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जंगल की पाठशाला

1.
जंगल की पाठशाला -
एक दिन शेर सिंह अपने जंगल में घूमने निकले। घूमते - घामते एक पेड़ पर टंगी एक तख्ती देखी। रुक गए। जोर से दहाड़ा। उनकी दहाड़ सुन चुन्नू चूहा अपने बिल से निकला। शेर सिंह को देखा तो हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला- 'क्या हुआ महाराज? क्या गलती हुई?'
शेर सिंह ने तख्ती की ओर इशारा कर पूछा- 'यह किसका काम है?'
चुन्नू ने जवाब दिया- 'इसे मैने टांगा है महाराज। पाठशाला खोली है मैने।'
चुन्नू ने मुस्कुराकर कहा- 'इसमें पढ़ाई होगी। मैं जंगल के भाई-बहनों के बच्चों को पढ़ाऊंगा।'
'क्यों पढ़ाओगे? क्या पढ़ाओगे?' शेर सिंह ने चुन्नू से पूछा।
चुन्नू ने कहा- 'महाराज! आप तो देहात-शहर जाते नहीं। मैं आता जाता हूँ। वहां लोगों ने पढ़-लिखकर खूब तरक्की की है। तरह-तरह के घर बनाए हैं। वे साइकिल, मोटर साइकिल और बस पर चलते हैं। हवाई जहाज पर आकाश में उड़ते हैं।'
शेर सिंह चुन्नू का मुंह देखने लगे। चुन्नू ने आगे कहा- 'सच महाराज, वे पानी के लिए दूर-दूर तक नहीं जाते। कुआं खोद लिया है, नल लगवा लिए हैं। तरह-तरह के कपड़े-जूते पहनते हैं। जबकि हम जंगल के लोग जहाँ के तहां हैं। क्या बताऊं महाराज कि पढ़ाई के कितने फायदे हैं।'
चुन्नू की बातों को शेर सिंह ने कुछ समझा, कुछ नहीं समझा।
पूछा- 'पढ़ाएगा कौन?'
'मैं पढ़ाऊंगा। मैनें आदमियों के यहाँ आ-जाकर पढ़ना-लिखना सीख लिया है।' चुन्नू बोला।
शेर सिंह ने कहा-शेर सिंह खुश हुआ। पढ़ाओ और एक अलग तख्ती पर लिखकर टांग दो- 'जो पढ़ेगा, वह आगे बढ़ेगा।'

2.
मैना की कहानी -
एक थी मैना। पंख फैलाकर उड़ती थी तथा मीठे गीत सुनाती थी। एक दिन वह मीना की टाट वाली झोपड़ी के घर पर बैठी थी। एक बदमाश लड़का उसे पकड़ने की तैयारी में जुटा। राह से जाने वाले कैलाश ने उसे देख लिया।
कैलाश नहीं जानता था की मैना को वह बदमाश लड़का पकड़े इसलिए कैलाश ने एक कंकड़ मैना की ओर उछाल दिया। जिससे मैना उड़ गई और उसकी जान बच गई।

3.
सोनल परी की कहानी -
एक परी थी। उसका नाम सोनल था। वह बहुत सुंदर थी। उसके पास एक जादुई छड़ी थी। उस छड़ी से सोनल परी मनचाहा काम कर सकती थी। सोनल परी को बच्चे बहुत अच्छे लगते थे। वह बच्चो के साथ खेलती और मदद भी करती थी।
एक दिन सोनल परी उड़ते हुए एक झील के किनारे पहुँचीं। वहाँ एक अकेला बच्चा उदास बैठा हुआ था। सोनल परी उसके पास गईं। उसने बच्चे से उसका नाम व उदासी का कारण पूछा। बच्चे ने कहा “मेरा नाम नीशू है, मै अपने भाई - बहनों के साथ यहाँ आया था। वे घूमते हुए आगे निकल गए और मै पीछे रह गया। मुझे अपने घर का रास्ता भी पता नहीं है।
यह सुनकर सोनल परी ने नीशू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “तुम मेरा बाया हाथ पकड़ लो। चलो, पहले तुम्हारे भाई - बहन को ढूढेंगे। फिर तम्हारे घर चलेगे।
नीशू ने तुरंत सोनल परी का हाथ पकड़ लिया। सोनल परी नीशू को लेकर उड़ चली। कुछ दूर उड़ने पर जंगल में एक बड़े पत्थर के ऊपर नीशू के भाई - बहन बैठे हुए दिखाई दिए। वे दोनों वही उतर गए। नीशू अपने भाई - बहनों से मिलकर बहुत खुश था। वे सभी भूखे और प्यासे थे। सोनल परी ने अपनी जादुई छड़ी घूमाई। ऐसा करते ही वहां पर अनेक स्वादिष्ट पकवान जैसे - मिठाइयां, चोकलेट, फल व जूस आदि आ गए। सभी बच्चों ने छककर खाया। फिर सोनल परी के साथ छुपम - छुपाई खेलने लगे।
शाम होने लगी थी। अतः सोनल परी ने अपनी छड़ी एक बार फिर हवा में घुमाई। वहां पर एक उडनखटोला आ गया। सभी उसमें बैठ गए। परी का आदेश पाते ही उडनखटोला नीशू के घर की चल दिया। कुछ ही देर में वे घर पहुँच गए। परी ने बच्चों को घर के आंगन में उतार दिया। घर पहुँचने पर सभी बच्चे बहुत खूश थे। उन्होंने सोनल परी को धन्यवाद दिया। परी ने सभी बच्चों को उपहार में एक- एक चोकलेट दी और वहां से उड़ चली।