्लांट है, उसमें मैने तेरी नोकरी की बात कर ली है, उसमें तुझे सुपर वाइजर का काम करना है और वो भी कल से ही,,। सुनते ही मैं हैरान हो गया।
,, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है मेरे दोस्त,,।
,, जब भगवान् देता है तो दोनों हाथों से देता है मेरे दोस्त, दुख के बादल अधिक दिनों तक नहीं रहते,,। यह सुन कर मेरी आंखों में आसूं आ गए। और मैने भगवान को धन्यवाद देने के लिऐ दोनों हाथ जोड़ लिए।