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मंजूलिका

दोपहर का वक्त है। विजयगढ़ के किले के चारों और एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। अजीत सिंह के शयन कक्ष में दो लोग बैठे हुए हैं। एक खुद अजीत सिंह है जो की गोरे रंग , लंबे कद , सिर पर लाल रंग की पगड़ी रखे हुए, सुडौल शरीर का हटा कट्टा 20-22 वर्षीय नौजवान लड़का है जो विजय गढ़ के महाराजा महेंद्र सिंह प्रताप की इकलौती औलाद , उनका उतराधिकारी और विजय गढ़ का राजकुमार है। अजीत सिंह के बिल्कुल सामने विजयगढ़ के महाराजा महेंद्र सिंह प्रताप के दीवान बलदेव सिंह का सांवले से रंग का , लंबे कद का , सिर पर मखमेले से रंग की पगड़ी रखे अजीत सिंह का जिगरी यार और बलदेव सिंह का गबरू जवान लड़का जगत सिंह बैठा है जिसकी उम्र लगभग 23-24 साल की होगी। वे दोनो ही कुवारें हैं। वे दोनों आपस में धीरे धीरे कुछ बातें कर रहे हैं। वे दोनों इतना धीरे बोल रहे है की उनके अलावा इन बातों को और कोई न सुन सके।
जगत सिंह - "देखो राजकुमार अजीत सिंह। अबकी बार मैं खबर पक्की लेकर आया हूं। ये सब कुछ मैंने अपने कानो से सुना और आंखों से देखा है। हमारी रियासत के पूर्वी दिशा के जंगल में एक बाघ के पंख निकल आए हैं। वो रोज रात को दो तीन लोगों को चट कर जाता है। जितने भी सैनिक उस बाघ को ढूंढकर मारने के लिए महाराज ने भेजे थे अब उन सब सैनिकों को ढूंढा जा रहा है। अनुमान है उन सैनिकों को भी वो बाघ चट कर गया होगा। उस बाघ का खौफ इतना अधिक बढ़ चुका है की उस साले बाघ के बच्चे ने रियासत के सभी लोगों को अपने घर में ही पंगु बनाकर छोड़ दिया है।"
अजीत सिंह - " मामला पेचीदा है। जगत सिंह अब उस बाघ के पंख कतरने ही पड़ेंगे। पूर्वी दिशा में ही फिरोजगढ रियासत है अगर मौका बन सका तो राजकुमारी मंजुलिका से भी मिल आएंगे। इस पर क्या विचार है जगत सिंह?"
जगत सिंह - "लेकिन राजकुमार अजीत सिंह महाराज को आप पर शक हो चुका है की आप बहुत बार रात को चुपके से शिकार करने के लिए चले जाते है। इसी कारण से महारानी तारावती ( अजीत सिंह की मां) रात को दो तीन बार उठकर आपकी खबर लेती है। ऐसी स्थिति में महल से बाहर निकल पाना तो बहुत दूर की बात है, आपका अपने कमरे से बाहर निकल पाना भी बहुत मुश्किल काम होगा ? और वैसे भी आपको मालूम है ना की एक माह पहले आपके साथ जो कुछ हुआ उसके बाद से महाराज ने आपका शिकार खेलना पूरी तरह से बंद कर दिया है और मंत्री खूंखार सिंह को चार पांच लौंडे देकर आप पर नज़र रखने के लिए छोड़ रखा है।"
जगत सिंह की बात सुनते ही अजीत सिंह को याद आने लगा की किस तरह एक माह पहले शिकार के दौरान एक बाघ ने उनके दाएं कंधे पर पंजा दे मारा था। अभी कल ही वो घाव भरा था। उसके बाद से तो शिकार बंद , महल से बाहर निकलना बंद । जहां तक की कुछ सिपाही भी अब तो हरदम अजीत सिंह के साथ रहते और उन पर चौबीसों घंटे निगाह बांधे रखते और तुरंत सारा हाल महाराजा को सुना आते थे। और वो मंत्री खूंखार सिंह भी तो अब पूरी तरह से खूंखार हो चुका था। अजीत सिंह तो अपने ही महल में गुलाम बनकर रह गया था।
अजीत सिंह - "लेकिन जगत सिंह तुम यह अच्छी तरह से जानते हो की हम शिकार करने के कितने शौकीन हैं। शिकार करे बगैर तो हमसे बिल्कुल भी नहीं रहा जाता । हमारे हाथो से पिछले एक माह से अब तक कोई शिकार नहीं हुआ। ये हाथ अब कोई शिकार करने के लिए तड़प रहे हैं। जगत सिंह महल से बाहर निकलने का कुछ तो इंतजाम करना ही पड़ेगा। हम उस बाघ का सर कलम करने का ये मौका अपने हाथ से नहीं जाने दे सकते। कुछ तो सोचो जगत सिंह कुछ तो सोचो?"
जगत सिंह - "राजकुमार अजीत सिंह बहुत मुश्किल काम है। असंभव समझो। इतने सिपाहियों को तो चुना लगाना भी संभव नहीं है और वो मंत्री खूंखार सिंह तो हर हाल में धोखा न खायेगा। आप महारानी पर हाथ आजमाकर क्यों नहीं देखते क्या पता बात बन जाए?"
अजीत सिंह - " मां तो मान जायेगी लेकिन पिताजी के गुस्से को तो तुम बखूबी जानते हो हर हालत में हां नही करेंगे। कुछ ऐसा रास्ता सोचना होगा जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।"
जगत सिंह - "आप फिक्र न करें अजीत सिंह । मैं बाहर जाकर सिपाहियों का मुआयना लेकर आता हूं। फिर कोई तरकीब निकालूंगा और मौका बनते ही आपसे शाम को मिल पडूंगा।"
इतना कहकर वो जगत सिंह जाने ही वाला था की तभी दयाल सिंह जो की जगत सिंह का छोटा भाई था जिसे अजीत सिंह ने राजकुमारी मंजुलिका का हाल चाल जानने के लिए फिरोजगढ़ बेजा था , वहां पर आ खड़ा हुआ। जगत सिंह उसे देखकर वापिस बैठ गया । अजीत सिंह ने दयाल सिंह को बैठने का इशारा किया और वो भी उनके पास बैठ गया। अजीत सिंह पिछले कई महीनों से दयाल सिंह के हाथो ही अपने प्रेम पत्र राजकुमारी मंजुलिका तक पहुंचा रहा था ।
अजीत सिंह - " दयाल सिंह तुम पर किसी को शक तो नहीं हुआ? अच्छा ये बताओ राजकुमारी मंजुलिका कैसी है? उन्होंने मेरा पत्र पड़ा क्या जवाब दिया।
दयाल सिंह -" राजकुमार अजीत सिंह जी बुरा न माने बहुत ही बुरी खबर है। हमारी दुश्मन रियासत सोनगढ़ का राजकुमार विनोद सिंह अब राजकुमारी मंजुलिका पर दिलों जान से आशिक हुआ फिरता है। उसने न जाने महाराजा अभय सिंह पर क्या जादू कर दिया है की महाराज ने उसे अपना सलाहकार बना लिया है। वो आपके प्रति महाराज के कान भर रहा है।"
अजीत सिंह - " सबसे पहले तो इस विनोद सिंह को किसी गड़े में डाल दफनाना पड़ेगा। खैर छोड़ो राजकुमारी मंजुलिका का पत्र दो।"
दयाल सिंह ने एक पत्र अजीत सिंह के हाथों में थमा दिया। अजीत ने उस पत्र को खोला और हैरान रह गया।

अजीत सिंह - " ये तो वही पत्र है दयाल सिंह जो मैने तुम्हे देकर भेजा था तुम ये पत्र वापिस ले आए।"
दयाल सिंह - "हुजूर आज तो उस विनोद सिंह ने हद पार कर दी । जो कबूतर ये खत राजकुमारी मंजुलिका तक पहुंचाता था और राजकुमारी का खत मेरे पास लेकर आता था उस कबूतर को उस विनोद सिंह ने न जाने कहां ले जाकर दफना दिया। उस विनोद सिंह को तो मुझ पर भी शक हो गया है उसने आज अपने दस बारह लौंडे मेरे पीछे लगा दिए थे बड़ी मुश्किल से अपनी जान जान बचाकर भाग कर आया हूं कुमार।"
जगत सिंह - " उस विनोद सिंह को जल्दी ठिकाने लगाना होगा इससे पहले की वो कोई बड़ी आफत खड़ी कर डाले। भले ही राजकुमारी मंजुलिका उस लौंडे विनोद सिंह से दिलों जान से नफरत करती है लेकिन वो कभी भी आग में घी डाल सकता है।"
अजीत सिंह - " इस लौंडे विनोद सिंह ने तो हमारा सारा काम ही चौपट करके रख दिया । लेकिन उस विनोद सिंह को ठिकाने लगाने के लिए हमे हर हालत में इस महल से बाहर निकलना होगा जहां पर बैठे बैठे तो हम कुछ भी नहीं कर सकते है।"
जगत सिंह - " आप डरिए मत कुमार मैं जल्द ही महल से बाहर निकलने का कुछ इंतजाम करता हूं।"
जगत सिंह और दयाल सिंह कमरे से बाहर निकल गए । अजीत सिंह कुछ सोचते हुए अपने कमरे में टहलने लगा।
शाम का वक्त होने को आ गया है। फिरोजगढ़ रियासत के महल के चारों और बहुत से सिपाही चौकने होकर चक्र काट रहे है। महल के चारों और इतना सख्त पहरा है की कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। महल की सबसे निचली इमारत के एक खुफिया से कोने में खूब अंधेरा छाया रहता है। बिना मसाल जलाए तो वहां पर कुछ भी साफ नज़र नहीं आता है। नीचे फर्श पर एक हरे रंग की मेट बिछाई हुई है। उस मेट के नीचे एक खुफिया दरवाजा है । वो खुफिया दरवाजा महल निचले भाग में बने हुए एक गुप्त तहखाने में जाता है जिसके बारे में खुद महाराज अभय सिंह को भी खबर नहीं है। इस गुप्त तहखाने से बाहर निकलने के दो रास्ते है। एक रास्ता महल के अंदर मेट के नीचे है जिसका जिक्र किया या चुका है और दूसरा रास्ता गुप्त तहखाने के अंदर ही एक दरवाजे के पीछे है। उस दरवाजे को खोलने के बाद एक लंबी सुरंग चालू हो जाती है जो की एक सुनसान से जंगल में एक भूतिया हवेली के अंदर जाकर खुलती है। फिलहाल इस गुप्त तहखाने का हाल सुने। तहखाने में एक अजीब सा जानलेवा सन्नाटा छाया हुआ है। एक और दो मसाले जल रही है जिसके कारण कुछ कुछ धुंधला सा नज़र आ रहा है। एक गबरू जवान , हटा कट्टा लड़का उस गुप्त तहखाने में इधर उधर चक्र काटे जा रहा है। देखने से ऐसे लग रहा है की वो कोई गहरी सोच में डूबा हुआ है। उसके पास दो आदमी और खड़े है जो लगातार उसी की और घूरे जा रहे हैं। अंधेरे में किसी का भी चेहरा सपष्ट नज़र नहीं आ रहा है। जो व्यक्ति टहल रहा है वो सोनगढ़ के सुल्तान जगजीत सिंह का लड़का विनोद सिंह है जिसने हाल ही मैं फिरोजगढ़ के महाराज अभय सिंह के कान भर कर उनके सलाहकार का पद संभाला है और अपने पिता जगजीत सिंह से ढेर सारी शाबासी ग्रहन की है । उसके पास जो दो आदमी खड़े है वो दोनों विनोद सिंह के आदमी है जिन्हे आज कोई नया काम सौंप कर विनोद सिंह ने चैन की सांस लेनी है। एक आदमी का नाम सलीम है तो दूसरे का परवेज खां है। दोनो सबसे बढ़कर जासूस है। विनोद सिंह हटा कट्टा , सांवले से रंग का 23-24 वर्षीय एक नौजवान लौंडा है। वो अपनी सोच से बाहर निकल जाता है और उन दोनो के सामने जाकर खड़ा हो जाता है। वे तीनों आपस में कुछ बातचीत करने लगते है । उनकी आवाज उस भयानक से तहखाने में गूंजने लगती है।
विनोद सिंह - " राजकुमारी मंजुलिका सिर्फ मेरी है सिर्फ और सिर्फ मेरी। मेरे होते हुए वो और किसी की भी नहीं हो सकती। मंजुलिका को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। अगर मुझे उस अप्सरा को पाने के लिए अगर उसके बाप अभय सिंह को मारना भी पड़ा तो मुझे ये सौदा भी मंजूर है । लेकिन फिलहाल मैं उनका सलाहकार हूं इसलिए ऐसा कुछ भी करना हाल ही के लिए मुनासिब नहीं। और वैसे भी मैं जोर जबरदस्ती मंजुलिका को अपना नही बनाना चाहता । "
सलीम - " तो हुजूर फिर आप क्या चाहते है ?"
विनोद सिंह - " हम चाहते है की वो अप्सरा खुद हमारे लिए पागल हो जाए। मुझसे इश्क करने लगे। लेकिन वो है की मेरी और आंख उठाकर भी नही देखती।"
परवेज खां - " हुजूर देखेगी कैसे , राजकुमारी जी तो विजयगढ़ के राजकुमार अजीत सिंह पर दिलों जान से आशिक हुई फिरती है।"
विनोद सिंह - " ( गुस्से से ) ये बात हम जानते है लेकिन हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। हमे सबसे पहले तो उस लौंडे अजीत सिंह को किसी गड़े में डाल दफनाना होगा और ऐसा दफनाना होगा की सात जन्मों तक उसका पता किसी को न चले और फिर मैं उस अप्सरा से शादी करूंगा।"
सलीम - " लेकिन हुजूर आप ये सब करेंगे कैसे?"
विनोद सिंह - " आप नही हम तीनो मिलकर ये सब करेंगे और वैसे भी आज हमने मंजुलिका के खत लेकर जाने वाले उस कबूतर की गर्दन काट दी है लेकिन अफसोस वो लौंडा दयाल सिंह वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। मुझे लानत है तुम दोनो पर, तुम दोनो मिलकर भी उस एक लौंडे को नहीं पकड़ सके।"
परवेज खां - " हुजूर क्या बताएं, हमने तो पूरी कोशिश की थी मगर उस दयाल सिंह ने ऐसा घोड़ा दौड़ाया की तूफान की तरह आंखों से ओझल हो गया। लेकिन हुजूर आप यकीन मानिए वो दयाल सिंह अब वापिस यहां आने की जुर्रत भी नहीं करेगा?"
विनोद सिंह - " नहीं परवेज , वो अजीत सिंह बहुत तेज खोपड़ी है वो चुपचाप बैठने वाला नहीं है । उसके दिमाग में जरूर कोई न कोई खिचड़ी तो पक रही होगी। और अब से तुम दोनों को मेरी अप्सरा पर चौबीसों घंटे निगाह रखनी है। वो कब उठती है, कब सोती है , कब खाना खाती है, हर एक एक पल की खबर मुझे चाहिए , हर एक एक पल की । समझ गए ना तुम दोनों?
सलीम - " जी हुजूर, आप फिक्र मत कीजिए। अब हम दोनों राजकुमारी पर हर एक पल नज़र रखेंगे और आपको शिकायत का कोई भी मौका नहीं देंगे।"
विनोद सिंह - " ठीक है । अब तुम दोनो जाओ। और तब तक हम उस लौंडे अजीत सिंह को ठिकाने लगाने की कोई तरकीब सोचते है।"
इतना सुन वे दोनों वहा से सीढ़ियों की और जाने लगते हैं और ऊपर के दरवाजे से बाहर निकल कर महल में चले जाते है। विनोद सिंह वहीं पर कुछ सोचते हुए टहलने लगता है।।

सतनाम वाहेगुरु।।