Curiosity in Hindi Children Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | जिज्ञासा

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जिज्ञासा

1. जिज्ञासा -

"मांँ! आज क्या मैं स्कूल नही जाऊंँ?"
"क्या हुआ तृप्ति बिटिया, तबियत तो ठीक है? देखूँ, कहीं बुखार तो नहीं है! अरे! तुम्हें बुखार भी तो नहीं है फिर दिक्कत क्या है? आखिर तुम स्कूल क्यों नहीं जाओगी?
"मांँ! बस, ऐसे ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। सोच रही हूंँ, आज आपके साथ घर के कामों में हाथ बटाऊँ.. स्कूल न जाऊंँ?"
"मेरी बच्ची! अगर तुम्हें हाथ ही बँटाना है तो स्कूल से आकर भी हाथ बँटा सकती हो। वैसे भी आज शनिवार और कल रविवार है। कल तो तुम्हारी छुट्टी है ही, तो आज स्कूल न जाकर अपना दिन क्यों बेकार करोगी!"
"ठीक है मांँ! मैं जाती हूंँ स्कूल। बस मैंने देखा कि आप बहुत काम करती हैं तो मुझे लगा कि मुझे आपकी मदद करनी चाहिए। मांँ! एक बात पूछूंँ, बताएंँगी आप?"
"हांँ बिटिया जल्दी पूछो! तुम्हें स्कूल के लिए देर हो रही है।"
"माँ! यह बताइये कि आप भी रोज-रोज स्कूल जाती थी?"
"हाँ! मैं भी प्रतिदिन स्कूल जाती थी। एक दिन भी स्कूल में अनुपस्थित नहीं होती थी।"
"फिर माँ आपने कोई नौकरी क्यों नहीं की? आप तो हमेशा मुझे बताती हैं कि पढ़-लिखकर बिटिया कुछ बन जाओगी, फिर आप क्यों नहीं बनी?"
"बिटिया! शिक्षा का मतलब नौकरी करना ही नहीं होता है शिक्षा तो जीवन है। शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षा प्राप्त करके हम अपना जीवन अच्छी तरह से बिता सकते हैं। मुझे गर्व है कि मैं शिक्षित हूंँ। मैं तुम्हें प्रतिदिन घर में एक घण्टा पढ़ाती हूँ। तुम्हारा होमवर्क कराती हूंँ। घर का हिसाब-किताब कर लेती हूंँ। रही बात नौकरी की, तो मेरी परिस्थितियाँ ठीक नहीं थी। आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी, इसलिए पिताजी ने जल्द ही विवाह कर दिया। कुछ बनने का मौका ही नहीं मिला। मैं चाहती हूंँ कि तुम पढ़-लिखकर अपना और मेरा सपना पूरा करो। कुछ बनकर दिखाओ और यह तभी सम्भव हो पायेगा, जब तुम प्रतिदिन स्कूल समय से जाओगी, मन लगाकर पढ़ोगी।"
"ठीक है माँ! मैं स्कूल जा रही हूंँ। मन लगाकर पढूँगी और एक दिन कुछ न कुछ बन जरूर जाऊंँगी। अगर नहीं बन पायी तो कम से कम एक अच्छी गृहिणी आपकी तरह जरूर बनूँगी।"
यह कहकर माँ की लाडली बेटी स्कूल चली गयी और माँ प्रसन्नचित्त होकर उसे जाते हुए देख रही थी।

संस्कार संदेश: -
जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व है। मानव जीवन शिक्षा के बिना व्यर्थ है।


2. लालची कुत्ता -

एक गाँव में एक कुत्ता था। वह बहुत लालची था। वह भोजन की खोज में इधर-उधर भटकता रहा लेकिन कही भी उसे भोजन नहीं मिला। अंत में उसे एक होटल के बाहर से मांस का एक टुकड़ा मिला। वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था इसलिए वह उसे लेकर भाग गया।

एकांत स्थल की खोज करते-करते वह एक नदी के किनारे पहुँच गया। अचानक उसने अपनी परछाई नदी में देखी। उसने समझा की पानी में कोई दूसरा कुत्ता है जिसके मुँह में भी मांस का टुकड़ा है। उसने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए तो खाने का मजा दोगुना हो जाएगा। वह उस पर जोर से र्भाका। किने से उसका अपना मांस का टुकड़ा भी नदी में गिर पड़ा। अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा।

अब वह बहुत पछताया तथा मुँह लटकाता हुआ गाँव को वापस आ गया।

शिक्षा : लालच बुरी बला है। हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए।